'अदालत का मजाक मत बनाओ': सुप्रीम कोर्ट ने लॉ स्टूडेंट की COVID-19 इलाज के लिए 'चमत्कारी' हर्बल दवा की आपूर्ति की अनुमति देने की मांग वाली याचिका खारिज की

LiveLaw News Network

17 July 2021 2:56 AM GMT

  • अदालत का मजाक मत बनाओ: सुप्रीम कोर्ट ने लॉ स्टूडेंट की COVID-19 इलाज के लिए चमत्कारी हर्बल दवा की आपूर्ति की अनुमति देने की मांग वाली याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आंध्र प्रदेश के नेल्लोर से एक हर्बल दवा की आपूर्ति फिर से शुरू करने के लिए निर्देश देने के लिए दायर एक जनहित याचिका को खारिज किया, जिसमें दावा किया गया था कि इस दवा ने चमत्कारिक रूप से COVID-19 रोगियों को ठीक कर दिया है।

    सीजेआई एनवी रमाना की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले के कृष्णापट्टनम टाउन से बोनिगी आनंदैया द्वारा बनाई गई हर्बल दवा की आपूर्ति की अनुमति देने के लिए कानून के छात्र द्वारा दायर याचिका में निर्देश जारी किया।

    बेंच ने सुनवाई के दौरान शुरू में याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील को हाईकोर्ट जाने को कहा।

    सीजेआई ने कहा कि,

    "हां, आप क्या चाहते हैं? उच्च न्यायालय जाओ।"

    वकील ने जवाब दिया कि,

    "तकनीकी रूप से हां। रिट याचिका निष्फल हो गई है।"

    सीजेआई ने आगे कहा कि,

    "इस अदालत का मजाक मत बनाओ। याचिका खारिज की जाती है।"

    पीठ ने याचिका खारिज कर दी और याचिका को 'वापस ले लिया' कहकर खारिज करने के वकील के अनुरोध को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

    यह कहते हुए कि आयुष मंत्रालय ने दवाओं में कुछ भी हानिकारक नहीं पाया है, याचिका में कहा गया है कि हर्बल दवा ने निम्न रक्त ऑक्सीजन के स्तर वाले गंभीर रोगियों सहित कई रोगियों को चमत्कारी परिणाम दिखाए हैं।

    याचिका में बोनिगी आनंदैया को मनगढ़ंत कहानी द्वारा दवा के उत्पादन और वितरण बढ़ाने के लिए समर्थन की मांग करते हुए जिला प्रबंधन के आदेश को भी चुनौती दी गई है। दवा की प्रभावशीलता के संदर्भ में वैज्ञानिक साक्ष्य की कमी और किसी पूर्व-स्थापित प्रक्रिया के माध्यम से अनुमति नहीं होने के कारण जिला अधिकारियों द्वारा इस दवा की आपूर्ति प्रतिबंधित है।

    याचिका में कहा गया है कि मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए जब रोजाना हजारों लोगों की जान जा रही है, 100% प्राकृतिक अवयवों से बने हर्बल दवा के वितरण को रोकने का सरकार का निर्णय मनमाना और अनुचित है।

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