सिविल विवाद को निपटाने के लिए आपराधिक शिकायत दर्ज कराना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
LiveLaw News Network
9 Aug 2019 11:16 AM IST
शिकायत में आरोपों की प्रकृति पर विचार करते हुए हम इस दृढ़ राय से हैं कि आईपीसी की धारा 420/34 के तहत अपराध का संज्ञान लेने के लिए कोई मामला नहीं बनता है। मामले में एक सिविल विवाद शामिल है और सिविल विवाद को निपटाने के लिए आपराधिक शिकायत दर्ज की गई है जो कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के अलावा कुछ और नहीं है," यह कहते हुए पीठ ने इस मामले में सभी आपराधिक कार्यवाही को समाप्त कर दिया।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह की 3 न्यायाधीशों की पीठ ने ये टिप्पणी करते हुए शिकायतकर्ता द्वारा दायर रिट याचिका में निर्देश जारी करने के उच्च न्यायालय के एक आदेश को रद्द कर दिया। (पुलिस आयुक्त बनाम देवेंद्र आनंद)
यह था यह मामला :
शिकायतकर्ता का मामला यह था कि उसने एक संपत्ति की बिक्री के लिए समझौता किया था, जिसे बाद में मालूम हुआ कि वो संपत्ति एक बैंक में गिरवी रखी गई थी। यह पता चला कि उसने खुद ही धन का भुगतान किया और गिरवी संपत्ति को छुड़ाकर सेल डीड अपने नाम करा ली। इसके बाद उसने विक्रेताओं द्वारा धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज की जिसे मजिस्ट्रेट ने खारिज कर दिया। उसने फिर से धारा 200 CrPC के तहत एक निजी शिकायत दर्ज की। इस शिकायत के लंबित रहने के दौरान उसने उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की और न्यायालय ने सुनवाई करते हुए कुछ निर्देश जारी किए।
"यह मामला कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग का है"
इन तथ्यों का उल्लेख करते हुए पीठ ने यह कहा कि शिकायतकर्ता द्वारा शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही कुछ और नहीं बल्कि किसी सिविल विवाद को निपटाने के लिए कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
पीठ ने कहा:
"शिकायत में आरोपों की प्रकृति पर विचार करते हुए हम इस दृढ़ राय से हैं कि आईपीसी की धारा 420/34 के तहत अपराध का संज्ञान लेने के लिए कोई मामला नहीं बनता है। मामले में एक सिविल विवाद शामिल है और सिविल विवाद को निपटाने के लिए आपराधिक शिकायत दर्ज की गई है जो कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के अलावा कुछ और नहीं है," यह कहते हुए पीठ ने इस मामले में सभी आपराधिक कार्यवाही को समाप्त कर दिया।
"मूल शिकायतकर्ता द्वारा आपराधिक कार्यवाही की शुरुआत कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के अलावा और कुछ नहीं है, हम न केवल दिए गए फैसले और आदेश को रद्द करते हैं, बल्कि लेनदेन के संबंध में मजिस्ट्रेट के सामने लंबित आपराधिक कार्यवाही को भी रद्द करते हैं," पीठ ने जोड़ते हुए कहा।