संभागीय आयुक्त को आंगनवाड़ी सेविका की नियुक्ति को रद्द करने का अधिकार नहीं : बॉम्बे हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

17 Nov 2019 4:30 AM GMT

  • संभागीय आयुक्त को आंगनवाड़ी सेविका की नियुक्ति को रद्द करने का अधिकार नहीं :  बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की एक पूर्ण पीठ ने माना है कि संभागीय आयुक्त (डिविजनल कमीश्नर) के पास महाराष्ट्र जिला परिषदों और पंचायत समितियों अधिनियम 1961 की धारा 267 ए के तहत यह अधिकार क्षेत्र नहीं है, कि वह एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडीएस) के तहत गठित चयन समिति की सिफारिश पर नियुक्त की गई आंगनबाड़ी सेविका की नियुक्ति को रद्द कर दे।

    औरंगाबाद पीठ के जस्टिस एस.वी गंगापुरवाला, जस्टिस आ.रवी घुगे और और जस्टिस ए.एस. किलोर की पीठ ने एकल पीठ द्वारा 20 जनवरी, 2012 के एक फैसले में फ्रेम किए गए उक्त मुद्दे का जवाब दिया है। एकल पीठ ने इस मुद्दे को फ्रेम करने के बाद मुख्य न्यायाधीश से आग्रह किया था कि इसे बड़ी पीठ के पास भेज दिया जाए, जिसके बाद यह मुद्दा सुनवाई के लिए इस पीठ के समक्ष आया था।

    केस की पृष्ठभूमि

    रिट याचिका एक 27 वर्षीय संगीता गडिलकर द्वारा दायर की गई थी, जिन्हें एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडी योजना) के तहत परनेर तालुका, अहमदनगर जिले के बाल विकास परियोजना अधिकारी द्वारा आमंत्रित किए गए आवेदनों के बाद आंगनवाड़ी सेविका नियुक्त किया गया था।

    तत्पश्चात, सुनीता अधव, जो संगीता की याचिका में प्रतिवादी नंबर 5 है, ने 19 सितम्बर 2009 को संभागीय आयुक्त, नासिक के समक्ष शिकायत पेश की और इस आधार पर संगीता की नियुक्ति को चुनौती दी कि वह स्वयं लगभग चार वर्षों से एक गाँव की बालवाड़ी में काम कर रही थी। इसलिए 12 मार्च, 2008 के सरकारी प्रस्ताव के आधार पर नियुक्ति की योग्यता या पात्रता में उसे वरीयता दी जानी चाहिए थी।

    एक अन्य आधार यह था कि याचिकाकर्ता ग्राम मजमपुर, तालुका परनेर, जिला अहमदनगर से संबंधित नहीं थी। इसलिए वह नियुक्त होने के योग्य नहीं थी। संभागीय आयुक्त ने अपील को अनुमति दे दी और याचिकाकर्ता के चयन को रद्द करते हुए निर्देश दे दिया कि नए सिरे से चयन प्रक्रिया का संचालन किया जाए।

    याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष 31 मई, 2010 के संभागीय आयुक्त के फैसले को चुनौती दी थी और 11 फरवरी, 2011 के निर्णय द्वारा अंतरिम राहत दी गई थी। जिसमें 31 मई, 2010 को दिए गए आदेश को रद्द कर दिया गया था और मामले को उसी आयुक्त के पास भेज दिया गया था ताकि मामले में दोबारा सुनवाई की जा सकें।

    उक्त अधिकारी को यह तय करने के लिए निर्देशित किया गया था कि क्या उनके पास महाराष्ट्र जिला परिषदों और पंचायत समितियों अधिनियम, 1961 की धारा 267 ए के तहत अपील की सुनवाई का अधिकार है?

