COVID से संक्रमित वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कोरोना प्रबंधन मामले में हस्तक्षेप का अनुरोध किया 

LiveLaw News Network

15 Jun 2020 4:44 PM GMT

  • COVID से संक्रमित वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कोरोना प्रबंधन मामले में हस्तक्षेप का अनुरोध किया 

     दिल्ली के एक वकील उदयन शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में COVID-19 स्थिति के प्रबंधन पर दर्ज स्वतः संज्ञान मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है, ताकि दिल्ली राज्य में "पूर्ण उदासीनता" और "अव्यवस्थित स्थिति" को उजागर किया जा सके।

    वकील, जो खुद एक COVID ​​-19 मरीज हैं, ने मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है, जिसका शीर्षक है " इन रि : फॉर प्रॉपर ट्रीटमेंट ऑफ COVID -19 पेशेंट्स एंड डिग्नीफाइड हैंडलिंग ऑफ डेड बॉडीज इन द हॉस्पिटल, ETC" ताकि अस्पतालों और स्वास्थ्य विभागों द्वारा COVID ​​-19 रोगियों और शवों का इलाज कैसे किया जा रहा है, इसकी जमीनी हकीकत को उजागर किया जा सके।

    शर्मा ने कहा है कि उनका पूरा परिवार किसी भी प्राथमिक चिकित्सा के अभाव और किसी भी अस्पताल में दाखिले से इनकार करने के कारण घातक वायरस से पीड़ित है।

    प्राथमिक चिकित्सा का अभाव शर्मा ने आरोप लगाया है कि जब उन्हें वायरस से पीड़ित होने का संदेह हुआ, तो उनका टेस्ट भी नहीं हो सका।

    उन्होंने प्रस्तुत किया कि

    "सरकारी अस्पताल, बिना किसी कारण के रोगसूचक रोगियों के लिए टेस्टिंग से इनकार कर रहे थे, और एक प्रतिष्ठित निजी प्रयोगशाला से टेस्ट कराना देरी से समय देने और तकनीकी ऑनलाइन प्रक्रिया के कारण एक असंभव काम था।"

    उन्होंने अदालत को सूचित किया कि उनके 86 वर्षीय दादा की हाल ही में संक्रमण के कारण मृत्यु हो गई, क्योंकि वो सरकारी अस्पताल के बाहर "लापरवाही से फंसे" रहे और अधिकारियों द्वारा गलत व्यवहार किया गया।

    दलीलों के अनुसार,

    "अस्पताल न केवल आवेदक के दादा को एक बिस्तर देने में विफल रहे, बल्कि उन्हें प्राथमिक चिकित्सा देने में भी विफल रहे। कोई ऑक्सीजन सिलेंडर प्रदान नहीं किया गया था, और वह 104.2 बुखार के साथ सफदरजंग अस्पताल के भवन के बाहर लावारिस हालत में पड़े हुए थे।"

    उन्होंने दावा किया है कि उनके दादा या अन्य सभी रोगियों को कई कतारों में घंटों खड़े खड़ा रहने के लिए विवश किया गया था, और वेंटिलेटर तो छोड़िए, उन्हें पेरासिटामोल कैप्सूल भी नहीं दिया गया। पूरी रात सफदरजंग अस्पताल के गेट के बाहर बिस्तर का इंतजार करते हुए आवेदक के दादा का निधन हो गया।

    दलीलों में ये भी कहा गया है कि अस्पताल और राज्य के अधिकारियों की घोर लापरवाही के कारण आवेदक के दादा की जान चली गई। यह दर्शाता है कि राज्य इस देश की सेवा करने वाले सेवानिवृत्त वरिष्ठ नागरिकों की मदद करने में कैसे विफल रहा है।

    शव प्रबंधन

    शर्मा ने अपने दादा की मृत्यु के बाद किए गए उपायों के संबंध में स्वास्थ्य अधिकारियों की विफलता की ओर न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया है, क्योंकि उनके परिवार से अस्पताल या स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा किसी भी मदद या सहायता के लिए संपर्क नहीं किया गया था। टेस्टिंग के लिए भी नहीं।

