महज समलैंगिक या ट्रांसजेंडर होने के कारण कर्मचारियों को नौकरी से नहीं निकाला जा सकता : अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

16 Jun 2020 5:39 AM GMT

  • महज समलैंगिक या ट्रांसजेंडर होने के कारण कर्मचारियों को नौकरी से नहीं निकाला जा सकता : अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट

    “यदि नियोक्ता महज समलैंगिक या ट्रांसजेंडर होने के कारण किसी कर्मचारी को नौकरी से निकालता है, तो वह कानून का उल्लंघन करता है।”

    अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसले में व्यवस्था दी है कि कर्मचारियों को नौकरियों से महज इसलिए नहीं निकाला जा सकता कि वे ट्रांसजेंडर और समलैंगिक हैं।

    कोर्ट ने 6 : 3 के बहुमत के फैसले में कहा कि कार्यस्थल पर लैंगिक आधार पर भेदभाव रोकने वाला 1964 का नागरिक अधिकार कानून कर्मचारियों को लैंगिक रुझान और लैंगिक पहचान के आधार पर भी होने वाले भेदभाव से सुरक्षा प्रदान करता है।

    नागरिक अधिकार कानून कार्यस्थल पर नस्ल, रंग, धर्म, लिंग अथवा राष्ट्रीय मूल के आधार पर भेदभाव से रोकता है। केवल समलैंगिक अथवा ट्रांसजेंडर होने के नाम पर नियोक्ता द्वारा हटा दिये गये पुराने कर्मचारी बॉस्तोक की याचिका से उत्पन्न इस मामले में कोर्ट के समक्ष विचार के लिए प्रश्न था कि क्या संबंधित कानून लैंगिक रुझान अथवा लैंगिक पहचान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है?

    कोर्ट ने माना कि समलैंगिकता या ट्रांसजेंडर होने के आधार पर होने वाला भेदभाव निश्चित तौर पर लैंगिक आधार पर भेदभाव के समान है। कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति की समलैंगिकता या ट्रांसजेंडर स्थिति रोजगार निर्णयों के लिए प्रांसगिक नहीं है।

    जस्टिस नील मैकगिल गोर्सुश द्वारा लिखे गए बहुमत के फैसले का अंश इस प्रकार है :-

    किसी व्यक्ति की समलैंगिकता या ट्रांसजेंडर की स्थिति रोजगार निर्णयों के लिए प्रासंगिक नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि लिंग के आधार पर किसी व्यक्ति के साथ भेदभाव किए बिना समलैंगिक या ट्रांसजेंडर होने के लिए उसके साथ भेदभाव करना असंभव है।

    उदाहरण के तौर पर विचार कीजिए कि एक नियोक्ता के दो कर्मचारी हैं और दोनों पुरुषों के प्रति आकर्षित हैं। दोनों कर्मचारी नियोक्ता के लिए सभी दृष्टि से समान हैं, केवल इस बात को छोड़कर कि एक कर्मचारी पुरुष है और दूसरी महिला।

    यदि नियोक्ता पुरुष कर्मचारी को सिर्फ इसलिए नौकरी से बाहर निकाल देता है कि वह पुरुष के प्रति आकर्षित है, तब नियोक्ता उस पुरुष कर्मचारी के साथ भेदभाव करता है, क्योंकि वह महिला कर्मचारी के समान कृत्य को बर्दाश्त कर लेता है।

    इसे अलग तरीके से देखें, तो नियोक्ता जानबूझकर कर्मचारी को उसके लिंग के आधार पर नौकरी से निकाल देता है और प्रभावित कर्मचारी का लिंग उसकी बर्खास्तगी का कारण बनता है। या एक नियोक्ता को लें, जो उस ट्रांसजेंडर व्यक्ति को नौकरी से हटा देता है, जिसे जन्म के समय पुरुष की पहचान मिली थी, लेकिन बाद में उसकी पहचान महिला की हो गयी।

    यदि इसके उलट नियोक्ता जन्म के समय महिला और बाद में पुरुष की पहचान रखने वाली कर्मचारी को नौकरी पर बरकरार रखता है तो नियोक्ता जानबूझकर उस व्यक्ति को दंडित करता है जिसकी जन्म के समय पहचान पुरुष की थी, जबकि जन्म के समय महिला पहचान रखने वाली कर्मचारी को बर्दाश्त कर लेता है। यहां एक बार फिर से स्पष्ट तौर पर निजी लैंगिक भेद नौकरी से बर्खास्तगी का अस्वीकार्य कारण बनता है।

