अकारण किसी बच्चे को उसके बाप के प्यार से वंचित नहीं किया जा सकता; बॉम्बे हाईकोर्ट ने मिस्र के नागरिक की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका स्वीकार की

LiveLaw News Network

1 Feb 2020 8:12 AM GMT

  • अकारण किसी बच्चे को उसके बाप के प्यार से वंचित नहीं किया जा सकता; बॉम्बे हाईकोर्ट ने मिस्र के नागरिक की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका स्वीकार की

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को मिस्र के नागरिक ख़ालिद क़ासिम की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका स्वीकार कर ली जो उसने अपनी पत्नी की बहन और मां के ख़िलाफ़ दायर की थी। उसने आरोप लगाया है कि इन दोनों ने उनके 11 महीने के बेटे कियान को छिपा रखा है।

    न्यायमूर्ति एसएस शिंदे और न्यायमूर्ति एनबी सूर्यवंशी की पीठ ने इस याचिका की सुनवाई की। याचिका में कहा गया था कि याचिकाकर्ता की पत्नी सौमी की मौत के बाद उसकी पत्नी की बहन पौलमि ने कोशिश की कि वह कियान को उसके साथ भारत में ही छोड़ दे और उसे अल्जीरिया की अपनी नौकरी भी छोड़ दे। यह भी आरोप लगाया अगया कि पौलमि ने याचिकाकर्ता के खिलाफ यौन उत्पीड़न का फ़र्ज़ी आरोप लगाते हुए मामला भी दायर किया था ताकि वह कियान का संरक्षण प्राप्त कर सके।

    पृष्ठभूमि

    याचिकाकर्ता ने सौमी घोष से अगस्त 2014 में शादी की। यह विवाह म्यांमार के मिस्र दूतावास में आयोजित हुआ। उनके बेटे कियान का जन्म 3 फ़रवरी 2019 पुणे में हुआ। 17 अप्रैल 2019 को सौमी की अचानक मौत हो गई।

    याचिकाकर्ता ने कहा कि उसकी पत्नी की मौत के तुरंत बाद पौलमि उस पर उसके बेटे को पुणे में उसके पास छोड़ देने का दबाव बनाने लगी। यहां तक कि पौलमि ने उसे अल्जीरिया की अपनी नौकरी भी छोड़ देने और पुणे में बस जाने को कहा। इसके बाद याचिकाकर्ता बच्चे और पौलमि के साथ जून 2019 में मिस्र गए जहां वे एक ही अपार्टमेंट में रहे। इस दौरान कियान को पौलमि ने अपने पास ही कमरे में बंद करके रखा।

    बाद में पौलमि ने उसके साथ शादी करके साथ रहने की इच्छा ज़ाहिर की। तीनों दुबई आ गए जहां याचिककर्ता को नौकरी मिल गई। पर याचिकाकर्ता ने पौलमि को स्पष्ट कहा था कि वह उससे शादी नहीं कर सकता।

    इसके बाद सितम्बर 2019 में पौलमि ने भारत आने की ज़िद की। 29 सितम्बर को याचिकाकर्ता को पता चला कि पौलमि ने उसके ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न का मुक़दमा भी दायर किया है।

    फ़ैसला

    नवरोज़ सीरवाई ने याचिकाकर्ता की पैरवी की जबकि सोनल गुप्ता और रोहित गुप्ता ने पौलमि और उसकी मां चंदा की पैरवी की। सीरवाई ने अपनी दलील में कहा कि यह मामला बच्चे का संरक्षण किसको मिलेगा इसका नहीं है बल्कि बच्चे को ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से बंद रखने का है।

    प्रतिवादी के वक़ील ने कहा कि याचिकाकर्ता पिता बनने लायक़ नहीं है क्योंकि वह गुस्सेवाला और धौंस जमाने वाला है और उसने पौलमि का यौन उत्पीड़न किया था और उसमें बच्चों के यौन शोषण की भी धारणा है।

    अदालत ने कहा,

    "…कियान मात्र 11 महीने का है और उसे किसी धर्म का बताना उसके ख़िलाफ़ ज़्यादती होगी…अभी वह अपनी राय क़ायम करने की स्थिति में नहीं है।"

    "निर्विवाद रूप से याचिकाकर्ता बच्चे का एकमात्र स्वाभाविक अभिभावक है। 11 महीने के बच्चे को निश्चित रूप से उसके प्यार और देखभाल की ज़रूरत है। यह भी लगता है कि याचिकाकर्ता की आर्थिक स्थिति स्थायी है। याचिकाकर्ता की योग्यता को देखते हुए और यह कि उसकी नौकरी भी अच्छी है और वह प्रतिष्ठित पद पर काम करता है, कियान को उसके संरक्षण से वंचित करने का कोई कारण नहीं है…।

    बालक कीयन की मां की मौत उस समय हो गई थी जब वह मात्र दो महीने का था और बिना किसी उचित कारण के उसे उसके पिता के प्यार से वंचित नहीं किया जा सकता।"

    इस बारे में अदालत ने याशिता साहू बनाम राजस्थान राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का हवाला भी दिया। और अंत में याचिकाकर्ता ने यह लिखित आश्वासन दिया कि अगर अदालत बच्चे को उसके संरक्षण में देती है तो वह पौलमि और उसकी माँ दोनों को पूरे वर्ष भर कीयन से मिलने देंगे और नोटिस देने के बाद वे यूएई में कियान से मिल सकते हैं। इस तरह अदालत ने कियान को याचिकाकर्ता के संरक्षण में दे दिया।


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