    आवेदन में बताया गया है कि

    "स्वास्थ्य विभाग COVID ​​-19 से परिवार के एक सदस्य की मृत्यु के बाद अपने कर्तव्यों का पालन करने में पूरी तरह से विफल रहा। अस्पताल या स्वास्थ्य विभाग से कोई भी व्यक्ति परिवार से मिलने नहीं आया, जबकि उन्हें सूचित किया गया कि पूरे परिवार में गंभीर लक्षण हैं और घर में अन्य बुजुर्ग हैं।"

    यह आरोप लगाया गया है कि उनके घर के आसपास के क्षेत्र को न तो साफ किया गया और न ही परिवार के सदस्यों और पड़ोसियों को संवेदनशील बनाया गया था।

    शर्मा ने अदालत को बताया कि

    "शेष परिवार के सदस्यों की टेस्टिंग करने के लिए या किसी भी चिकित्सा सहायता के लिए अधिकारियों द्वारा कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया था। परिवार के सदस्यों को स्वयं को अलग करने के लिए भी नहीं कहा गया और न ही उन्हें घर पर रहने के लिए कहा गया था। सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं था।"

    इसके अलावा, ये याचिका आवेदक के दादा के मृत शरीर को संभालने में अस्पताल और राज्य अधिकारियों के "खराब कुप्रबंधन" को उजागर करती है।

    शर्मा ने बताया कि

    "अधिकारी COVID-19 के कारण मृत लोगों के शवों के दाह संस्कार के लिए प्रोटोकॉल का पालन नहीं कर रहे हैं। इसके अलावा आवेदक के परिवार को अपने दादा का अंतिम संस्कार करते समय गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, कोई तंत्र नहीं है जिसका पीड़ित परिवारों की सहायता के लिए अधिकारियों द्वारा समान रूप से पालन किया जा रहा हो।"

    इन परिस्थितियों में, शर्मा ने कोरोना रोगियों के शवों के प्रबंधन के लिए ICMR और केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों के सख्त कार्यान्वयन की मांग की है।

    उन्होंने अदालत से प्रार्थना की है:

    • सरकारी अस्पतालों में टेस्टिंग प्रक्रिया के लिए एक नीति तैयार करने के लिए राज्य एजेंसियों को निर्देशित करें, जो किसी भी व्यक्ति की टेस्टिंग करने के लिए समय कम कर देगा, और अंततः जोखिम को कम करेगा;

    • 48 घंटे के भीतर मरीजों को परिणाम / रिपोर्ट भेजने के लिए राज्य एजेंसियों और अस्पतालों के अधिकारियों को निर्देशित करें, विशेषकर उन मामलों में जहां मरीज गंभीर बीमारी के लिए अधिक जोखिम में हैं;

    • संबंधित सरकारी प्राधिकारियों को ऑक्सीजन सिलेंडर की उच्च कीमतों को नियंत्रित करने के लिए निर्देशित करें, ताकि COVID ​​-19 प्रभावित परिवार स्वयं अलग रहने के दौरान प्राथमिक उपचार के उपाय के रूप में घर पर सिलेंडर का उपयोग कर सकें;

    • सरकारी अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित करें कि COVID -19 से मरने वाले मरीजों के शवों को गरिमा के साथ संभाला जाए और परिवार के सदस्यों को श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार करने का अवसर मिले।

    दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने COVID -19 प्रभावित शवों के कथित बुरे बर्ताव की रिपोर्टों के खिलाफ संज्ञान लिया था।

    शुक्रवार को जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एस के कौल और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु की सरकारों को " COVID रोगियों की देखभाल के मामलों में दुखद स्थिति" पर नोटिस जारी किए।

    अदालत ने राज्य सरकारों को COVID -19 टेस्टिंग की संख्या बढ़ाने का भी निर्देश दिया था, ताकि प्रभावित आबादी का पता लगाया जा सके और उन्हें पर्याप्त उपचार मुहैया कराया जा सके। पीठ ने कहा था,

    "मरीजों का परीक्षण न करना समस्या का समाधान नहीं है बल्कि परीक्षण सुविधा में वृद्धि करना राज्य का कर्तव्य है, ताकि लोगों को कोविद -19 के बारे में उनकी स्वास्थ्य स्थिति के बारे में पता चल सके और वे कोविद-19 की उचित देखभाल और उपचार कर सकें।"

    इसके बाद मामले को बुधवार, 17 जून, 2020 को सुना जाएगा।

    आवेदन डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं



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