वकीफ की मर्जी के बिना महिला वंशज मुतवल्ली नहीं हो सकती, सुप्रीम कोर्ट का फैसला

LiveLaw News Network

27 Sep 2019 9:26 AM GMT

  • वकीफ की मर्जी के बिना महिला वंशज मुतवल्ली नहीं हो सकती, सुप्रीम कोर्ट का फैसला

    "मुतवल्ली का उत्तराधिकारी वक्फ बनाने वाले वकीफ के इरादे के अनुसार होना चाहिए, वकीफ के इरादे के विपरीत किसी भी अन्य दस्तावेज के माध्यम से इसे बदला नहीं किया जा सकता है।"

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हालांकि महिलाएं भी मुस्लिम कानून के तहत मुतवल्ली का पद संभाल सकती हैं, लेकिन अगर वकीफ का इरादा केवल पुरुष वंशजों को मुतवल्ली बनाने का है तो महिला वंशज वक्फ संपत्ति की मुतवल्ली बनने के लिए अपना दावा पेश नहीं कर सकती।

    न्यायमूर्ति एन.वी रमना, न्यायमूर्ति मोहन.एम शांतनागौदर और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने यह टिप्पणी उस मामले को ठीक ठहराते हुए की है,जिसमें एक नाजिरा खातून को वक्फ की संपत्ति का स्थायी मुतवल्ली नियुक्त करने से इंकार कर दिया गया था।

    इस मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट ने देखा था कि वक्फ विलेख या दस्तावेज में ''पुत्रो पुत्रादि क्रोम'' शब्द से संकेत दिया गया था कि मुतवल्ली का कार्यभार पुत्रों और पौत्रों (क्रमिक पीढ़ियों के माध्यम से) को दिया जाएगा। इसके मद्देनजर, यह पाया गया था कि नजीरा खातून उक्त वक्फ संपत्ति के मुतवल्ली होने के योग्य नहीं हैं।

    इस फैसले की पुष्टि करते हुए, ''सैयदा नाजिरा खातून (डी) बनाम सैयद जहीरुद्दीन अहमद बगदादी'', मामले में शीर्ष अदालत की पीठ ने यह भी कहा कि मुतवल्ली के पास अपने कार्यालय को किसी अन्य व्यक्ति को सौंपने या हस्तांतरित करने की सामान्य शक्ति नहीं है, जब तक कि उसे ऐसी शक्तियां वक्फ विलेख या दस्तावेज में न दी जाएं।

    मुस्लिम कानून पर दिए गए इन फैसलों और आधिकारिक ग्रंथों के प्रकाश में यह स्पष्ट है कि मुतवल्ली के पास अपने कार्यालय को किसी अन्य व्यक्ति को सौंपने या हस्तांतरित करने की सामान्य शक्ति नहीं है, जब तक कि उसे वक्फ विलेख या डीड या दस्तावेज द्वारा ऐसी शक्तियां नहीं दी जाती हैं।

    इस मामले में, वक्फ डीड में मुतवल्ली को कोई ऐसी शक्ति या अधिकार नहीं दिया गया है कि वह एक ट्रस्ट डीड या उस प्रभाव के लिए किसी अन्य साधन का प्रयोग करके अपने निधन के बाद किसी अन्य व्यक्ति को भविष्य के मुतवल्ली के रूप में चुन सके। इस तरह की अनुमति या अधिकार की अनुपस्थिति में, सैयद बदरुद्दीन अहमद द्वारा अपनी पत्नी के पक्ष में एक ट्रस्ट डीड के माध्यम से मुतवल्ली के कार्यालय का स्थानांतरण, स्पष्ट रूप से उसकी शक्तियों के दायरे और मुस्लिम कानून के तय सिद्धांतों से बाहर था।

    मुतवल्ली का उत्तराधिकार वक्फ करने वाले व्यक्ति वकीफ के इरादे के अनुसार होना चाहिए। वहीं वकीफ के इरादे के विपरीत किसी भी अन्य दस्तावेज के माध्यम से इसे बदला नहीं सकता।

    इस मामले में यह देखते हुए कि नाजिरा खातून आखिरी मुतवल्ली की पत्नी थी, परिवार में सीधे तौर पर वंशज नहीं थी, ऐसे में उन्हें मुतवल्ली का अधिकार नहीं है, भले ही महिला वंशजों को शामिल करने के लिए वक्फ विलेख की व्यापक रूप से व्याख्या कर दी जाए।

    इस प्रकार, उनके पक्ष में मुतवल्ली के कार्यालय के उत्तराधिकार को बदलने के लिए ट्रस्ट डीड का निर्माण, मूल वक्फ विलेख की शर्तों को बदलने के लिए समान है। यह वक्फ विलेख के अंतर्निहित इरादे को नष्ट करने जैसा है और यह गैरकानूनी है, क्योंकि यह मुतवल्ली को मिली शक्तियों से परे है। इसलिए उक्त वक्फ संपत्ति का मुतवल्ली बनने के लिए स्वर्गीय नाजिरा खातून का स्थिर नहीं है।

    पीठ ने वक्फ विलेख का उल्लेख करते हुए आगे कहा कि-

    "यह स्पष्ट हो जाता है कि मूल वक्फ विलेख में महिला वंशजों की परिकल्पना नहीं की गई थी, जो इन 12 शब्दों के दायरे में आते हैं और मुतवल्ली का पद धारण करते हैं। इस प्रकार, नाजिरा खातून या उनकी बेटियां ( मामले की अपीलकर्ता सहित) वक्फ संपत्ति के मुतवल्ली के लिए कोई दावा नहीं कर सकती हैं।

    इसके बजाय, अंतिम मुतवल्ली का भतीजा होने के नाते, प्रतिवादी नंबर 1 यहाँ मूल मुतवल्ली का एक पुरुष वंशज है, इसलिए वह वक्फ डीड के अनुसार मुतवल्ली का पद संभालने का हकदार है। हालांकि यह इस विषय पर कोई विवाद नहीं है कि महिलाएं भी मुस्लिम कानून के तहत मुतवल्ली का पद संभाल सकती हैं, परंतु मामले के तथ्यों से यह स्पष्ट है कि वकीफ का इरादा पीढ़ी दर पीढ़ी केवल पुरुष वंशजों को ही मुतवल्ली बनाना था।"



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