मेडिकल अथॉरिटी द्वारा जारी विकलांगता प्रमाण पत्र को अदालत रद्द नहीं कर सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

9 Nov 2019 8:15 AM GMT

  • मेडिकल अथॉरिटी द्वारा जारी विकलांगता प्रमाण पत्र को अदालत रद्द नहीं कर  सकती:  दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि जब एक सक्षम चिकित्सा अधिकारी द्वारा विकलांगता प्रमाण पत्र जारी किया जाता है तो इस तरह के प्रमाण पत्र को रद्द करने की मांग करने वाली याचिका को कानून की अदालत द्वारा स्वीकार नहीं किया जा सकता।

    विकलांग व्यक्ति (पीडब्ल्यूडी) श्रेणी के तहत मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पाने की मांग करने वाले उम्मीदवार को राहत देने से इनकार करते हुए, चीफ जस्टिस डी.एन पटेल और जस्टिस हरि शंकर की दो सदस्यीय खंडपीठ ने माना कि कोर्ट एमसीआई नियमों के फ्रैमर्स या एमसीआई नियमों द्वारा तय की गई सीमाओं की तुलना में अधिक ज्ञान नहीं रखती है या नहीं दे सकती है, क्योंकि इन को विशेषज्ञों ने बनाया है।

    यह था मामला

    याचिकाकर्ता ने आरपीडब्ल्यूडी विनियम 1999 के परिशिष्ट एच में 2019 में किए गए संशोधन की वैधता को चुनौती दी थी। संशोधित परिशिष्ट के अनुसार, लोकोमोटर विकलांगता से पीड़ित व्यक्ति की विकलांगता अगर 40 प्रतिशत से कम है तो ऐसे व्यक्ति को पीडब्ल्यूडी श्रेणी के तहत प्रवेश नहीं दिया जा सकता है। 40 प्रतिशत से 80 प्रतिशत के बीच विकलांगता वाले व्यक्ति पीडब्ल्यूडी श्रेणी का लाभ ले सकते हैं। वहीं 80 प्रतिशत से अधिक लोकोमोटर विकलांगता से पीड़ित व्यक्ति चिकित्सा पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए पात्र या योग्य नहीं हैं।

    उक्त संशोधन को मनमाना बताते हुए, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम बेंचमार्क(न्यमूनतम मानदंड) विकलांग व्यक्तियों के बीच उप-वर्गीकरण का प्रावधान नहीं सकता है। वहीं आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम की धारा 2 (आर) के साथ पढ़े जाने वाली धारा 32 के मद्देनजर, 40 प्रतिशत से अधिक बेंचमार्क विकलांग व्यक्ति, वास्तव में, उच्च शिक्षा के संस्थानों में प्रवेश के लिए पात्र थे, जिनमें एमबीबीएस की डिग्री देने वाले संस्थान भी शामिल थे।

    क्या उम्मीदवार 40 प्रतिशत से 80 प्रतिशत के बीच विकलांगता का सामना कर रहा है?

    परिशिष्ट एच (अब परिशिष्ट एच-1) में बाद में संशोधन किया गया था, जिसके तहत यह देखा जाता है कि क्या उम्मीदवार 40 प्रतिशत से 80 प्रतिशत के बीच विकलांगता का सामना कर रहा है ताकि पीडब्ल्यू कोटा के तहत दाखिले या प्रवेश के लिए उसकी पात्रता का आकलन या निर्धारण किया जा सके? इस पात्रता के लिए ''सहायक उपकरणों की सहायता से,यदि इसका उपयोग किया जा रहा है'',से उम्मीदवार की कार्यात्मक योग्यता निर्धारित किया जाना आवश्यक है। साथ ही यह भी देखना कि क्या इस तरह के सहायक उपकरणों का उपयोग करके, विकलांगता का प्रतिशत, जिससे उम्मीदवार ग्रसित है या पीड़ित है को 80 प्रतिशत से नीचे लाया जा सकता है।

    एनईईटी की परीक्षा के लिए यूजीसी द्वारा जारी बुलेटिन के तहत यह आवश्यक किया गया है कि दिल्ली में पीडब्ल्यूडी कोटे के तहत दाखिले के लिए दावा करने वाले व्यक्तियों को वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज से विकलांगता प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा।

    वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता ने एनईईटी की परीक्षा को सफलतापूर्वक पास किया था और उसे मेडिकल कोटा के तहत यूसीएमएस कॉलेज में एक सीट भी प्रदान की गई थी।