    जब एक नियोक्ता किसी कर्मचारी को समलैंगिक या ट्रांसजेंडर होने के कारण नौकरी से निकालता है, तो वह आवश्यक तौर पर और जानबूझकर लिंग के आधार पर व्यक्ति के खिलाफ भेदभाव करता है। और यही कारण है कि टाइटल VII के तहत हमेशा से दायित्व निर्धारित करने की मांग की जाती रही है।

    एक नियोक्ता जो समलैंगिक होने या ट्रांसजेंडर होने के कारण कर्मचारी को नौकरी से हटा देता है, जबकि विपरीत लिंग वाले व्यक्तियों से इस बारे में पूछता भी नहीं। इसका मतलब है कि नौकरी से बर्खास्तगी के निर्णय में लिंग की आवश्यक और निर्विवाद भूमिका होती है, जबकि टाइटल VII इसे निषिद्ध करता है।

    एक नियोक्ता हन्नाह नाम की महिला को इसलिए नौकरी से निकाल देता है, क्योंकि उसमें महिलाओं के लक्षण अपर्याप्त हैं, और साथ ही बॉब नामक एक पुरुष को भी इसलिए बर्खास्त कर देता है कि उसमें पुरुषों के लक्षण कम हैं।

    उस नियोक्ता को पुरुष और महिला को समान मानना चाहिए था, लेकिन दोनों ही मामलों में नियोक्ता ने लिंग के आधार पर कर्मचारी को नौकरी से निकाल दिया। इस प्रकार नियोक्ता टाइटल VII के दायरे में आने से बचने के बजाय दोहरी गलती की है।

    तीन न्यायाधीशों ने असहमति का फैसला सुनाया :-

    जस्टिस एलिटो, जस्टिस थॉमस एवं जस्टिस कावानो ने असहमति का निर्णय दिया। जस्टिस एलिटो ने जोर दिया कि लिंग के आधार पर भेदभाव लैंगिक रुझान अथा लैंगिक पहचान के कारण भेदभाव से अलग है।

    उन्होंने कहा :

    "आज ज्यादातर अमेरिकी ऐसे व्यक्तियों को जानते हैं जो समलैंगिक पुरुष (गे), समलैंगिक स्त्री (लेस्बियन), या ट्रांसजेंडर हैं और वे चाहते हैं कि उनके साथ भी सम्मान, महत्त्व और निष्पक्षता के साथ व्यवहार किया जाये, जिसका हर कोई हकदार है। लेकिन इस कोर्ट का अधिकार सिर्फ यह कहने भर तक सीमित है कि कानून क्या है।"

    जस्टिस कावानो ने कहा कि बहुमत का फैसला संविधान प्रदत्त शक्तियों के पृथक्करण का उल्लंघन है।

    उन्होंने अपनी असहमति की राय निम्न प्रकार से दी : -

    संविधान प्रदत्त शक्तियों के पृथक्करण के उल्लंघन को लेकर मेरी चिंता के बावजूद, गे और लेस्बियन अमेरिकियों द्वारा आज प्राप्त महत्वपूर्ण जीत को कबूल करना उचित है। लाखों गे और लेस्बियन अमेरिकियों ने वास्तविकता तौर पर और कानून में भी बराबर का दर्जा पाने के लिए कई दशकों तक कठिन परिश्रम किया है।

    उन्होंने अक्सर विधायी और न्यायिक क्षेत्र में खड़ी बाधाओं से जूझते हुए असाधारण दृष्टि, तप, और धैर्य का प्रदर्शन किया है, लेकिन अपने दैनिक जीवन में उल्लेख करने के लिए नहीं। उनके पास शक्तिशाली नीतिगत तर्क हैं और आज के परिणाम पर गर्व कर सकते हैं। हालांकि, मेरा मानना है कि संविधान प्रदत्त शक्तियों के पृथक्करण के तहत टाइटल VII में संशोधन करना अमेरिकी कांग्रेस का काम है, न कि कोर्ट का। इसलिए मुझे न्यायालय के फैसले से सम्मानपूर्वक असंतोष व्यक्त करना चाहिए।

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