आधार को सोशल मीडिया अकाउंट से जोड़ने की केंद्र की योजना का परीक्षण करने को तैयार सुप्रीम कोर्ट, केंद्र से मांगा जवाब

LiveLaw News Network

13 Sep 2019 9:09 AM GMT

  • आधार को सोशल मीडिया अकाउंट से जोड़ने की केंद्र की योजना का परीक्षण करने को तैयार सुप्रीम कोर्ट, केंद्र से मांगा जवाब

    आधार कार्ड को सोशल मीडिया अकाउंट्स से जोड़ने के मामले में केंद्र के कदम पर सुप्रीम कोर्ट परीक्षण करने को तैयार हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या केंद्र सोशल मीडिया को नियंत्रित करने के लिए कोई नीति बनाने पर विचार कर रहा है ?

    सरकार से मांगा जवाब

    जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने केंद्र सरकार को इसका जवाब देने के लिए कहा है और मामले को 24 सितंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। इस दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि तीन उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने पर उसे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन तमिलनाडु सरकार ने विरोध करते हुए कहा कि ये कंपनियां देश के कानून का पालन नहीं कर रही हैं।

    पीठ ने केंद्र सरकार से कहा , " अगर आप भविष्य में इसे लेकर कोई कदम उठाने जा रहे हैं तो फिर हम इसे दूसरे नजरिए से देखें। इसलिए आप हमें जानकारी दें।"

    सुप्रीम कोर्ट ने फेसबुक की ट्रांसफर याचिका पर किया था नोटिस जारी

    गौरतलब है कि 20 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने फेसबुक की ट्रांसफर याचिका पर गूगल, ट्विटर, फेसबुक व अन्य सोशल मीडिया संस्थानों के अलावा केंद्र सरकार और तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। जस्टिस दीपक गुप्ता की अध्यक्षता वाली पीठ ने हालांकि मद्रास हाई कोर्ट को सुनवाई जारी रखने की अनुमति दी थी लेकिन निर्देश दिया कि वो इस संबंध में कोई आदेश जारी नहीं करेगा।

    सुनवाई में पीठ ने कहा था कि अपराध होने पर सरकार और निजता के बीच टकराव होता है। इसमें एक बैलेंस होना चाहिए कि किस शर्त के तहत जानकारी दी जा सकती है।

    फेसबुक और व्हाट्सएप की ओर से कपिल सिब्बल और मुकुल रोहतगी ने पीठ के सामने कहा था कि यह पूरे राष्ट्र की निजता को प्रभावित करता है। केंद्र पहले से ही इस मुद्दे की जांच कर रहा है। यदि कोई व्यक्ति यू-ट्यूब की प्रतिलिपि बनाता है और व्हाट्सएप संदेश के रूप में भेजता है तो उसका पता लगाना संभव नहीं।ये एक बहुत बड़ी समस्या है। इसलिए विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष सभी लंबित मामले को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करना चाहिए।

    वहीं तमिलनाडु की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल ने SC में ट्रांसफर का विरोध किया था। उन्होंने कहा कि हमारे पास एक गंभीर स्थिति है। केंद्र यह पता लगाने के लिए संघर्ष कर रहा है कि ब्लू व्हेल का निर्माता कौन है और कौन निर्देश देता है। कोई कहता है कि वह रूस का एक युवा व्यक्ति है।ब्लू व्हेल खेलते हुए भारत में कई लोगों की मौत हुई है।

    पीठ ने कहा था कि हम ब्लू व्हेल के बारे में जानते हैं। डार्क वेब में क्या हो रहा है वह तो ब्लू व्हेल से भी बदतर है। पीठ ने कहा कि मद्रास उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे का विस्तार किया है कि यदि मध्यस्थ की आवश्यकता नहीं है तो पुलिस को किसी अन्य व्यक्ति के विवरण के बारे में सूचित करना चाहिए।

    दरअसल सोशल मीडिया अकाउंटस को आधार से जोड़ने को लेकर तीन उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने के लिए फेसबुक ने याचिका दायर की है। सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से कहा गया कि देश-विरोधी, आपत्तिजनक और अश्लील संदेश बनाने वालों तक पहुंचने के लिए ये जरूरी है। वहीं व्हाटसएप की ओर से कहा गया था कि एन्क्रिप्शन के कारण इसका पता लगाना संभव नहीं है। फेसबुक का कहना है कि आधार को किसी निजी कंपनी से कैसे लिंक किया जा सकता है ? ये अत्यधिक सार्वजनिक महत्व का मामला है। ये निजता का मामला भी है जिस पर स्पष्टता की आवश्यकता है। याचिका यह कहते हुए दायर की गई है कि मद्रास, बॉम्बे और मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालयों में लंबित मामले काफी हद तक समान राहत चाहते हैं और इसमें कानून के समान या काफी समान प्रश्न शामिल हैं।

    दरअसल उच्च न्यायालयों में दाखिल याचिकाओं में अनिवार्य रूप से घोषणा की मांग की गई है कि आधार या किसी अन्य सरकारी अधिकृत पहचान प्रमाण को सोशल मीडिया खातों को प्रमाणित करने के लिए अनिवार्य किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं के अनुसार यह फर्जी और बेनामी प्रोफाइल द्वारा बनाए गए खतरे को रोकेगा।

    इस तरह की दो याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मद्रास HC ने ऑनलाइन दुरुपयोग और फर्जी खबरों को सोशल मीडिया के माध्यम से प्रसारित करने के मुद्दे पर विचार करने के लिए मामले का दायरा बढ़ाया था। कोर्ट ने फर्जी समाचार और साइबर दुरुपयोग के मामलों में बिचौलियों की देनदारियों को परिभाषित करने की भी मांग की। फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप और गूगल ने अदालत के सामने प्रस्तुत किया कि उनके लिए प्रत्येक व्यक्तिगत सामग्री की निगरानी करना संभव नहीं है।

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