झूठे दावों के साथ अदालत आने वाले लोग न्याय पाने की वकालत नहीं कर सकते : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

18 Dec 2019 9:45 AM GMT

  • झूठे दावों के साथ अदालत आने वाले लोग न्याय पाने की वकालत नहीं कर सकते : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    न्यायालय से महत्वपूर्ण सामग्री या आवश्यक तथ्यों को छुपाने का सहारा लेने वाले पक्षकारों के खिलाफ कठोर रुख अपनाते हुए, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि जो लोग झूठे दावों के साथ अदालत में आते हैं, वे न्याय पाने की वकालत नहीं कर सकते।

    कोर्ट ने कहा,

    ''जो व्यक्ति न्याय चाहता है, उसे साफ सुथरे तरीके से न्यायालय आना चाहिए। वह व्यक्ति, जो झूठे दावों के साथ अदालत में आता है, वह न्याय पाने की वकालत नहीं कर सकता है और न ही न्यायालय का उसके पक्ष में क्षेत्राधिकार का प्रयोग करना उचित होगा। एक व्यक्ति जो न्याय चाहता है, उसे निष्पक्ष व न्यायसंगत तरीके से काम करना चाहिए। उस व्यक्ति के मामले में न्याय क्षेत्राधिकार का उपयोग नहीं किया जा सकता है, जिसने धोखाधड़ी करके फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नियुक्ति प्राप्त की है। कोई भी सहानुभूति और समान विचार उसके बचाव में नहीं आ सकता। हमारा विचार है कि न्याय या अनुकंपा को ऐसे मामले में कानून की ओर झुकने की अनुमति नहीं दी जा सकती है जहां किसी व्यक्ति ने धोखाधड़ी करके एक हैसियत हासिल कर ली है।''

    जिला न्यायाधीश, शिमला के आदेश के खिलाफ, एक वेद प्रकाश द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका को अनुमति देते हुए हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की। जिला न्यायाधीश ने रजनीश कुमार द्वारा विलंब की माफी की मांग करते हुए दायर आवेदन को अनुमति दे दी थी। हाईकोर्ट के समक्ष दायर पुनरीक्षण याचिका में रजनीश कुमार एक प्रतिवादी है।

    न्यायमूर्ति तारलोक सिंह चैहान ने विलंब की माफी के लिए दायर आवेदन को रद्द करते हुए कहा कि,

    ''यह तय कानून है कि एक व्यक्ति जो राहत, न्याय के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाता है, वह उन सभी सामग्रियों / महत्वपूर्ण तथ्यों का खुलासा करने के लिए पूरी तरह से बाध्य है, जो मामले में उठाए गए मुद्दों के स्थगन या न्यायिक निर्णय पर असर डालते हैं।

    दूसरे शब्दों में, उसकी कोर्ट के प्रति ड्यूटी है कि वह सभी तथ्यों को सामने लाए और उसकी जानकारी में आए किसी भी भौतिक तथ्य को छुपाने/दबाने से बचना चाहिए या जिसे वह सामान्य विवेक के व्यक्ति से अपेक्षित परिश्रम का अभ्यास करके जान सकता था। अगर वह महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाने या न्याय की शुद्ध धारा को प्रदूषित करने का प्रयास करने का दोषी पाया जाता है, तो अदालत को न केवल अधिकार है, बल्कि ऐसे व्यक्ति को राहत देने से इनकार करने का उसका कर्तव्य है।''

    मामले के तथ्यों में, जिला न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर एक जवाबी दावे में प्रतिवादी की देरी के लिए अनुकंपा की मांग वाले आवेदन को स्वीकार किया था। जो इस आधार पर स्वीकार किया गया था कि प्रतिवादी पक्ष को उनके वकील द्वारा गुमराह किया गया था कि मामला लंबित है,जबकि केस को एक तरफा आदेश जारी करके निपटाया जा चुका था।

    अदालत के रिकॉर्ड और उसमें दर्ज पक्षों की उपस्थिति को देखते हुए न्यायालय ने याचिकाकर्ता की इस दलील के साथ सहमति व्यक्त की कि प्रतिवादी ने जानबूझकर याचिकाकर्ता के काउंटर दावे के लंबित होने के ज्ञान के बारे में तथ्य को दबा दिया था।

    ''यह सबूतों से स्पष्ट है कि प्रतिवादी केवल 22 मार्च 2012 को जवाबी दावे के लंबित होने के बारे में पूरी तरह से नहीं जानता था, फिर भी इस तथ्य को जानबूझकर और इच्छाशक्ति से छुपाया गया है और बहाली या पुनःस्थापन के लिए दायर आवेदन में नहीं बताया गया। वास्तव में पूरा दोष पहले के वकील पर ड़ाल दिया गया , जो उनका प्रतिनिधित्व कर रहा था।''

    अदालत ने विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि गलत या भ्रामक बयान दर्ज करना प्रतिकूल प्रतिक्रिया को आमंत्रित करने के लिए पर्याप्त है।

    इसके लिए न्यायालय ने, दलीप सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2010) 2 एससीसी 114, में दिए गए फैसले को संदर्भित किया गया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रश्न पर विचार किया था कि क्या उसे राहत से इनकार करना जाना चाहिए, जिसने निर्धारित प्राधिकारी के समक्ष दायर किए गए आवेदन में सही तथ्यों को नहीं बताया है और जो पवित्र तरीके से हाईकोर्ट नहीं आया है।

    इसमें यह कहा गया कि विवेकाधीन और न्यायसंगत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते समय, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को उनकी संपूर्णता में देखा जाना चाहिए ताकि यह पता चल सके कि न्याय में कोई अपराध या अदालत की गलती तो नहीं है। यदि अपीलकर्ता पवित्र तरीके से आगे नहीं आया है, उसने खुलकर उन सभी तथ्यों का खुलासा नहीं किया है जिनके बारे में वह जानता है और वह कार्यवाही में देरी करने का इरादा रखता है, तब न्यायालय संवैधानिक आचरण के आधार पर दावा खारिज करेगा।

    इस प्रकार, जिला न्यायाधीश, शिमला द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया गया था और प्रतिवादी द्वारा सीमा अधिनियम की धारा 5 के तहत दायर आवेदन को खारिज करने का आदेश दिया गया।

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें



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