सरकार को इस भय से COVID-19 टेस्ट में कमी नहीं करनी चाहिए कि अधिक टेस्ट करने पर 70% लोगों का टेस्ट पॉज़िटिव आ जाएगा : गुजरात हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

24 May 2020 1:06 PM GMT

  • सरकार को इस भय से COVID-19 टेस्ट में कमी नहीं करनी चाहिए कि अधिक टेस्ट करने पर 70% लोगों का टेस्ट पॉज़िटिव आ जाएगा : गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने कहा है कि गुजरात सरकार को इस डर से COVID-19 टेस्ट की संख्या को कम नहीं करना चाहिए कि अधिक टेस्ट करने से जनसंख्या के 70% लोगों का टेस्ट पॉज़िटिव आ जाएगा।

    जस्टिस जेबी पादरीवाला और जस्टिस इलेश ने कहा,

    " यह तर्क कि 'अधिक संख्या में COVID 19 टेस्ट करने से 70 प्रतिशत लोग पॉज़िटिव आ जाएंगे और इससे साइकोसिस का डर पैदा हो जाएगा, कम टेस्ट करने का आधार नहीं होना चाहिए।"

    पीठ ने यह अवलोकन गुजरात के एडवोकेट जनरल, कमल त्रिवेदी द्वारा उठाए गए प्रश्न के जवाब में किया। एडवोकेट जनरल ने कहा था कि यदि सभी का परीक्षण किया जाता है, तो 70% लोगों का COVID-19 टेस्ट पॉज़िटिव आ जाएगा, जिससे भय साइकोसिस भय फैल सकता है।

    'भय कारक' को संबोधित करने के लिए, पीठ ने निर्देश दिया कि अधिकारियों को समाचार पत्रों के विज्ञापनों के माध्यम से व्यापक प्रचार करना चाहिए कि केवल इसलिए कि किसी का COVID 19 टेस्ट पॉज़िटिव आ गया है, उसे घबराने की ज़रूरत नहीं है।

    जनता में जागरूकता फैलाई जानी चाहिए कि प्रारंभिक अवस्था में रोगियों को घर में अलग रखकर ठीक किया जा सकता है और किसी को लक्षण विकसित होने के बाद ही अस्पताल जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा,

    "जवाब देने वाले प्राधिकारी परीक्षण केंद्रों के माध्यम से रिकॉर्ड रख सकते हैं, उन सभी व्यक्ति जिनका टेस्ट पॉज़िटिव आया है वे घर पर (जहां तक ​​संभव हो) क्वारन्टीन में अलग रह सकते हैं और केवल लक्षणों के विकसित होने पर अस्पताल में एडमिट होने के लिए विचार किया जा सकता है।"

    कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या पूरे राज्य में COVID-19 परीक्षण करने के लिए 12 निजी प्रयोगशालाएं और 19 सरकार की प्रयोगशालाएं पर्याप्त और अच्छी हैं, जब मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

    कोर्ट ने राज्य सरकार के निर्देश के पीछे की समझदारी पर भी सवाल उठाया कि COVID-19 परीक्षण केवल सरकारी प्रयोगशालाओं में किया जाना चाहिए, जबकि ICMR द्वारा अनुमोदित निजी प्रयोगशालाएं उपलब्ध हैं।

    न्यायालय ने हैरानी जताई कि क्या यह "गुजरात राज्य में मामलों की संख्या को कृत्रिम रूप से नियंत्रित करने के लिए सरकार की कार्रवाई" तो नहीं है।

    इस संबंध में, बेंच ने तेलंगाना उच्च न्यायालय द्वारा पारित हाल के फैसले का उल्लेख किया, जिसने तेलंगाना सरकार द्वारा लगाए गए एक समान प्रतिबंध को समाप्त कर दिया।

    कुछ याचिकाकर्ताओं ने COVID-19 रोगियों के निर्वहन नीति के बारे में ICMR के दिशानिर्देशों में परिवर्तन के तर्क पर सवाल उठाया।

    नए आईसीएमआर दिशानिर्देशों के अनुसार, हल्के या मध्यम या 3 या अधिक दिनों तक बिना कोई लक्षण वाले रोगियों को घर में क्वारन्टीन की सलाह के साथ डॉक्टर के पर्चे के साथ परीक्षण किए बिना छुट्टी दी जानी चाहिए।

    याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि दिशानिर्देशों में अचानक बदलाव के लिए कोई वैज्ञानिक डेटा या शोध या तर्क नहीं दिया गया है। यह तर्क दिया गया था कि निर्वहन करने से पहले परीक्षण अनिवार्य होना चाहिए।

    कोर्ट ने सरकार से कहा है कि वह इन पहलुओं पर 26 मई तक एक रिपोर्ट पेश करे, जब इस मामले पर अगली सुनवाई होगी।

    कोर्ट ने राज्य के स्वास्थ्य विभाग के नियंत्रण में अहमदाबाद सिविल अस्पताल में COVID-19 रोगियों की उच्च मृत्यु दर पर भी चिंता जताई और देखा कि वहां स्थितियां "दयनीय" है।

    सरकार से कहा गया है कि वह पर्याप्त संख्या में वेंटिलेटर की कमी जैसे मुद्दों को तुरंत हल करे। न्यायालय ने प्रवासियों के कल्याण और उनके रेल किराया से संबंधित अन्य निर्देशों को भी पारित किया।

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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