" सेना में महिलाओं को कमांड नियुक्ति ना देने पर उनका गौरव और साहस प्रभावित होंगे" : सुप्रीम कोर्ट में लिखित दलीलें

LiveLaw News Network

9 Feb 2020 9:12 AM GMT

  •  सेना में महिलाओं को कमांड नियुक्ति ना देने पर उनका गौरव और साहस प्रभावित होंगे  : सुप्रीम कोर्ट में लिखित दलीलें

    केंद्र सरकार द्वारा भारतीय सेना में महिलाओं को कमांड नियुक्ति नहीं देने के कारणों पर महिला अधिकारियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर लिखित दलीलों में 'अत्यधिक प्रतिगामी' के रूप में आलोचना की गई है।

    "यह प्रस्तुत किया गया है कि महिला अधिकारी कमांड नियुक्ति से इनकार करने के संबंध में भारत संघ की ओर से सौंपे गए नोट में दिए गए औचित्य / कारण न केवल अत्यधिक प्रतिगामी हैं बल्कि पूरी तरह से प्रदर्शित रिकॉर्ड और आंकड़ों के विपरीत हैं," मामले में वरिष्ठ वकील ऐश्वर्या भट द्वारा प्रस्तुत लिखित प्रस्तुतियों में कहा गया है।

    दरअसल सेना में महिलाओं को कमांड नियुक्तियां देने के खिलाफ तर्क देते हुए केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि महिलाएं अपनी "शारीरिक सीमाओं" और घरेलू दायित्वों के कारण सैन्य सेवा की चुनौतियों और खतरों को पूरा करने में सक्षम नहीं हो सकती हैं। केंद्र ने मुख्य रूप से ग्रामीण पृष्ठभूमि से ली गईं पुरुष टुकड़ियों की इकाइयों की कमांड महिलाओं को देने पर संभावित अनिच्छा के बारे में बात की है।

    बुधवार को बहस के बाद पीठ ने सेना से संबंधित मामले पर आदेश सुरक्षित रख लिया जबकि वायु सेना और नौसेना से संबंधित मामलों की सुनवाई अगले सप्ताह होगी।

    इन तर्कों को आधारहीन करार देते हुए 19 पन्नों की लिखित प्रस्तुतियों में कहा गया कि:

    "जाहिर तथ्य यह है कि महिला अधिकारी पिछले 27-28 वर्षों से 10 कॉम्बेट सपोर्ट आर्म्स में सेवारत हैं, और उन्होंने अपनी मज़बूती और साहस को आग के सामने साबित कर दिया है। उन्हें संगठन द्वारा ही उपयुक्त पाया गया है और 10 कॉम्बेट स्पोर्ट आर्म्स में उन्होंने सैनिकों और पुरुषों का दोनों, शांति साथ-साथ शत्रुतापूर्ण स्थान पर प्लाटून और कंपनियों का नेतृत्व किया है।

    कभी भी सैनिकों / पुरुषों ने किसी भी अवसर पर या उनकी कथित 'ग्रामीण' पृष्ठभूमि के कारण या प्रचलित सामाजिक मानदंडों के साथ महिलाओं की कमांड को स्वीकार करने से इनकार नहीं किया गया है।"

    शारीरिक कमजोरी और कमांड अधिकारियों के तौर पर महिलाओं की असफलता पर केंद्र की दलीलों को खारिज करने के लिए लिखित प्रस्तुतियों में स्क्वाड्रन लीडर मिन्टी अग्रवाल, दिव्या अजीत कुमार, आईएएएफ गुंजन सक्सेना आदि जैसी महिला अधिकारियों का उदाहरण दिया गया है, जिन्हें युद्ध संचालन के दौरान बहादुरी के लिए वीरता पुरस्कार मिले हैं।

    लिखित नोट के अनुसार:

