CJI के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए AG ने तीन रिटायर्ड जजों का पैनल बनाने का सुझाव दिया था
Live Law Hindi
11 May 2019 8:32 PM IST
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए 3 जजों के इन-हाउस पैनल का गठन भारत के अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल द्वारा दिए गए सुझाव की अनदेखी करते हुए किया गया था।
AG ने दिया था सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के पैनल से जांच का सुझाव
दरअसल AG ने यह सलाह दी थी कि यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच 3 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के पैनल द्वारा की जानी चाहिए जिसमें 1 महिला भी शामिल हो। यह सुझाव उनके द्वारा CJI और वरिष्ठता क्रम में अगले 4 वरिष्ठ न्यायाधीशों को 22 अप्रैल को पत्र द्वारा दिया गया। इससे पहले 20 अप्रैल को शनिवार के दिन सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर विशेष सुनवाई भी की गई थी।
CJI के प्रभाव से जांच हो स्वतंत्र
इसका मतलब यह है कि हालांकि AG CJI के बचाव के समर्थन में थे कि आरोप "न्यायपालिका को निष्क्रिय करने" की साजिश है, लेकिन वास्तव में वे उस पैनल द्वारा निष्पक्ष जांच चाहते थे जो CJI के प्रभाव से पूरी तरह से स्वतंत्र हो।
AG और सरकार के विचार थे अलग
इससे पहले दिन में 'द वायर' ने खबर दी थी कि AG ने सुप्रीम कोर्ट के सभी न्यायाधीशों को लिखा था कि बाहरी सदस्यों को अदालत द्वारा गठित इन-हाउस समिति में लाया जाए। उस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि AG के विचार सरकार के रुख से अलग थे और इसी कारण AG को बाद में यह स्पष्ट करने के लिए मजबूर किया गया कि उनकी राय विशुद्ध रूप से व्यक्तिगत थी।
AG ने 'द वायर' की रिपोर्ट का किया खंडन
' द वायर' रिपोर्ट ने इस वजह से AG और केंद्र के बीच दरार पर संकेत दिया था और अनुमान लगाया कि AG इस्तीफा दे सकते हैं। हालांकि AG ने 'द वायर' की रिपोर्ट का खंडन किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके द्वारा CJI और अगले 4 वरिष्ठ न्यायाधीशों को लिखे पत्र में 3 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के एक पैनल का सुझाव दिया दिया गया था और यह इन-हाउस पैनल के गठन से पहले भेजा गया था।
AG ने अपनी मांग को लेकर दिया स्पष्टिकरण
AG द्वारा यह पुष्टि की गई कि उन्होंने CJI और अगले 4 वरिष्ठ न्यायाधीशों को लिखा था और यह सुझाव दिया था कि जांच 3 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के एक पैनल द्वारा की जाए जिनमें से 1 महिला भी हो। सरकार इस विकास से खुश नहीं थी और विवाद से खुद को दूर करना चाहती थी। इसके बाद वेणुगोपाल ने बाद में 5 न्यायाधीशों को एक स्पष्टीकरण लिखा कि वह 65 साल के अनुभव के साथ एक वकील की क्षमता में सुझाव को व्यक्त कर रहे थे ना कि अटॉर्नी जनरल की क्षमता में।
AG ने व्यक्त किया था उत्सव बैंस के षड्यंत्र सिद्धांत के दावों के बारे में संदेह
इस संदर्भ में यह नोट करना प्रासंगिक हो सकता है कि AG ने उत्सव बैंस के षड्यंत्र सिद्धांत के दावों के बारे में संदेह व्यक्त किया था। जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस आर. एफ. नरीमन और जस्टिस दीपक गुप्ता की विशेष पीठ के समक्ष पेश की गई दलीलों में AG ने इस मुद्दे पर बैंस के विशेषाधिकार के दावों का यह कहते हुए भी विरोध किया था कि "मैं वास्तव में यह नहीं समझ सकता कि कोई व्यक्ति कैसे कोई आरोप लगा सकता है और बाकी विशेषाधिकार का दावा कर सकता है।"
AG की सलाह को अदालत ने किया खारिज
वैसे AG की सलाह को अदालत ने खारिज कर दिया क्योंकि 23 अप्रैल को 3 न्यायाधीशों - जस्टिस बोबडे, जस्टिस रमना और जस्टिस इंदिरा बनर्जी का एक पैनल बनाया गया। बाद में जस्टिस रमना ने CJI के साथ निकटता के कारण पक्षपात की आशंका के बाद पैनल से खुद को अलग कर लिया। फिर उनके स्थान पर जस्टिस इंदु मल्होत्रा को लिया गया।
गौरतलब है कि AG का पत्र जस्टिस बोबडे को जस्टिस चंद्रचूड़ द्वारा लिखे गए पत्र से पहले लिखा गया जिसमें पैनल में बाहरी सदस्यों को शामिल करने और महिला को वकील की सहायता की अनुमति देने को कहा गया।
हालांकि 30 अप्रैल को मामले की शिकायकर्ता ने पैनल की सुनवाई में ना जाने का फैसला किया और 6 मई को 3 जजों के पैनल ने CJI को इस आरोप से क्लीन चिट दे दी।
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