    25 मई, 2011 के एक आदेश में, संभागीय या मंडलीय आयुक्त ने यह कहते हुए अपील की अनुमति दी थी कि उक्त अधिनियम की धारा 267 ए के तहत उनके पास शक्ति थी और सरकार के दिनांक 5 अगस्त 2010 के प्रस्ताव के खंड 5 के मद्देनजर उनके समक्ष ऐसी अपील सुनवाई योग्य या अनुरक्षणीय थी।

    इस प्रकार, याचिकाकर्ता ने संभागीय आयुक्त के फैसले को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की जो हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश के समक्ष पेश हुई।

    कोर्ट का फैसला

    एकल न्यायाधीश के समक्ष याचिकाकर्ता का तर्क था कि 5 अगस्त, 2010 के सरकारी प्रस्ताव के खंड 5 में यह उपाय उपलब्ध कराया गया था कि आंगनबाड़ी सेविका के चयन के खिलाफ शिकायत संबंधित जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के समक्ष की जा सकती है ,न किसी मंडलीय या संभागीय आयुक्त के समक्ष।

    तब एकलपीठ के जज ने 31 जुलाई, 2007 को दिए गए एक आदेश पर भरोसा किया, जो ''शालू दीपक बाछव बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य के मामले में'' व इससे जुड़ी अन्य रिट याचिकाओं के समूह के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच द्वारा पारित किया गया था। जिसमें यह निष्कर्ष निकाला गया था कि डिवीजनल कमिश्नर के पास धारा 267 ए को लागू करने की शक्ति नहीं है। एकल न्यायाधीश ने शालू दीपक के मामले में डिवीजन बेंच द्वारा लिए गए विचार को संदर्भित किया।

    धारा 267 ए आयुक्त की शक्तियों से संबंधित है,जिसके तहत जिला परिषद या पंचायत समिति के गैरकानूनी आदेश या प्रस्ताव के निष्पादन को निलंबित किया जा सकता है। यह सार्वजनिक हित में है कि आयुक्त किसी भी आदेश या प्रस्ताव के निष्पादन को निलंबित कर सकता है या जिला परिषद या उसकी किसी समिति या पंचायत समिति द्वारा किसी भी कार्य को करने से रोक सकता है। लेकिन ऐसा तभी किया जा सकता है,जब वह यह निष्कर्ष निकालता है कि यह सभी आदेश या कार्य गैर कानूनी है या अधिनियम की धारा 261 (1) के तहत दिए गए या जारी किए आदेश या निर्देश के परस्पर विरोधी या असंगत है।

    दिनांक 31 अगस्त, 1999 के जीआर और बाद के दिनांक 11 नवंबर, 1999 के जीआर की जांच के बाद, पूर्ण पीठ ने निम्नलिखित निष्कर्ष निकाला-

    (ए) जिला परिषद द्वारा आंगनवाड़ी सेविका /मदतनीस की नियुक्ति के लिए कोई आदेश जारी नहीं किया गया है।

    (बी) 11 नवम्बर 1999 के सरकारी प्रस्ताव द्वारा निर्धारित आठ सदस्यीय समिति, आंगनवाड़ी सेविका/मदतनीस की नियुक्ति प्राधिकारी है। इनकी नियुक्तियां किसी भी स्थायी पद पर नहीं हैं और विशुद्ध रूप से मानद हैं।

    (सीं) ऐसे उम्मीदवारों के चयन के लिए गठित समिति, बाल विकास अधिकारी के माध्यम से, समिति की ओर से नियुक्ति का आदेश जारी करती है।

    (डी) जिला परिषद् द्वारा आंगनबाड़ी सेविका/ मदतनीस की नियुक्ति के लिए कोई प्रस्ताव पारित करने या कोई निर्णय लेने का सवाल ही नहीं उठता है।

    (ई) जैसा कि जिला परिषद द्वारा जारी कोई आदेश या प्रस्ताव पारित नहीं हुआ है, उक्त अधिनियम की धारा 267 ए, धारा 261 (1) के बावजूद,लागू नहीं होती है।

    ''उपरोक्त विचार करते हुए, हम मानते हैं कि संभागीय आयुक्त उक्त अधिनियम की धारा 267 ए के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए बाल विकास परियोजना अधिकारी के माध्यम से चयन समिति द्वारा नियुक्त की गई आंगनवाड़ी सेविका या मदतनीस के आदेश को निलंबित या उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।''

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं



    Tags
    Next Story