दिल्ली सरकार ने कहा, आरआरटीएस परियोजना के लिए बजटीय प्रावधान किए हैं ; सुप्रीम कोर्ट ने सात दिनों में फंड ट्रांसफर करने को कहा

LiveLaw News Network

13 Dec 2023 4:35 PM IST

  • दिल्ली सरकार ने कहा, आरआरटीएस परियोजना के लिए बजटीय प्रावधान किए हैं ; सुप्रीम कोर्ट ने सात दिनों में फंड ट्रांसफर करने को कहा

    बुधवार (13 दिसंबर) को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार की दलील दर्ज की कि उन्होंने रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (आरआरटीएस) परियोजना के लिए बजटीय प्रावधान किए हैं और केंद्र सरकार से मंज़ूरी का इंतजार कर रहे हैं। इस पृष्ठभूमि में, अदालत ने दिल्ली सरकार को राशि हस्तांतरित करने के लिए 7 दिन का समय दिया। इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने दिल्ली सरकार को इस परियोजना के लिए धन आवंटन से संबंधित कार्यक्रम का पालन करने का सख्त निर्देश दिया।

    जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में बिगड़ती वायु गुणवत्ता पर चिंता जताने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इस क्षेत्र को आमतौर पर सर्दियों के महीनों के दौरान बढ़े हुए प्रदूषण का सामना करना पड़ता है, जिसका मुख्य कारण पड़ोसी राज्यों में पराली जलाना जैसे कारक हैं।

    जुलाई में, दिल्ली सरकार ने ट सरकारी विज्ञापनों के लिए किए गए बजटीय आवंटन को दिखाने के निर्देश के बाद सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अंडरटेकिंग दी थी कि वह आरआरटीएस परियोजना के लिए बजटीय प्रावधान करेगी। जस्टिस कौल की अगुवाई वाली पीठ ने तब कहा था, "अगर पिछले तीन वित्तीय वर्षों में विज्ञापन के लिए 1100 करोड़ रुपये खर्च किए जा सकते हैं, तो निश्चित रूप से बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में योगदान दिया जा सकता है।"

    21 नवंबर को, अदालत ने रीजनल रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम प्रोजेक्ट के लिए धन आवंटित करने की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने में विफल रहने पर दिल्ली सरकार पर नाराज़गी व्यक्त की और इसे 'घोर उल्लंघन' बताया। जवाब में, उसने परियोजना के लिए सरकारी विज्ञापन फंड हस्तांतरित करने का आदेश पारित किया, लेकिन दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले एडवोकेट के कहने पर, वह आदेश पर एक सप्ताह के लिए रोक लगाने पर सहमत हो गया।

    इसके बाद, 28 नवंबर को अदालत को सूचित किया गया कि दिल्ली सरकार ने उस राशि का केवल एक हिस्सा ही वितरित किया है जिसे हस्तांतरित करने का निर्देश दिया गया था। इसे देखते हुए, न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि आंशिक अनुपालन का कोई सवाल ही नहीं हो सकता और पूर्ण अनुपालन का आदेश दिया।

    सुनवाई शुरू होते ही सीनियर एडवोकेट एस मुरलीधर ने कहा कि भारत सरकार को इन दोनों परियोजनाओं (दिल्ली-अलवर और दिल्ली-पानीपत कॉरिडोर) को मंज़ूरी देनी है ।

    उन्होंने कहा,

    "यहां तक ​​कि आवेदक, यानी एनसीआरटीसी (राष्ट्रीय राजधानी रेल परिवहन निगम) भी यह नहीं कहता है कि भारत सरकार ने इसे मंज़ूरी दे दी है। जैसे ही भारत सरकार मंज़ूरी देगी, हम ये (धन) जारी कर देंगे।"

    हालांकि, एमिकस क्यूरी, सीनियर एडवोकेट अपराजिता सिंह ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि अदालत को दिए गए वचन के अनुसार, दिल्ली सरकार को कार्यक्रम का पालन करना होगा।

    सिंह ने जोर देकर कहा,

    "उन्होंने आपको वचन दिया है कि वे तय समय का पालन करेंगे। उन्हें तय समय के अनुसार भुगतान करना चाहिए।"

    मुरलीधर ने पीठ को समझाने की कोशिश की कि बजटीय प्रावधान किये गये हैं। हालांकि, उनका यह तर्क कि भारत सरकार की मंज़ूरी आवश्यक है, न्यायालय को पसंद नहीं आया।

    इस स्तर पर, अटॉर्नी-जनरल आर वेंकटरमणी ने भी कहा कि उन्हें नहीं लगता कि मंज़ूरी में कोई समस्या होगी। बाद में, सिंह ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि ये परियोजनाएं ऋण के तहत की गई हैं। उन्होंने कहा, "ये अंतरराष्ट्रीय ऋण हैं और हर बार जब वे इसमें देरी करते हैं, तो उनकी लागत बढ़ जाती है।"

    इस समय, मुरलीधर ने अपने तर्कों के समर्थन में एनसीआरटीसी के आवेदन का हवाला दिया।

    इन तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने आदेश दिया:

    "डॉ मुरलीधर ने यह मुद्दा उठाना चाहा कि राज्य सरकार ने दिल्ली-अलवर और दिल्ली-पानीपत कॉरिडोर के लिए अब बजटीय प्रावधान कर दिए हैं, लेकिन उन्हें केंद्र सरकार से मंज़ूरी का इंतजार है। हम ध्यान दें कि अन्य राज्य पहले ही 2019 और 2020 में धन हस्तांतरित कर चुके हैं, और सरकार की ओर से मौजूद अटॉर्नी जनरल का कहना है कि जहां तक ​​औपचारिक मंज़ूरी की बात है तो कोई दिक्कत नहीं है...राशि भेजने के लिए दिल्ली सरकार को 7 दिन का समय दिया जाए। कहने की जरूरत नहीं है कि दिल्ली सरकार तय कार्यक्रम का पालन करना जारी रखेगी और इस न्यायालय को 21 नवंबर, 2023 के आदेश को पुनर्जीवित करने का अवसर नहीं देगी।”

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