इग्नू के पीजीडीसीसी कोर्स को मान्यता देने के आवेदन पर केंद्र पुनर्विचार करे : दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

22 Sep 2019 3:47 AM GMT

  • इग्नू के पीजीडीसीसी कोर्स को मान्यता देने के आवेदन पर केंद्र पुनर्विचार करे : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) कानून की धारा 11(2) के तहत पीजी डिप्लोमा कोर्स को मान्यता देने के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) के आवेदन पर केंद्र सरकार को विचार करने का निर्देश दिया है।

    इग्नू के पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन क्लिनिकल कार्डियोलॉजी (पीजीडडीसीसी) को मान्यता प्राप्त योग्यता के रूप में शामिल करने के लिए भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम की अनुसूची में संशोधन को लेकर याचिका दायर की गयी है।

    याचिकाकर्ता 'इंडियन एसोसिएशन ऑफ क्लिनिकल कार्डियोलॉजी' ने निम्नलिखित दलीलें पेश की :-

    1. पीजीडीसीसी छात्र प्रशिक्षित एमबीबीएस डॉक्टर होते हैं, न कि रोगियों के इलाज की दृष्टि से कोई साधारण आदमी।

    2. एसोसिएशन के सदस्यों की योग्यताएं एवं दक्षता किसी भी संदेह के दायरे से बाहर हैं।

    3. पीजीडीसीसी कोर्स को डीएनबी (कार्डियोलॉजी) के पैटर्न पर तैयार किया गया है। डीएनबी (कार्डियोलॉजी) को भारतीय चिकित्सा परिषद कानून, 1956 की धारा 10ए के तहत बगैर किसी अनुमति के मान्यता प्रदान की गयी है।

    4. पीजीडीसीसी डिप्लोमा होल्डरों को अस्पतालों की इंटेसिव केयर यूनिट (आईसीयू) चलाने को हमेशा से कहा जाता है तथा इन्हें 'नन-इनवेसिव कार्डियक प्रोसिजर'करने वाली आईसीयू के प्रभारी मेडिकल ऑफिसर नियुक्त किया जाता है।

    एमसीआई की दलील, इग्नू ने नियमों को ताक पर रखकर कोर्स शुरू किया

    भारतीय चिकित्सा परिषद ने अपने जवाबी हलफनामे में दलील दी है कि इग्नू ने नियमों को ताक पर रखकर पीजीडीसीसी कोर्स शुरू किया है। इसलिए इस पाठ्यक्रम को मान्यता देने का कोई प्रश्न नहीं उठता।

    परिषद ने एमसीआई बनाम कर्नाटक सरकार (1998) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख किया है जिसके तहत केंद्र सरकार की सलाह पर एमसीआई द्वारा तैयार किये गये नियमों को मानना अनिवार्य और बाध्यकारी बताया गया है। इन नियमों को मेडिकल पाठ्यक्रमों के संचालन के मामले में राज्य के नियमों से ऊपर बताया गया है।

    एमसीआई की यह भी दलील है कि इग्नू कोई मेडिकल कॉलेज भी नहीं है जिसकी स्थापना आईएमसी एक्ट की धारा 10ए के तहत केंद्र सरकार से पूर्व अनुमति लेकर की गयी है।

    याचिकाकर्ता ने अपनी लिखित दलील में एमसीआई के दावे को यह कहते हुए खारिज किया है कि आईएमसी एक्ट की धारा 11 के तहत किसी पाठ्यक्रम की मान्यता का अनुरोध कर रहे किसी विश्वविद्यालय, अथवा मेडिकल संस्थान को कोर्स शुरू करने से पहले केंद्र सरकार, अथवा एमसीआई की पूर्वानुमति की आवश्यकता नहीं है।

    कोर्ट ने एमसीआई की दलीलों को किया खारिज

    हाईकोर्ट ने पाठ्यक्रम शुरू करने से पहले इग्नू द्वारा धारा 10ए के तहत केंद्र सरकार की अनुमति नहीं लिये जाने को लेकर एमसीआई की दलीलों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि पीजीडीसीसी कोर्स शुरू करने के वक्त यह मान्यता प्राप्त मेडिकल योग्यता नहीं थी, क्योंकि इसे एमसीआई कानून की अनुसूची में शामिल नहीं किया गया था। इसलिए तब इग्नू के लिए इस कोर्स को शुरू करने के लिए केंद्र सरकार से पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं थी।

    आईएमसी एक्ट के तहत तैयार नियमों पर ध्यानपूर्वक विचार करते हुए कोर्ट ने महसूस किया कि आईएमसी एक्ट में कहीं भी संस्थान की मान्यता पर विचार नहीं किया जाता है, उल्टे इसे योग्यता को मान्यता देने का अधिकार है।

    इस प्रकार कोर्ट ने इग्नू के पीजीडीसीसी कोर्स को मान्यता दिये जाने संबंधी इग्नू के अनुरोध पर विचार न करने के एमसीआई के फैसले को निरस्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि एमसीआई की यह दलील कि इग्नू ने आईएमसी एक्ट की धारा 10ए के तहत केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति नहीं हासिल की, कानून की नजर में कहीं नहीं टिकती।

    इसलिए केंद्र सरकार को यह निर्देश दिया जाता है कि वह आईएमसी एक्ट की धारा 11(2) के तहत उपरोक्त पाठ्यक्रम की मान्यता को लेकर इग्नू के आवेदन पर फिर से विचार करे।

    याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन और कपिल सिब्बल ने तथा एमसीआई की ओर से विकास सिंह ने जिरह की।


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