कर्मचारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की अर्ज़ी मंज़ूर होने से पहले उसे कभी भी वापस ले सकता है, पढ़िए दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला

LiveLaw News Network

30 Sep 2019 2:54 PM GMT

  • कर्मचारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की अर्ज़ी मंज़ूर होने से पहले उसे कभी भी वापस ले सकता है, पढ़िए दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी कर्मचारी का स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति का आवेदन उस कर्मचारी का प्रस्ताव है, जिसे वह स्वीकार किए जाने से पहले कभी भी वापस ले सकता है।

    वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता ने 24 साल की सेवा पूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन दिया था, लेकिन इसके एक सप्ताह के बाद ही उसने इसे वापस ले लिया।

    इसे वापस लेने के बाद भी, प्रतिवादी कंपनी ने एक आदेश पास किया जिसमें उसने कहा कि उसके आवेदन पर सकारात्मक रूप से विचार किया गया और उसे अब सेवा से छुट्टी दे दी गई है।

    यह है मामला :

    एक महिला ने संविधान के अनुच्छेद 226 के अधीन हाईकोर्ट में अपील की कि उसने जब स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए अर्ज़ी दी थी, उस समय वह अपनी भाई के अस्पताल में भर्ती होने के कारण काफ़ी मानसिक और शारीरिक तनाव में थी। बाद में उसे पता चला कि उसके भाई का स्वास्थ्य ठीक हो रहा है आर उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई, जिसके बाद उसने अपने अर्ज़ी वापस लेने का आग्रह किया था।

    प्रतिवादी कंपनी ने अपने प्रति-हलफ़नामे में कहा कि जब याचिकाकर्ता ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का आग्रह किया तो इसे उपयुक्त अधिकारी ने अनुमोदित कर दिया और इस संबंध में कंपनी के बोर्ड ने एक प्रस्ताव भी पास किया जिसकी सूचना उसको दे दी गई। इस प्रस्ताव के बारे में जानने के बाद ही उसने इस अर्ज़ी को वापस लेने का आग्रह किया।

    याचिकाकर्ता के वक़ील एमके भारद्वाज ने कहा कि विनियमन के पैराग्राफ़ 33(2) में स्पष्ट कहा गया है कि अगर किसी कर्मचारी ने स्वेच्छिक सेवानिवृत्ति लेने का निर्णय लिया है, वह अपना यह आग्रह वापस भी ले सकता है।

    इस मामले में बलराम गुप्ता बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में भी भरोसा जताया। इस फ़ैसले में कहा गया था कि एक बार जब याचिकाकर्ता रिटायर होने का प्रस्ताव देता है और वह बहुत ही जल्दी इस प्रस्ताव को वापस ले लेता है तो उसके प्रस्ताव पर विचार नहीं करने का कोई कारण नहीं दिखता।

    प्रतिवादी कंपनी की दलील

    प्रतिवादी कंपनी के वक़ील प्रशांतो सेन ने कहा कि याचिकाकर्ता कोई नियमित कर्मचारी नहीं थी और वह कॉंट्रैक्ट पर काम कर रही थी। फिर उसने इस बात को छिपाया कि उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया है और वह उसका व्यवहार इस बारे में पारदर्शी नहीं था ।

    सेन ने यह भी कहा कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का आग्रह अगर पैराग्राफ़ 33(2)(ii) के अधीन किया जाता अगर तो इसे पैराग्राफ़ 33(2)(v) के तहत वापस लिया जा सकता था। पर याचिकाकर्ता ने अपना आवेदन 33(2)(i) के तहत किया था और इसलिए वह इसे वापस नहीं ले सकती है।

    अदालत ने याचिकाकर्ता के दावे को स्वीकार कर लिया और कहा कि ऐसा कोई सबूत पेश नहीं किया गया है जिससे यह पता चले कि बोर्ड ने उसके आग्रह को स्वीकार कर लिया था इस बात की जानकारी उसे दी गई थी। इस हिसाब से यह क़दम पैराग्राफ़ 33(2)(iii) का उल्लंघन करता है जिसमें कहा गया है कि अगर इस निर्णय के बारे में अपीलकर्ता को अवधि की समाप्ति से पहले नहीं बताया गया है तो रिटायरमेंट के बारे में किसी भी निर्णय को लागू नहीं किया जा सकता है।

    अदालत ने इस दलील को भी अस्वीकार कर दिया कि कर्मचारी कॉंट्रैक्ट पर थी, नियमित नहीं और कहा कि वर्तमान याचिका कॉंट्रैक्ट को तोड़ने के मुतल्लिक नहीं दी गई है बल्कि एक कंपनी के निर्णय को चुनौती दी गई है। फिर, प्रतिवादी को मनमाने ढंग से काम करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती।

    न्यायमूर्ति रेखा पाटिल ने इसलिए स्वैच्छिक अवकाश के इस आवेदन को निरस्त कर दिया और प्रतिवादी कंपनी को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता के आवेदन को वापस लिया गया माने।



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