मृतक कर्मचारी की दूसरी पत्नी से पैदा हुए बच्चे को अनुकंपा नियुक्ति देने से इनकार नहीं किया जा सकता : राजस्थान हाईकोर्ट

Sharafat

11 Oct 2022 8:55 PM IST

  • मृतक कर्मचारी की दूसरी पत्नी से पैदा हुए बच्चे को अनुकंपा नियुक्ति देने से इनकार नहीं किया जा सकता : राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट (जोधपुर बेंच) ने कहा है कि मृतक कर्मचारी की दूसरी पत्नी से पैदा हुए बच्चे को अनुकंपा नियुक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस कुलदीप माथुर की पीठ ने निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए मुकेश कुमार बनाम भारत संघ 2022 लाइव लॉ (एससी) 205 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह देखा गया था कि अनुकंपा नियुक्ति नीति मृत कर्मचारी के बच्चों को वैध और नाजायज के रूप में वर्गीकृत करके वंश के आधार पर एक व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं कर सकती।

    हाईकोर्ट के समक्ष मौजूदा मामले में मृतक कर्मचारी (मोहन सिंह) की राज्य के सिंचाई विभाग में सेवा के दौरान मौत हो गई। वह अपने पीछे दो पत्नियां और दूसरी पत्नी से एक बेटा छोड़ गए। उनकी दूसरी पत्नी (याचिकाकर्ता नंबर 1) ने राजस्थान मृत सरकारी सेवकों के आश्रितों की अनुकंपा नियुक्ति नियम, 1996 के प्रावधानों के अनुसार अनुकंपा नियुक्ति की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया ।

    हालांकि, इस आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि चूंकि वह मृतक कर्मचारी की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी नहीं है, इसलिए वह नियुक्ति की हकदार नहीं होगी। उसने इस आदेश को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी, हालांकि, रिट याचिका के लंबित रहने के दौरान, वह अधिक उम्र की हो गई और इस प्रकार, बेटे यानी जतिन सिंह (याचिकाकर्ता नंबर 2) के लिए अनुकंपा नियुक्ति के लिए मामले को आगे बढ़ाने की स्वतंत्रता की मांग करते हुए रिट याचिका वापस ले ली गई।

    इसके बाद जतिन सिंह (याचिकाकर्ता नंबर 2) के अभ्यावेदन को भी सिंचाई विभाग ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि दूसरी पत्नी का बेटा होने के कारण वह अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति का हकदार नहीं है।

    इसे देखते हुए वर्तमान याचिका न्यायालय के समक्ष आई, जिसमें न्यायालय ने शुरुआत में, मुकेश कुमार (सुप्रा) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ध्यान देने के लिए जोर दिया कि हालांकि अनुकंपा नियुक्ति संवैधानिक गारंटी का अपवाद है। हालांकि, अनुच्छेद 16 के तहत अनुकंपा पर नियुक्ति की नीति अनुच्छेद 14 और 16 के अधिदेश के अनुरूप होनी चाहिए।

    जस्टिस माथुर ने आगे कहा कि अनुकंपा नियुक्ति की नीति, जिसमें कानून का बल है, उसे वंश के आधार पर अनुच्छेद 16 (2) में उल्लिखित किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए।

    कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला,

    " इस संबंध में वंश को किसी व्यक्ति के पारिवारिक मूल को शामिल करने के लिए समझा जाना चाहिए। पारिवारिक मूल में अनुकंपा नियुक्ति के दावेदार के माता-पिता के विवाह की वैधता और दावेदार की उनके बच्चे के रूप में वैधता शामिल है।"

    याचिकाकर्ता नंबर 2 को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए 1996 के नियम के तहत विचार करने से इस आधार पर इनकार नहीं किया जा सकता कि वह मृतक कर्मचारी की दूसरी पत्नी का बेटा है।

    नतीजतन, प्रतिवादियों को निर्देश दिया गया कि अगर वह 3 महीने की अवधि के भीतर अन्य सभी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं तो उन्हें अनुकंपा नियुक्ति प्रदान करने के लिए 1996 के नियमों के अनुसार अनुकंपा नियुक्ति के लिए याचिकाकर्ता नंबर 2 के मामले पर विचार करें।


    केस टाइटल- चंद्रा देवी और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य [एसबी सिविल रिट याचिका नंबर10865/2017]

    साइटेशन :

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