'अस्पताल/मेडिकल स्टोर चलाने वाले फर्जी फार्मासिस्ट लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं': सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका बहाल की

Brij Nandan

30 Nov 2022 6:28 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि यह देखना फार्मेसी काउंसिल और राज्य सरकार का कर्तव्य है कि अस्पताल/मेडिकल स्टोर आदि फर्जी फार्मासिस्ट द्वारा नहीं चलाए जा रहे हैं और केवल पंजीकृत फार्मासिस्ट द्वारा चलाए जा रहे हैं।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एमएम सुंदरेश की खंडपीठ ने पटना उच्च न्यायालय के समक्ष दायर जनहित याचिका को बहाल करते हुए कहा कि किसी भी पंजीकृत फार्मासिस्ट की अनुपस्थिति में अस्पताल/डिस्पेंसरी चलाने और/या फर्जी फार्मासिस्ट द्वारा ऐसे अस्पताल चलाने और यहां तक कि फर्जी फार्मासिस्ट द्वारा मेडिकल स्टोर चलाने और यहां तक कि बिना किसी फार्मासिस्ट के चलने से अंततः लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा।

    मुकेश कुमार नाम के एक व्यक्ति ने पटना उच्च न्यायालय के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की थी जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि विभिन्न सरकारी अस्पतालों में, जो व्यक्ति पंजीकृत फार्मासिस्ट नहीं हैं, उन्हें फार्मासिस्ट के कार्य का निर्वहन करने की अनुमति दी जा रही है।

    याचिका में आरोप लगाया गया है कि कुछ स्थानों पर, यहां तक कि क्लर्क, स्टाफ नर्स आदि को भी केवल एक पंजीकृत फार्मासिस्ट द्वारा किए जाने वाले कर्तव्य सौंपे गए हैं। इस याचिका का उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए निस्तारण कर दिया कि बिहार राज्य फार्मेसी परिषद ने एक तथ्यान्वेषी समिति का गठन किया है और इसकी रिपोर्ट पहले ही राज्य सरकार को भेज दी गई है।

    न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया था कि बिहार राज्य फार्मेसी परिषद में केवल वही व्यक्ति पंजीकृत हो सकते हैं, जो पात्र हों और आवश्यक शर्तों को पूरा करते हों।

    इस फैसले के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका की पिछली सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत की खंडपीठ ने कहा था कि फर्जी फार्मासिस्टों को मेडिकल स्टोर चलाने और कामकाज की अनुमति देना नागरिकों के जीवन के साथ खिलवाड़ करना होगा। आगे कहा था कि राज्य को फर्जी फार्मासिस्टों पर अंकुश लगाने और रोकने के लिए सतर्क रहना चाहिए।

    अब अपील का निस्तारण करते हुए पीठ ने कहा कि रिट याचिका ने नागरिक के स्वास्थ्य और जीवन को प्रभावित करने वाली बहुत गंभीर शिकायतें उठाई हैं।

    पीठ ने अपील की अनुमति दी और उच्च न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका को बहाल करते हुए कहा,

    "किसी भी पंजीकृत फार्मासिस्ट की अनुपस्थिति में अस्पताल/डिस्पेंसरी चलाने और/या फर्जी फार्मासिस्ट द्वारा ऐसे अस्पताल चलाने और यहां तक कि नकली फार्मासिस्ट द्वारा मेडिकल स्टोर चलाने और यहां तक कि बिना किसी फार्मासिस्ट के चलने से अंततः नागरिक के स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा। राज्य सरकार और बिहार राज्य फार्मेसी परिषद को नागरिक के स्वास्थ्य और जीवन के साथ खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।"

    अदालत ने उच्च न्यायालय को निर्देश दिया कि वह बिहार राज्य और बिहार राज्य फार्मेसी परिषद से (i) कितने सरकारी अस्पताल/अस्पताल/मेडिकल स्टोर/निजी अस्पताल फर्जी फार्मासिस्ट या बिना पंजीकृत फार्मासिस्ट के चलाए जा रहे हैं, इस पर विस्तृत रिपोर्ट/काउंटर मंगाएं; (ii) क्या बिहार राज्य फार्मेसी परिषद द्वारा प्रस्तुत तथ्यान्वेषी समिति की रिपोर्ट, जिसे राज्य सरकार को भेजा जाना था, पर राज्य सरकार द्वारा कोई कार्रवाई की गई है; (iii) क्या कोई फर्जी फार्मासिस्ट हैं जैसा कि रिट याचिका में आरोप लगाया गया है; (iv) ऐसे फर्जी फार्मासिस्ट के खिलाफ राज्य सरकार या बिहार राज्य फार्मेसी परिषद द्वारा कोई कार्रवाई की जाती है; (v) क्या पूरे बिहार राज्य में फार्मेसी प्रैक्टिस विनियम, 2015 का पालन किया जा रहा है या नहीं।

    केस टाइटल

    मुकेश कुमार बनाम बिहार राज्य | 2022 लाइवलॉ (SC) 995 | एसएलपी (सी) 8799/2020 | 29 नवंबर 2022 | जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एमएम सुंदरेश

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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