भारतीय साक्ष्य अधिनियम- 'यदि दस्तावेज में कोई अस्पष्टता नहीं है तो धारा 92 का परंतुक (Proviso) 6 लागू नहीं होगा': सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
8 May 2021 1:20 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि दस्तावेज में कोई अस्पष्टता नहीं है तो भारतीय साक्ष्य अधिनियम (इंडियन एविडेंस एक्ट), 1872 की धारा 92 का परंतुक (Proviso) 6 लागू नहीं होगा।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 92 एक लिखित दस्तावेज के चीजों के संबंध में मौखिक साक्ष्य (Oral Evidence) प्रदान करता है। हालांकि धारा 92 का परंतुक 6 में दस्तावेज़ के बाहरी तथ्यों को प्रवेश करने की अनुमति देता है जो दिखाता है कि दस्तावेज़ की भाषा मौजूदा तथ्यों से किस तरीके से संबंधित है।
सुप्रीम कोर्ट एक अपील पर विचार कर रहा था, जिसमें यह सवाल था कि क्या मामले में समझौते को व्यापार चलाने के लिए लाइसेंस के रूप में व्याख्या किया जाना चाहिए या किराए के परिसर ( जहां व्यवसाय स्थित है) पर कब्जा करने के लिए लाइसेंस होना चाहिए।
यदि लीव और लाइसेंस एग्रीमेंट के तहत किराए के परिसर पर कब्जा किया जाता है तो सिविल सूट सुनवाई योग्य नहीं होगा और इस मामले को बॉम्बे किराया अधिनियम (Bombay Rent Act) के तहत विशेष अदालत में लेकर जाया जाएगा।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि साक्ष्य अधिनियम की धारा की धारा 92 का परंतुक 6 और धारा 95 के तहत लीव और लाइसेंस एग्रीमेंट के तहत किराए के परिसर पर कब्जा किया जा सकता है। इसलिए उच्च न्यायालय ने कहा कि सिविल सूट सुनवाई योग्य नहीं है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 95 कहता है कि,
"मौजूदा तथ्यों के संदर्भ में अस्पष्ट दस्तावेज के रूप में साक्ष्य - जब किसी दस्तावेज में प्रयुक्त भाषा अपने आप में स्पष्ट होती है, लेकिन मौजूदा तथ्यों के संदर्भ में अस्पष्ट होती है तो साक्ष्य की मदद से यह दिखाया जा सकता है कि इसका उपयोग अस्पष्ट रूप से किया गया है।"
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ किए गए अपील में कहा कि अनुबंध के पढ़ने से स्पष्ट है कि व्यवसाय को अपीलकर्ता से प्रतिवादी को स्थानांतरित करने का पक्षकारों का स्पष्ट इरादा था और इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रतिवादी को व्यवसाय संचालित करने के लिए पट्टे पर या लाइसेंस के रूप में दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में अधिनियम की धारा 92 का परंतुक 6 और धारा 95 पर निर्भरता नहीं दिखाया जा सकता क्योंकि दस्तावेज अपने अर्थ में स्पष्ट है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमाना की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि,
"इन दो धाराओं में स्पष्ट है कि ये धाराएं केवल उन मामलों के लिए है जहां दस्तावेज़ की शर्तों पर संदेह पैदा होता हैं, लेकिन यदि दस्तावेज में कोई अस्पष्टता नहीं है तो भारतीय साक्ष्य अधिनियम ( इंडियन एविडेंस एक्ट), 1872 की धारा 92 का परंतुक (Proviso) 6 और धारा 95 लागू नहीं होगा।"
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि,
"अगर इसके विपरीत दृष्टिकोण को सही माना जाता है तो इस पर अधिनियम की धारा 92 लागू होगी और मुख्य धारा से परे भी परंतुक के दायरे को बढ़ाएगा। उच्च न्यायालय द्वारा प्रदान की गई ऐसी व्याख्या कानूनी व्याख्या के मूल किरायेदारों का उल्लंघन करती है। विशेष रूप से अधिनियम की 92 ऐसे किसी भी मौखिक समझौते या बयान के सबूतों पर प्रतिबंध लगाता है, जो विरोधाभासी होता है, भिन्न होता है, अपनी शर्तों में जोड़ा या खत्म किया जा सकता है। यदि न्यायाधीश द्वारा कहा गया है कि मौखिक साक्ष्य यह दिखाने के लिए प्राप्त हो सकता है कि दस्तावेज़ की शर्तें वास्तव में व्यक्त किए गए शर्तों से भिन्न है। इसके अलावा यह विरोधाभासी सबूत देने या उन शर्तों को अलग करने की अनुमति के अनुसार होगा और इस तरह यह धारा 92 के अवरोधों के भीतर आता है। इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है विधायिका का उद्देश्य धारा 92 में कुछ अपवाद लागू करके धारा 92 के मूल उद्देश्य को खत्म करने की कोशिश की जा रही है।"
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के निर्णय को पलट दिया और ट्रायल कोर्ट के उस निर्णय को बहाल किया, जिसमें परिसर को प्रतिवादी द्वारा अपीलकर्ता को सौंपने का निर्देश दिया गया था।
केस का शीर्षक: मंगला वामन करंदीकर (डी) टी.आर. एलआरएस बनाम प्रकाश दामोदर रानाड
कोरम: सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस सूर्याकांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस
CITATION: LL 2021 SC 247