दिल्ली हाईकोर्ट ने टाइम्स नाउ के खिलाफ मानहानि का मुकदमा खारिज किया

LiveLaw News Network

29 Aug 2019 10:04 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने टाइम्स नाउ के खिलाफ मानहानि का मुकदमा खारिज किया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को एडवोकेट बहार यू. बारकी के माध्यम से पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया द्वारा टाइम्स नाउ समूह के और उसके एडिटर इन चीफ राहुल शिवशंकर, सीनियर एडिटर निकुंज गर्ग और पत्रकार आनंद नरसिम्हन के खिलाफ दाखिल मानहानि का मुकदमा खारिज कर दिया।

    स्थायी निषेधाज्ञा (permanent injunction) के लिए और रु 2,00,000 की क्षति के लिए यह मुकदमा 2 विशिष्ट टेलीकास्ट के खिलाफ दायर किया गया था, जो कि वादी के अनुसार, उसकी प्रतिष्ठा को कम करने/नुकसान पहुंचाने वाले प्रभाव का था।

    पहला - 31 अगस्त, 2017 को टेलीकास्ट किया गया कार्यक्रम, जिसमें प्रतिवादियों ने बताया कि गृह मंत्रालय (MHA) ने नेशनल इंवेस्टिगेटिव एजेंसी (NIA) से वादी का विवरण मांगा था और NIA ने वादी के बारे में मामलों के विवरण के साथ डोजियर MHA को भेजा था। प्रतिवादियों ने इस गोपनीय रिपोर्ट को एक्सेस करने का भी दावा किया है।

    दूसरा - 27 सितंबर, 2017 को टेलीकास्ट किया गया कार्यक्रम, जिसमें प्रतिवादियों ने बताया कि वादी संगठन पर प्रतिबंध लगने वाला है।

    वादी ने दावा किया कि प्रतिवादियों के यह दावे झूठे थे, क्योंकि पुलिस आयुक्त ने वादी द्वारा दायर एक अन्य रिट याचिका में अदालत के समक्ष यह स्वीकार किया था कि भारत सरकार के किसी भी वित्तीय सीक्रेट का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है। इस आधार पर यह दावा किया गया था कि प्रतिवादियों के पास, वादी के खिलाफ अभियोगमात्मक प्रभाव डालने वाले किसी भी दस्तावेज तक कभी पहुंच नहीं थी और यह उक्त टेलीकास्ट निराधार थे। यह भी प्रस्तुत किया गया था कि प्रतिवादियों द्वारा इस संबंध में माफी तक नहीं मांगी गई।

    "पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया बनाम टाइम्स नाउ एवं अन्य" शीर्षक वाले मुकदमे को फिर भी न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलॉ की अदालत ने लिमिटेशन से सीमित होने के नाते खारिज कर दिया था, जबकि मुकदमा दायर करने की सीमा अवधि एक वर्ष थी, वादी ने लगभग 2 वर्षों की अवधि के बाद अदालत से संपर्क किया था।

    न्यायमूर्ति एंडलॉ ने प्रतिवादियों के प्रस्तुतिकरण से सहमति व्यक्त की कि "लिमिटेशन अधिनियम के अनुच्छेद 75 और 76 के अनुसार, जिसमे क्रमशः लिबेल और सलैंडर के लिए मुआवज़े वाले परिवाद दाखिल करने हेतु एक वर्ष की सीमा की बात की गई है। यह सीमा उस तारिख से शुरू होती है जब शब्द प्रकाशित होते हैं (लिबेल) या जब शब्द बोले जाते हैं (सलैंडर) या जब विशेष नुकसान, जिसकी शिकायत की जाती है, होता है।"

    अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि उच्च न्यायालय के न्यूनतम धन-संबंधी क्षेत्राधिकार (pecuniary jurisdiction) के सापेक्ष मुकदमे का मूल्यांकन कम किया गया था और आगे कहा कि निषेधाज्ञा की राहत के लिए वादी ने कार्रवाई का कोई कारण नहीं बताया है।

    उपर्युक्त आधार पर मुकदमे को खारिज करते हुए, अदालत ने परिवाद बनाए रखने (maintainability) के मुद्दे को संबोधित करने से इनकार कर दिया अर्थात, एक न्यायिक व्यक्ति को मानहानि के लिए नुकसान के लिए मुकदमा करने का अधिकार, एक समाचार प्रसारक के खिलाफ मानहानि के दावे का अधिकार, वादी द्वारा उस विवरण के गैर-उल्लंघन का प्रभाव, जिस विवरण की मांग MHA ने NIA से की और एनआईए द्वारा रिपोर्ट तैयार की गई।

    बचाव पक्ष का प्रतिनिधित्व एडवोकेट कुणाल टंडन, नीती जैन, ऋचा शांडिल्य और गिरधर सिंह ने किया।

    Tags
    Next Story