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घरेलू हिंसा की शिकायत की सुनवाई वहां की जा सकती है, जहां पीड़ित महिला रहती है, कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला

LiveLaw News Network
23 Oct 2019 3:05 AM GMT
घरेलू हिंसा की शिकायत की सुनवाई वहां की जा सकती है, जहां पीड़ित महिला रहती है, कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला
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कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर कोई महिला घरेलू हिंसा की पीड़ित है तो मजिस्ट्रेट को यह अधिकार है कि वह उसके मामले को वहां सुने जहां यह महिला अस्थाई तौर पर रह रही है। यह ज़रूरी नहीं है कि इस मामले की सुनवाई वही अदालत करेगी, जिसके अधिकार क्षेत्र में वह स्थान आता है जहां अपराध हुआ है।

न्यायमूर्ति मोहम्मद नवाज ने केवी विजयकुमार की इस बारे में याचिका को खारिज करते हुए कहा, "अधिनयम की धारा 27(1)(a) में कहा गया है कि न्यायिक मजिस्ट्रेट या मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रे, जैसी भी स्थिति हो, पीड़ित स्थाई या अस्थाई रूप से जहां भी रहता/रहती है, इस मामले की सुनवाई करने और अधिनयम के तहत संरक्षण आदेश या कोई अन्य आदेश देने के लिए उचित अदालत होगी।"

अलग हुए पति ने क्रमशः 9 मार्च 2018 और 14 नवंबर 2018 को मजिस्ट्रे और सत्र अदालत के फैसले को चुनौती दी थी। यह कहा गया कि इस मामले में अधिनयम की धारा 12 के तहत एक महिला द्वारा दायर मामले की सुनवाई करने का अधिकार मजिस्ट्रेट को है। इसी आदेश को चुनौती दी गई थी।

मामले की पृष्ठभूमि

प्रतिवादी एस गीता और याचिकाकर्ता की 17.04.2005 को शादी हुई थी। 2012 में पत्नी ने सवानुर पुलिस थाने में याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 506, 34 और 498A के तहत एक मामला दायर किया। उसने आरोप लगाया कि सवानुर पुलिस थाने के अधिकार क्षेत्र में आने वाली जगह पर उसके खिलाफ यह हिंसा हुई है।

बाद में घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 12 के तहत ट्रैफिक कोर्ट-V में अतिरिक्त सीएमएम की अदालत में उसने मामला दायर किया।

पति की दलील

वर्तमान मामले में कहा गया है कि याचिकाकर्ता के साथ हिंसा प्रथम याचिकाकर्ता के साथ मेल्लनगट्टी, सवानुर तालुक में हुआ न कि बेंगलुरु में। सिर्फ इस वजह से कि प्रतिवादी बेंगलुरु में अपने मां-बाप के साथ रह रही है, जहां किसी भी तरह की घरेलू हिंसा नहीं हुई है, इसलिए बेंगलुरु की अदालत में दायर मामला अदालत में टिक नहीं सकता।

यह भी कहा गया कि अधिनियम 2005 की धारा 28 के तहत सारी कार्यवाहियां सीआरपीसी के तहत होंगी। यह दलील दी गई कि अदालत में सीआरपीसी के अध्याय XIII के प्रावधानों को नहीं माना जा रहा है। सीआरपीसी की धारा 177 के अनुसार किसी अपराध की जांच और उसकी अदालती कार्यवाही वहां होनी चाहिए, जहां यह अपराध हुआ है। निचली अदालत को इस मामले की सुनवाई करने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि कथित अपराध सवानुर तालुक के मेल्लनगट्टी गांव में हुआ है।

पत्नी की दलील

पत्नी की ओर से दलील में कहा कि अधिनियम 2005 की धारा 2(i) के तहत मजिस्ट्रे की परिभाषा के तहत क्षेत्राधिकार वाला मजिस्ट्रेट शामिल है, जहां पीड़ित व्यक्ति रहता है, इसलिए धारा 12 के तहत जो मामला दायर किया गया है,उसकी सुनवाई हो सकती है।

अदालत का फैसला

घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित अधिनियम 2005 एक विशेष अधिनयम है जो घरेलू हिंसा की पीड़ित महिलाओं को प्रभावी सुरक्षा देता है। इस तरह की अपील की सुनवाई के लिए मजिस्ट्रे का अधिकारक्षेत्र इस अधिनियम की धारा 27 के अनुरूप होगा। इस तरह की अदालत सुरक्षा का आदेश देने के योग्य है और वह इस मामले की इस अधिनियम के तहत सुनवाई कर सकती है।

फैसले की कॉपी डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें


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