(क्रिमिनल ट्रायल) कोर्ट को डिस्चार्ज की अर्जी खारिज करने की वजह बतानी चाहिए : कर्नाटक हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

5 Nov 2019 9:21 AM GMT

  • (क्रिमिनल ट्रायल) कोर्ट को डिस्चार्ज की अर्जी खारिज करने की वजह बतानी चाहिए : कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना है कि यह अदालत का कर्तव्य है कि वह उन कारणों का उल्लेख करे, जिनके आधार पर उसने रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री पर विश्वास करते हुए डिस्चार्ज के आवेदन को अस्वीकार करने के लिए राय बनाई थी।' न्यायमूर्ति जी नरेंद्र ने संतोष कुमार द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए निचली अदालत द्वारा पारित एक आदेश को रद्द कर दिया है।

    निचली अदालत ने संतोष कुमार की उस अर्जी को खारिज कर दिया था, जिसमें उसने खुद को डिस्चार्ज करने की मांग की थी। न्यायालय ने कहा,''उक्त आदेश को देखने से साफ जाहिर हो रहा है कि जेएमएफसी कोर्ट द्वारा दिमाग नहीं लगाया गया है।"

    हाईकोर्ट में आदेशों को दी थी चुनौती

    कुमार ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आदेशों को चुनौती दी थी। यह आदेश उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, 323, 504, 506 रिड विद धारा 34 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3,4,5 व 6 के तहत दर्ज मामले से संबंधित थे।

    जेएमएफसी अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए साधारण की टिप्पणी करते हुए कहा था कि रिकॉर्ड पर मौजूद पूरी सामग्री को देखने के बाद यह पाया गया है कि प्रतिवादी द्वारा उत्पीड़न करने के मामले पर्याप्त सामग्री या तथ्य हैं। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए अदालत ने कहा कि इस स्तर पर अपराधों में आरोपी की कथित भागीदारी के बारे में रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर निर्णय नहीं लिया जा सकता।

    कोर्ट ने कहा कि-

    "तात्कालिक मामले में, न तो जेएमएफसी की कोर्ट और न ही रीविजनल कोर्ट ने अपने आदेश में किसी विशेष सामग्री का संदर्भ दिया, जो दर्शाता है कि प्रथम दृष्टया इस मामले में दिमाग नहीं लगाया गया है।

    योगेश / सचिन जगदीश बनाम महाराष्ट्र राज्य, के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश पर विश्वास करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि डिस्चार्ज के लिए दायर याचिका का निपटान, न्यायिक मन या दिमाग के परिश्रम की मांग करता है, जो नीचे की दोनों अदालतों द्वारा प्रस्तुत अभ्यास या परिश्रम में स्पष्ट रूप से अनुपस्थित था।

    संक्षिप्त में, इस आदेश को वापस जेएमएफसी कोर्ट के पास भेजने की जरूरत है, ताकि वह इस पर पुनर्विचार कर सके। साथ ही कहा कि इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख के एक महीने के भीतर इस मामले का निपटान कर दिया जाए। "



    Tags
    Next Story