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हाईकोर्ट में आपराधिक अपीलों के निपटारे में देरी : सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को अमिक्स क्यूरी नियुक्त किया

LiveLaw News Network
5 Nov 2019 4:47 AM GMT
हाईकोर्ट में आपराधिक अपीलों के निपटारे में देरी : सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को अमिक्स क्यूरी नियुक्त किया
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उच्च न्यायालयों द्वारा आपराधिक अपीलों पर जल्द फैसले देने में असमर्थता पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को समस्या के समाधान के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सहायता मांगी है। साथ ही पीठ ने पूर्व हाईकोर्ट जज और वरिष्ठ वकील आर एस सोढ़ी को भी मदद करने को कहा है।

दरअसल मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ उस मामले पर विचार कर रही थी जहां आरोपी को आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया गया है और उसकी अपील इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है। उच्च न्यायालय ने लंबित मामले में जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया है। अपीलकर्ता को तीन साल से अधिक समय तक हिरासत में रखा गया है।

पीठ ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष अपील की तुरंत सुनवाई होने की संभावना नहीं है, जब तक कि शीघ्र सुनवाई का कोई आदेश सुप्रीम कोर्ट या उच्च न्यायालय द्वारा पारित नहीं किया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

"त्वरित सुनवाई का कोई भी आदेश किसी भी अदालत द्वारा अच्छे और ठोस आधार के बिना पारित नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि ये अन्य याचिकाओं को प्रभावित कर सकते हैं जिनकी अपील इसी तरह लंबित है। फिर भी, उच्च न्यायालय की ये अक्षमता इसके नियंत्रण से परे कारणों के लिए है। आपराधिक अपील को जल्दी निष्कर्ष पर पहुंचाने के लिए ऐसी स्थिति में परिणाम नहीं होना चाहिए, जहां आरोपी व्यक्तियों को उपरोक्त आधार पर जमानत पर रिहा किया जाए।"

शीर्ष अदालत ने स्वीकार किया कि इन सवालों पर गहन विचार की आवश्यकता है।

पीठ ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय फिलहाल 20 साल पुरानी अपीलों पर सुनवाई कर रहा है। ऐसे में क्या तब तक आरोपी को जेल में रखा जाए। या सभी को जमानत पर रिहा किया जाए जो कर पाना मुश्किल है।

याचिकाकर्ता की शिकायत

उच्चतम न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ता की यह शिकायत थी कि अन्य सह-अभियुक्तों को जमानत का लाभ देते समय, उच्च न्यायालय ने अक्टूबर, 2017 में एक अच्छे आधार की अनुपस्थिति में उसकी जमानत अर्जी खारिज कर दी थी।

'उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता की जमानत याचिका को खारिज करते हुए और अन्य अभियुक्तों को जमानत देते समय कोई भी कारण दर्ज नहीं किया है," ये विवाद उठाया गया है।

यह प्रस्तुत किया गया था कि याचिकाकर्ता 2009 में एक व्यक्ति की कथित तौर पर मौत के मामले में जमानत की मांग कर रहा है। मामले में ट्रायल कोर्ट ने 25.01.2017 के अपने फैसले को पूरी तरह से परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर दोषी ठहराया है। याचिकाकर्ता पर IPC की धारा 147,148, 149, 302 / 120B के साथ और 201 के तहत दंडनीय अपराध के लिए आजीवन कारावास और एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।

याचिकाकर्ता ने फरवरी, 2017 में उच्च न्यायालय के समक्ष इस फैसले को चुनौती दी थी जिस पर सुनवाई लंबित है।

आरोपी की ओर से कहा गया कि वह पूरे ट्रायल में जमानत पर था और उसने जमानत की स्वतंत्रता का कभी दुरुपयोग नहीं किया। "याचिकाकर्ता को दोषी ठहराए जाने की तारीख 25.01.2017 को हिरासत में लिया गया था और 2 साल और 8 महीने से अधिक समय तक जेल में रखा गया है, यह अफसोसनाक है।"

याचिका पर वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने बहस की जबकि वकील राजेश इनामदार ने इसे दाखिल किया था। इस मामले की अगली सुनवाई 8 नवंबर को होगी।


आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें।



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