अफगानिस्तान से आईएसआईएस महिला के प्रत्यर्पण पर फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने पिता की याचिका पर केंद्र सरकार को निर्देश दिए

LiveLaw News Network

3 Jan 2022 9:39 AM GMT

  • अफगानिस्तान से आईएसआईएस महिला के प्रत्यर्पण पर फैसला: सुप्रीम कोर्ट ने पिता की याचिका पर केंद्र सरकार को निर्देश दिए

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह एक पिता द्वारा अफगानिस्तान से अपनी बेटी और पोती के प्रत्यर्पण के लिए किए गए अनुरोध पर विचार करे।

    कोर्ट ने वीजे सेबेस्टियन द्वारा दायर एक याचिका में निर्देश पारित किया, जिसमें उनकी बेटी सोनिया सेबेस्टियन (अब इस्लाम में धर्मांतरण के बाद आयशा के रूप में नाम बदला गया) के प्रत्यर्पण की मांग की गई है, जो 2016 में आतंकवादी संगठन आईएसआईएस में शामिल होने के लिए भारत छोड़कर चली गई थी और उसकी नाबालिग बेटी सारा, जो कथित तौर पर तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अफगानिस्तान की एक जेल में बंद है।

    न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने केंद्र सरकार को वीजे सेबेस्टियन द्वारा 8 सप्ताह की अवधि के भीतर किए गए प्रतिनिधित्व पर फैसला करने का निर्देश दिया।

    खंडपीठ ने सेबेस्टियन को अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता भी दी, यदि वह केंद्र सरकार द्वारा लिए गए निर्णय से असंतुष्ट है।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता रंजीत मरार ने कहा कि तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जा करने से पहले जुलाई 2021 में याचिका दायर की गई थी। वकील ने प्रस्तुत किया कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद जेलों को ध्वस्त कर दिया गया था, यह नहीं कहा जा सकता है कि सोनिया और उनकी बेटी हिरासत में नहीं हैं, क्योंकि सीमावर्ती इलाकों में कैदियों को हिरासत में लेने की खबरें हैं।

    न्यायमूर्ति नागेश्वर राव ने सुनवाई के दौरान कहा,

    "हम सरकार को आपके अनुरोध पर निर्णय लेने का निर्देश दे सकते हैं क्योंकि प्रत्यर्पण मामले ऐसे मामले नहीं हैं जहां हम इस तरह के मामलों पर निर्णय दे सकें। ये सभी मामले सरकार को तय करने होते हैं।"

    एडवोकेट मारार ने कहा कि जहां तक स्वदेश वापसी का संबंध है, कुछ कठिनाई है क्योंकि प्रत्यर्पण समझौता पूर्ववर्ती सरकार के साथ है।

    जस्टिस राव ने जवाब दिया,

    "सरकार बदलने से समझौता खत्म नहीं होता है। समाचार पत्रों को देखने से संबंध अच्छे लगते हैं। सरकार को राजी किया जा सकता है, लेकिन आपको पहले भारत सरकार को राजी करना होगा।"

    मारार ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता को सरकार के फैसले से असंतुष्ट होने पर अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए।

    न्यायमूर्ति राव ने जवाब में कहा,

    "हम सरकार को निर्णय लेने का निर्देश दे सकते हैं और यदि आप इससे असंतुष्ट हैं तो हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। हाईकोर्ट भी संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रावधानों की व्याख्या कर सकते हैं।"

    बेंच ने रिट याचिका का निपटारा करते हुए प्रतिवादियों- कैबिनेट सचिव और विदेश मंत्रालय के सचिव को 8 सप्ताह के भीतर प्रत्यर्पण अनुरोधों पर निर्णय लेने का निर्देश दिया।

    पृष्ठभूमि

    यूएपीए के तहत एक आपराधिक मामले में सोनिया सेबेस्टियन के खिलाफ आतंकी संगठन आईएसआईएश में शामिल होने के लिए भारत में मुकदमा चल रहा है।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि केंद्र सरकार उसे भारत प्रत्यर्पित करने के लिए सक्रिय कदम नहीं उठा रही है।

    सोनिया अपने पति के साथ आईएसआईएस की विचारधारा का प्रचार करने के लिए अफगानिस्तान गई थीं। हालांकि, 2019 में उनके पति को अफगान बलों ने मार डाला। उसके बाद सोनिया और उनकी बेटी ने अफगान बलों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।

    याचिका में तर्क दिया गया है कि बंदियों को वापस लाने के लिए केंद्र सरकार की निष्क्रियता अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के तहत अपने दायित्वों का उल्लंघन है। साथ ही मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948 (यूडीएचआर) और नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा, 1966 का भी उल्लंघन हैं।

    याचिकाकर्ता की बेटी सहित चार भारतीय महिलाओं का YouTube पर एक वृत्तचित्र के रूप में अपलोड किए गए एक साक्षात्कार का हवाला देते हुए कहा गया कि याचिकाकर्ता की बेटी ISIS में शामिल होने के अपने फैसले पर पछता रही है और भारत वापस लौटना चाहती है और भारतीय अदालत के समक्ष निष्पक्ष ट्रायल का सामना करना चाहती है।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि प्रतिवादियों द्वारा बंदियों के प्रत्यावर्तन या प्रत्यर्पण की सुविधा के लिए कदम नहीं उठाना अवैध और असंवैधानिक है, क्योंकि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत गारंटीकृत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

    अधिवक्ता लक्ष्मी एन कैमल और अधिवक्ता रंजीत बी मारार द्वारा दायर याचिका में आगे कहा गया,

    "भारत ने वर्ष 2016 में अफगानिस्तान के साथ एक प्रत्यर्पण संधि में प्रवेश किया है और 24 नवंबर 2019 को काबुल में संधि के अनुसमर्थन के साधनों का आदान-प्रदान किया गया था। इसलिए प्रत्यर्पण संधि के आधार पर प्रत्येक संपर्क करने वाला राज्य दोषी व्यक्ति को प्रत्यर्पित करने के लिए सहमत हो गया है। वह एक राज्य के क्षेत्र में किए गए अपराध का आरोपी है, लेकिन दूसरे राज्य के क्षेत्र में पाया जाता है। चूंकि भारत ने प्रत्यर्पण का अनुरोध करने के लिए कदम नहीं उठाया है, इसलिए पहला बंदी और दूसरा बंदी विदेशी क्षेत्र में फंस गया है।"

    बता दें, केरल हाईकोर्ट ने अफगानिस्तान से प्रत्यर्पण के लिए सोनिया सेबेस्टियन की तरह आईएसआईएस में शामिल होने के लिए भारत छोड़ने वाली एक अन्य महिला निमिशा फातिमा की मां द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था।

    Next Story