न्यायालय अवमानना के अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए किए गए निर्माण को गिराने का आदेश दे सकता है, पढ़िए कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला

LiveLaw News Network

31 Oct 2019 6:42 AM GMT

  • न्यायालय अवमानना के अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए किए गए निर्माण को गिराने का आदेश दे सकता है, पढ़िए कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि अवमानना के अधिकार का प्रयोग करते हुए अदालत के इस बारे में विशेष आदेश के बावजूद किये गए काम को हटाने का आदेश अदालत दे सकती है।

    न्यायमूर्ति रवि मलिमथ और जस्टिस एचपी सन्देश की पीठ ने अदालत अवमानना अधिनियम के तहत सुरेश कोठारी को दो माह के साधारण कारावास की सजा सुनाई और रजिस्ट्री को 2000 रुपये का भुगतान करने को कहा। अदालत ने इसके अलावा आरोपी को इस आदेश की प्रति मिलने के एक महीना के भीतर अवैध निर्माण हटाने को कहा।

    क्या है मामला

    किशिन पंजाबी ने 2015 में दीवानी अदालत में एक मामला दायर कर आरोपी को पानी का कनेक्शन बहाल करने और निर्माण पर अस्थाई रोक लगाने का आदेश देने को कहा था। निचली अदालत ने पानी का कनेक्शन बहाल करने का आदेश तो दिया पर निर्माण पर कोई प्रतिबन्ध लगाने से मना कर दिया। पंजाबी ने इसके बाद हाईकोर्ट में अपील की। आरोपी ने पानी का कनेक्शन बहाल करने के आदेश को चुनौती दी।

    हाईकोर्ट ने 8 जून 2017 को आरोपी को आदेश दिया कि वह विवादित संपत्ति पर हर तरह के निर्माण कार्य को रोक दे। आरोपी इस आदेश के बावजूद निर्माण कार्य करता रहा और जानबूझकर अदालती आदेश की अवहेलना की, इसीलिए उसके खिलाफ अवमानना का मुकदमा दर्ज हुआ।

    कोठारी की दलील

    कोठारी की दलील थी कि अगर शिकायतकर्ता को यह लगा कि अदालत के आदेश की अवमानना हुई है तो उसे एकल जज के समक्ष नागरिक प्रक्रिया संहिता के आदेश 39 नियम 2A के अधीन आज्ञा का पालन नहीं होने का मामला दायर करना चाहिए था और उसने यह जो मामला दर्ज किया है वह अदालत में टिक नहीं सकत., क्योंकि यहां मामला दायर करने के अलावा भी विकल्प उपलब्ध हैं, इसलिए वर्तमान मामले को ख़ारिज कर दिया जाना चाहिए।

    उसने यह भी कहा कि निर्माण कार्य जारी रहने का जो आरोप लगाया गया है, वह पूरी तरह गलत है और अदालती आदेश पास होने के बाद किसी भी तरह का निर्माण कार्य नहीं हुआ है। शिकायतकर्ता ने अपने दावे के समर्थन में निर्माण कार्य का फोटोग्राफ पेश किया-

    फोटोग्राफ से स्पष्ट है कि आरोपी ने निर्माण कार्य जारी रखा है और इस तरह उसने जानबूझकर अदालत के आदेश की अनदेखी की है। अदालत की गरिमा और गौरव को बनाए रखना भी कोर्ट का उत्तरदायित्व है, इसलिए अदालत ज़रूरी समझे तो न्याय के हित में और अपने आदेश का पालन कराने के लिए दण्डित करने के अपने अधिकार का प्रयोग करने से उसे नहीं हिचकना चाहिए।

    अदालत ने क्या कहा,

    "फोटोग्राफ को देखने से यह स्पष्ट पता चलता है कि यथास्थिति बनाए रखने के आदेश के बावजूद निर्माण कार्य जारी रखा गया, इसलिए यह स्पष्ट है कि आरोपी ने अदालत के आदेश की जानबूझकर अनदेखी की है।"

    दिल्ली विकास प्राधिकरण बनाम स्किपर कंस्ट्रक्शन कं. (प्रा.) लि. एवं अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अदालत ने भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि अदालत की अवमानना करने वाले को अवमानना के फल का आनंद उठाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

    पीठ ने कहा,

    "ऊपर जो बातें कही गई हैं और उस मामले के फैसले में जिन सिद्धांतों को प्रतिपादित किया गया है, उसके अनुसार हमारी राय में आरोपी ने इस अदालत के आदेश का जानबूझकर उल्लंघन किया है और आरोपी को यह आदेश भी जारी किया जाना है कि वह उस अवैध निर्माण को गिरा दे जो आदेश देने के बाद किया गया है। अदालत ने अपने अंतरिम आदेश को आगे भी बढ़ा दिया।"



    Tags
    Next Story