    हालांकि, जब वह अपने विकलांगता प्रमाण पत्र के लिए खुद की जांच करवाने गए, तो उक्त प्रमाण पत्र में कहा गया कि याचिकाकर्ता एमसीआई के दिशानिर्देशों के अनुसार मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए योग्य नहीं था, क्योंकि उसकी विकलांगता की सीमा 85 प्रतिशत है।

    एक पुराने आदेश में, अदालत ने निर्देश दिया था कि 1997 के विनियमों के परिशिष्ट एच 1 के अनुपालन में सहायक उपकरणों के साथ एम्स का एक मेडिकल बोर्ड याचिकाकर्ता की जांच करें। नतीजतन,एम्स ने एक हलफनामा दायर किया था, जिसमें कहा गया कि कोई ऐसा सहायक उपकरण अस्तित्व में नहीं है ,जिससे याचिकाकर्ता द्वारा पीड़ित या ग्रसित विकलांगता की डिग्री को कम नहीं किया जा सके।

    प्रतिवादी की तरफ से पेश होते हुए श्री टी.सिंहदेव ने प्रस्तुत किया कि, वीएमएमसी अस्पताल के विकलांगता प्रमाण पत्र ने प्रमाणित किया है कि याचिकाकर्ता 80 प्रतिशत से अधिक विकलांगता से पीड़ित या ग्रसित है। इसलिए यह संभव नहीं है कि याचिकाकर्ता को एमबीबीएस पाठ्यक्रम में शामिल होने या दाखिला लेने की अनुमति दी जाए।

    उन्होंने यह भी तर्क दिया कि जो इस मामले में वह विनियम अप्लाई होंगे जो छात्र के प्रवेश की तिथि के समय लागू थे, न कि आवेदन जमा करने की तिथि पर। याचिकाकर्ता को कोई राहत न देते हुए अदालत ने ''विधि हिम्मत कटारिया'' मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित निम्नलिखित नियमों पर भरोसा किया।

    अदालत के अनुसार उस मामले में वर्तमान मामले के समान तथ्य थे-

    1.उस समय प्रासंगिक आवश्यक पात्रता मानदंडों पर विचार किया जाना आवश्यक है जब याचिकाकर्ताओं को पीडब्ल्यूडी कोटा के तहत एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश प्राप्त करना था।

    2. परिशिष्ट 'एच' के अनुसार आवश्यक पात्रता मानदंड पर उस समय विचार किया जाना आवश्यक है जब उम्मीदवार पीडब्ल्यूडी श्रेणी के तहत चिकित्सा पाठ्यक्रम में प्रवेश चाहते थे।

    3. परिशिष्ट 'एच' के अनुसार आवश्यक पात्रता मानदंड पर विचार करने की प्रासंगिक तिथि वह तिथि होगी, जिस तिथि को उम्मीदवारों ने पीडब्ल्यूडी कोटे के तहत एमबीबीएस कोर्स में प्रवेश की मांग की थी।

    वीएमएमसी द्वारा जारी विकलांगता प्रमाण पत्र को रद्द करने की मांग वाली याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज करते हुए, अदालत ने कहा कि कोई भी कानून की अदालत सक्षम चिकित्सा प्राधिकारी द्वारा जारी विकलांगता प्रमाण पत्र को रद्द नहीं कर सकता है। अदालत ने निम्नलिखित बातें कहकर इस मुद्दे के तथ्यों को संबोधित किया-

    "चिकित्सा शिक्षा से जुड़े मामलों में, न्यायालयों को काफी हद तक एहतियात बरतने की आवश्यकता होती है। सार्वजनिक हित का तत्व, जो ऐसे मामलों में पूर्व-प्रतिष्ठित है, को कभी भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

    हालांकि किसी भी तरीके से,हमारा यह इरादा नहीं है कि हम याचिकाकर्ता की क्षमता पर संदेह करे। हम, उसकी दुर्भाग्यपूर्ण शारीरिक सीमाओं के बावजूद भी उसके द्वारा प्राप्त उसकी उपलब्धियों की सराहना करते हैं। एमसीआई द्वारा निर्धारित विनियमों द्वारा तय मानकों को विशेषज्ञों द्वारा तैयार किया जाता हैै। जो उन आदमी के सर्वोत्तम हितों को ध्यान में रखते हुए बनाए जाते है,जो इलाज करता है,साथ ही जिसका इलाज किया जाता है। हम, इन नियमों के फ्रैमर्स या नियमों द्वारा तय की गई सीमाओं की तुलना में अधिक ज्ञान नहीं रखते है या नहीं दे सकते हैं।'

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं



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