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अगर प्रतिवादी के सफल रहने की उम्मीद कम है तो अदालत को व्यावसायिक मामलों में सुनवाई करने की जरूरत नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network
1 Nov 2019 7:29 AM GMT
अगर प्रतिवादी के सफल रहने की उम्मीद कम है तो अदालत को व्यावसायिक मामलों में सुनवाई करने की जरूरत नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट
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अगर अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि किसी मामले में प्रतिवादी को अपने दावे का बचाव करने में सफलता की उम्मीद बहुत ही कम है तो उस स्थिति में अदालत को व्यावसायिक मुकदमों में सुनवाई करने की जरूरत नहीं है, इसके बावजूद कि मामले के तथ्यों को लेकर विवाद है।

न्यायमूर्ति मनमोहन ने दोहराया कि कमर्शियल कोर्ट एक्ट, 2015 में संक्षिप्त सुनवाई का जो प्रावधान किया गया है, उसका उद्देश्य वाणिज्यिक विवादों को समय पर निपटाना है।

उन्होंने कहा, सीपीसी के आदेश XIIIA का नियम 3 अदालत को प्रतिवादी के खिलाफ संक्षिप्त सुनवाई की इजाजत देता है, जहां अदालत को लगता है कि इस मामले में प्रतिवादी की सफलता की उम्मीद कम है और वह मौखिक साक्ष्यों के रिकॉर्ड किये जाने से पहले इस मामले को निपटा सकता है।

यह था मामला

वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता कंपनी का लिक्विडेटर ने सीपीसी के आदेश XIIIA के तहत एक आवेदन देकर प्रतिवादी के खिलाफ संक्षिप्त सुनवाई का आग्रह किया था। यह मामला घोषणा, स्थाई रोक, हर्जाने और शिकायत में दर्ज राहत से ज्यादा राहत के लिए दायर आवेदन से संबंधित है।

याचिकाकर्ता की पैरवी करते हुए वकील अमित सिबल ने कहा कि इस बात की उम्मीद कम है कि प्रतिवादी अपने दावे का बचाव कर पाएगा और उसका बचाव क़ानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

उन्होंने यह भी कहा कि प्रतिवादी ने कई मौकों पर यह स्वीकार किया है कि याचिकाकर्ता ट्रेड मार्क्स एक्ट, 1999 के अधीन क्लास 9 के तहत सु-कैम मार्क्स का उचित मालिक, प्रोपराइटर और प्रयोगकर्ता है और इस तरह की स्वीकारोक्ति उन सभ आपत्तियों को दरकिनार करता है जिनमें वह भी शामिल है जिससे वह वर्तमान मामले में इनकार कर रहा है।

सिबल ने कहा कि इन स्वीकारोक्तियों के कारण प्रतिवादी को विरोधाभासी आरोप लगाने से रोका जाना चाहिए।

प्रतिवादी के वकील राजीव विरमानी ने अपनी दलील में कहा की इस मामले में मौखिक साक्ष्य जुटाने की जरूरत है क्योंकि ट्रेड मार्क लाइसेंस एग्रीमेंट और याचिकाकर्ता का करार दोनों ही सवाल के घेरे में है। उनहोंने इस मामले की उचित सुनवाई कराने की मांग की।

दस्तावेजों को तैयार करने में फर्जीवाड़े के आरोप का जवाब देते हुए विरमानी ने कहा कि जहां फर्जीवाड़े और धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया हो, वहां संक्षिप्त सुनवाई से और मौखिक साक्ष्य के बिना मामले का निपटारा नहीं हो सकता।

यह विचार रखते हुए कि प्रतिवादी को विरोधाभासी साक्ष्य देने से रोका जाता है, अदालत ने कहा कि इस बात की संभावना कम है कि वादी ने जो आरोप लगाए हैं, प्रतिवादी उन आरोपों का बचाव कर पाएगा इस बात की संभावना कम है इसलिए सुनवाई का कोई कारण नहीं है।

वाणिज्यिक अदालत अधिनियम के तहत संक्षिप्त सुनवाई के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए अदालत ने कहा "वास्तविक" शब्द अदालत को इस बात की जांच करने का निर्देश देता है कि सफलता की "वास्तविक" उम्मीद है या यह "काल्पनिक" है। अदालत ने ओंटारियो, कनाडा के नागरिक प्रक्रिया नियमों के प्रावधानों का सन्दर्भ इस बारे में दिया।

अंत में अदालत ने कहा की अगर अदालत इस मामले की सुनवाई करता है और वह इसके तथ्यों के सन्दर्भ में इस क़ानून को लागू करता है और उसको वह न्यायपूर्ण और उचित परिणाम प्राप्त करने के लिए आनुपातिक, ज्यादा तीव्र और सक्षम लगता है तो सीपीसी का आदेश XIIIA इस पर लागू होगा।



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