नमूने की जांच में ड्रग अधिकारियों द्वारा किया गया व्यापक रहस्यमयी विलंब ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत कानूनी कार्यवाही को निष्प्रभावी कर सकता है : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

10 Aug 2020 3:44 PM GMT

  • नमूने की जांच में ड्रग अधिकारियों द्वारा किया गया व्यापक रहस्यमयी विलंब ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत कानूनी कार्यवाही को निष्प्रभावी कर सकता है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नमूने की जांच में ड्रग अधिकारियों द्वारा की गयी यथेष्ट रहस्यमयी देरी, ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के तहत जांच परिणाम पर आधारित जुर्माने को अवैधानिक बना सकती है।

    न्यायमूर्ति रोहिंगटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की खंडपीठ मेडिपोल फर्मास्यूटिकल इंडिया लिमिटेड की ओर से दायर अपील पर विचार कर रही थी। इस कंपनी को काली सूची में डाल दिया गया था। कंपनी की ओर से पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में दायर याचिका खारिज हो गयी थी।

    सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपील पर विचार करते हुए कहा कि नमूने को जांच के लिए भेजने में काफी देरी हुई थी, जिसके कारण नमूने की जांच शेल्फ लाइफ (उत्पाद के भंडारण और उपयोग होने तक की अवधि) समाप्त होने के आठ माह बाद हुई।

    बेंच ने नमूने की जांच में हुई देरी को ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, खाद्य अपमिश्रण निरोधक अधिनियम और कीटनाशक अधिनियम की कसौटी पर परखते हुए कहा :-

    "नमूने जांच में गड़बड़ी के संबंध में सरकारी विश्लेषक की रिपोर्ट के आधार पर जिस व्यक्ति को इन कानूनों के तहत दंडित किया जाना होता है उसके पास संबंधित नमूने की जांच वरीय या अपीलीय ऑथरिटी जैसे सेंट्रल ड्रग्स लेबोरेट्री द्वारा करवाने की मांग का महत्वपूर्ण अधिकार है।

    ये निर्णय कहते हैं कि सरकार या उसके किसी भी निकाय द्वारा की गयी देरी के कारण यदि सामान खराब हो जाता है और वह अपेक्षित मानक पर खरा नहीं उतरता तो ऐसे नमूने की जांच के आधार पर किया गया मुकदमा या दी गयी सजा को कायम नहीं रखा जा सकता।"

    मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए बेंच ने आगे कहा:

    "हमने इस मामले के तथ्यों को देखा है कि नमूने लेने और उसकी सरकारी विश्लेषक द्वारा जांच किये जाने में काफी देरी हुई, जिसके परिणामस्वरूप नमूना शेल्फ लाइफ की तरफ बढ़ने लगा था।

    यहां तक कि जब नमूना सेंट्रल ड्रग्स लेबोरेट्री को भेजा गया तब तक काफी देरी हो चुकी थी और नमूना के परीक्षण में शेल्फ लाइफ से आठ माह से अधिक की देरी हुई। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट की धारा 25 के तहत प्राप्त महत्वपूर्ण अधिकार इस मामले के तथ्यों पर भारी पड़ता है और नतीजतन ऐसे जांच के आधार पर लगाया गया जुर्माना अवैधानिक हो जाता है।"

    कोर्ट ने यह भी कहा कि कंपनी को काली सूची में डालने के अपने अधिकार का इस्तेमाल करते वक्त सरकार को किसी भी तरह से मनमाना रवैया अपनाये बिना निष्पक्ष एवं तर्कसंगत तरीके से कार्य करना होता है। इस मामले में, कोर्ट ने पाया कि काली सूची में कंपनी को डालने का सरकार का फैसला मनमाना था, इसलिए उसने काली सूची में डालने संबंधी आदेश को निरस्त कर दिया।

    केस का विवरण

    केस नं. : सिविल अपील नं. 2903/2020

    केस का नाम : मेडिपोल फर्मास्यूटिकल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च

    कोरम : न्यायमूर्ति रोहिंगटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा

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