DGP की नियक्ति के फैसले में SC ने किया संशोधन, अब 6 महीने के कार्यकाल वाले IPS भी बन सकते हैं DGP
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13 March 2019 9:49 AM GMT
राज्यों में पुलिस महानिदेशक (DGP) के चयन और नियुक्ति की प्रक्रिया के आदेश में संशोधन करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि कम से कम 6 महीने के सेवाकाल वाले वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को ही अब DGP नियुक्त किया जा सकता है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस एल. नागेश्वर राव की पीठ ने 3 जुलाई 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में संशोधन किया है। पीठ ने कहा है कि UPSC को केवल उन IPS अधिकारियों को DGP के पद पर नियुक्त करने के लिए विचार करना चाहिए जिनके पास न्यूनतम 6 महीने का सेवाकाल है। ये चयन विशुद्ध रूप से योग्यता पर होना चाहिए।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सिर्फ उन IPS अफसरों का चयन किया जाएगा जिनका कार्यकाल 2 वर्ष से ज्यादा हो। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पूर्व DGP प्रकाश सिंह और अन्य की याचिकाओं पर आया है।
इससे पहले 16 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों में पुलिस महानिदेशक (DGP) के चयन और नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव करने से इनकार करते हुए राज्य सरकारों की याचिका खारिज कर दी थी।
पंजाब, हरियाणा, केरल, पश्चिम बंगाल और बिहार सरकार ने राज्य में DGP नियुक्त करने के नियम में बदलाव की गुहार लगाई थी जिसे करने से चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ ने इनकार कर दिया।
पीठ ने कहा था कि ये नियम इसलिए बनाया गया ताकि राज्यों के DGP राजनीतिक दखल से दूर रहें। दरअसल इन राज्यों ने याचिका दी थी कि DGP के चयन की सूची UPSC द्वारा दिए जाने के नियम में बदलाव हो क्योंकि कानून व्यवस्था राज्य का विषय है। यह कार्य राज्य की कमेटी को सौंपा जाना चाहिए।
गौरतलब है कि 3 जुलाई 2018 को देशभर में पुलिस सुधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और सभी राज्यों को आदेश दिया था कि वो कहीं भी कार्यकारी पुलिस महानिदेशक नियुक्त नहीं करेंगे।
पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि कार्यकारी DGP नियुक्त करना सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि राज्य DGP का पद रिक्त होने से 3 महीने पहले UPSC को वरिष्ठ IPS अफसरों की सूची भेजेंगे और राज्य उसी अफसर को DGP बनाएंगे जिसका कार्यकाल 2 वर्ष से ज्यादा होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य कोर्ट के आदेशों का दुरुपयोग कर रहे हैं।
दरअसल केंद्र सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने पीठ को बताया था कि ज्यादातर राज्य रिटायर होने की कगार पर पहुंचे अफसरों को कार्यकारी DGP नियुक्त करते हैं। फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला देकर नियमित DGP बना देते हैं क्योंकि इससे अफसर को 2 वर्ष और मिल जाते हैं।
वेणुगोपाल ने कहा कि सिर्फ पांच राज्य तमिलनाडु, आंध्रा, राजस्थान, तेलंगाना और कर्नाटक ने ही वर्ष 2006 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक DGP की नियुक्ति के लिए UPSC से अनुमति ली है जबकि 25 राज्यों ने ऐसा नहीं किया है। राज्य सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का मिसयूज कर रहे हैं इसलिए सुप्रीम कोर्ट को अपने आदेशों में संशोधन करना चाहिए।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट पुलिस सुधार पर दिए गए आदेश लागू नहीं करने पर दायर की गई अवमानना याचिका की सुनवाई कर रहा था।
याचिका में कहा गया कि वर्ष 2006 में पुलिस सुधार पर दिए गए अदालत के आदेश को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अभी तक लागू नहीं किया है। अदालत ने DGP और SP का कार्यकाल तय करने जैसे कदम उठाने की सिफारिश की थी।