महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक घोटाला : सुप्रीम कोर्ट ने जांच पर रोक लगाने से किया इनकार, कहा यह गंभीर मामला
LiveLaw News Network
3 Sept 2019 8:52 AM IST
महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक घोटाले के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश पर चल रही जांच को हरी झंडी दिखाते हुए यह कहा कि ये मामला बड़ी रकम से जुड़ा है और इस चरण पर इसे रोका नहीं जा सकता है।
"मामले की जांच रहेगी जारी; बरतनी होगी पारदर्शिता"
कुछ आरोपियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ये मामला गंभीर है और इस मामले की जांच जारी रहेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों की FIR के खिलाफ याचिका को खारिज करते हुए यह कहा कि जांच एजेंसी हाई कोर्ट की टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना जारी रखेगी। कोर्ट ने कहा कि मामले की जांच निष्पक्ष और पारदर्शी होनी चाहिए।
हालांकि इस दौरान सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी और रंजीत कुमार ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने की मांग की थी।
हाई कोर्ट ने मामले में FIR दर्ज करने का दिया था आदेश
गौरतलब है कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने बीते 22 अगस्त को मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) को एनसीपी नेता अजित पवार तथा 70 से अधिक अन्य लोगों के खिलाफ महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक (MSCB) घोटाला मामले में FIR दर्ज करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि इन लोगों के खिलाफ मामले में प्रथम दृष्टया विश्वसनीय साक्ष्य मौजूद हैं।
मामले में शामिल हैं बड़े नाम; MSCB को हुआ था 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान
जस्टिस एस. सी. धर्माधिकारी और जस्टिस एस. के. शिंदे ने EOW को अगले 5 दिन के भीतर केस दर्ज करने का आदेश दिया था। पूर्व उपमुख्यमंत्री पवार के अलावा मामले के अन्य आरोपियों में एनसीपी नेता जयंत पाटिल तथा राज्य के 34 जिलों के विभिन्न वरिष्ठ सहकारी बैंक अधिकारी शामिल हैं। आरोप है कि उनकी मिलीभगत से वर्ष 2007 से 2011 के बीच MSCB को करीब 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
नाबार्ड ने दी थी रिपोर्ट और एमसीएस कानून के तहत दाखिल हुआ था आरोपपत्र
नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डिवेलपमेंट (नाबार्ड) ने इसका निरीक्षण किया था और अर्द्ध-न्यायिक जांच आयोग ने महाराष्ट्र सहकारी सोसाइटी अधिनियम (एमसीएस) के तहत एक आरोपपत्र दाखिल किया। आरोपपत्र में पवार तथा बैंक के कई निदेशकों सहित अन्य आरोपियों को नुकसान के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। इसमें कहा गया था कि उनके फैसलों, कार्रवाइयों और निष्क्रियता से बैंक को नुकसान हुआ था।
स्थानीय एक्टिविस्ट सुरिन्दर अरोड़ा ने वर्ष 2015 में इस मामले को लेकर EOW में एक शिकायत दर्ज कराई और बाद में FIR दर्ज करने की मांग को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की। हाई कोर्ट ने यह कहा था कि नाबार्ड की रिपोर्ट, शिकायत और एमसीएस कानून के तहत दाखिल आरोपपत्र प्रथम दृष्टया यह बताते हैं कि मामले में आरोपियों के खिलाफ विश्वसनीय साक्ष्य हैं।