    "यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि विभिन्न मामलों में महिलाओं की कमी, सामाजिक मानदंडों और युद्ध के जोखिम की कमी आदि के कारणों को एक बहाने के रूप में उद्धृत किया जा रहा है। यह प्रस्तुत किया गया है कि महिला अधिकारी भारतीय सेना में अपने सहयोगियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं।। यहां तक ​​कि SSCWO के रूप में वो कंपनी कमांडर के रूप में काम कर रही हैं और भारतीय सेना के लोकाचार के अनुसार सामने से सैनिकों का नेतृत्व कर रही हैं। कैप्टन और मेजर रैंक की युवा अधिकारियों के रूप में वो शत्रुता और युद्ध क्षेत्र में अनुकरणीय साहस और बहादुरी का प्रदर्शन कर रही हैं जिस तरह से भारतीय सेना ने दुनिया भर में सम्मान और गौरव का प्रदर्शन किया है। कमांड नियुक्तियों से इनकार एक अत्यंत प्रतिगामी कदम होगा और इन बहादुर महिलाओं की गरिमा को अपूरणीय चोट पहुंचाएगा।"

    यह मामला सचिव, रक्षा मंत्रालय बनाम बबीता पुनिया और अन्य का है, जो सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों को स्थायी आयोग (PC ) के इनकार के संबंध में है।

    दरअसल केंद्र ने दिल्ली उच्च न्यायालय के एक 2010 के फैसले के खिलाफ अपील दायर की है, जिसमें कहा गया था कि वायु सेना और सेना की शॉर्ट सर्विस कमीशन महिला अधिकारी, जिन्होंने स्थायी आयोग के लिए आवेदन किया था, लेकिन उन्हें केवल SCC का विस्तार दिया गया, वो सभी परिणामी लाभों के साथ पुरुष लघु सेवा आयोग के अधिकारी जैसे PC के बराबर हैं।

    बुधवार को जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी की एससी पीठ ने सेना से संबंधित मामले पर आदेश सुरक्षित रखा। वायु सेना और नौसेना से संबंधित मामलों की सुनवाई अगले सप्ताह होगी।

    महिला अधिकारियों को PC देने के खिलाफ केंद्र द्वारा दिए गए तर्कों का विरोध करते हुए, नोट में कहा गया है:

    "यह तर्क कि महिला अधिकारियों को कैडर संरचना, कम शारीरिक क्षमताएं आदि आधार / बहाने बनाकर विशेषज्ञता में प्रशिक्षित नहीं किया जाता है जो अनुभव और आंकड़ों के आधार पर होने के बजाय प्रतिगामी मानसिकता का अनुसरण करते हैं, " नोट में कहा गया है।

    दरअसल 25 फरवरी, 2019 को, केंद्र ने भारतीय सेना में जज एडवोकेट जनरल और आर्मी एजुकेशनल कोर (AEC) की मौजूदा 2 धाराओं के अलावा (सिग्नल, इंजीनियर, आर्मी एविएशन, आर्मी एयर डिफेंस, इलेक्ट्रॉनिक एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स (ईएमई, आर्मी), सर्विस कॉप्ट्रेट्स, आर्मी ऑर्डिनेंस कोर और इंटेलिजेंस) की 8 धाराओं में शॉर्ट सर्विस कमीशन महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने का नीतिगत निर्णय लिया था।

    यह नीति हालांकि SSCWOs के लिए विस्तारित नहीं है, जिनकी सेवा 20 वर्ष से अधिक है। 14 वर्ष तक की सेवारत महिला अधिकारियों को स्थायी नीति और इस नीति के अनुसार करियर की प्रगति के लिए विचार किया जाएगा। साथ ही, 14 साल से अधिक सेवारत को बिना PC के 20 साल तक सेवा करने की अनुमति होगी और 20 साल की सेवा को पेंशन लाभ के साथ जारी किया जाएगा।

    नीति में किए गए इस वर्गीकरण को मनमाना और अनुचित के रूप में चुनौती दी गई है कि यह SSCWO के सभी वर्गों को समान लाभ से वंचित करता है।

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