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बार एसोसिएशन की हड़ताल पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, वकीलों का कर्तव्य केवल व्यवस्था के प्रति नहीं है, बल्कि समाज और देश के प्रति भी है

LiveLaw News Network
3 Sep 2019 5:21 AM GMT
बार एसोसिएशन की हड़ताल पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, वकीलों का कर्तव्य केवल व्यवस्था के प्रति नहीं है, बल्कि समाज और देश के प्रति भी है
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सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते इलाहाबाद और अवध के बार एसोसिएशन द्वारा की गई हड़ताल के आह्वान की आलोचना करते हुए कहा था कि वे "हड़ताल का सहारा लेकर अपनी मांगों का निपटारा नहीं कर सकते हैं, जिसके फलस्वरूप पक्षकारों/याचियों के लिए न्याय में देरी के अलावा और कुछ हासिल नहीं होता है।"

जस्टिस अरुण मिश्रा और एम. आर. शाह की बेंच ने देखा, "हम दोनों बार संघों से यह अनुरोध करते हैं कि वे हड़ताल में शामिल न हों क्योंकि अदालतें न्याय देने के लिए हैं, जिसके दरवाजे उन याचियों के लिए बंद नहीं किए जा सकते हैं, जिनकी जान, स्वतंत्रता और संपत्ति खतरे में है। वकीलों का कर्तव्य केवल व्यवस्था के प्रति नहीं है, बल्कि समाज और देश के प्रति भी है। वे एक महान पेशे से ताल्लुक रखते हैं, जिसका समाज में उच्च सम्मान है और इसीलिए वकील, समाज के एक अलग सम्मानजनक वर्ग का निर्माण करते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि दोनों बार संघों में अच्छी भावना बनी रहेगी और उन्हें हड़ताल का सहारा लेकर अपनी मांगों का निपटारा नहीं करना चाहिए, जिसके कारण याचियों को न्याय में देरी के अलावा और कुछ हासिल नहीं होता है।"

हड़तालों का कारण इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा इलाहाबाद के बजाय लखनऊ में शिक्षा न्यायाधिकरण स्थापित करने के लिए जारी किया गया एक suo moto (स्वत: संज्ञान लेना) निर्देश था।

suo moto जारी किये गए आदेश को चुनौती देते हुए बार एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश को पलटते हुए यह माना कि उच्च न्यायालय द्वारा इस प्रकार से ऐसा suo moto आदेश पारित नहीं किया जा सकता था। उसी समय सुप्रीम कोर्ट ने यह देखा कि बार संघों को हड़ताल में शामिल नहीं होना चाहिए।

यूपी में लंबित मामलों की भारी संख्या का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि वकीलों का कर्तव्य न केवल सिस्टम के प्रति है बल्कि समाज और देश के प्रति भी है।

"इलाहाबाद उच्च न्यायालय में पहले से ही लगभग 10 लाख मामले लंबित हैं। इसीलिए, दोनों बार संघों के पदाधिकारियों पर अधिक जिम्मेदारी के साथ व्यवहार करने और यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है कि न्यायालय एक भी दिन के लिए बंद न हों और वहां लगातार काम किया जाता रहे, अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब कुछ ऐसे तरीके पर काम करना होगा, कि कैसे लंबित मामलों को कम किया जा सके और पक्षकारों.याचियों को त्वरित न्याय दिलाया जा सके।"

"यदि बार संघ इस पद्धति और तरीके से हड़ताल करने का सहारा लेते हैं, तो यह न्यायालय, न्यायिक पक्ष में मामले को उठाने और कानून के अनुसार इससे निपटने के लिए विकल्प खुला रखता है", सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी।

हालांकि, उपरोक्त आदेश में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी चेतावनी के बावजूद इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने हड़ताल और प्रदर्शन का सहारा लिया। शिक्षा न्यायाधिकरण की स्थापना पर आक्रोश व्यक्त करने के लिए सदस्यों ने 27 अगस्त को हड़ताल शुरू की। तब से हड़ताल बेरोकटोक जारी है।

सोमवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति गोविंद माथुर ने एक नोटिस जारी किया, जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन (HCBA) के अधिवक्ताओं से उनकी हड़ताल समाप्त करने और काम फिर से शुरू करने की अपील की गई।

नोटिस में HCBA के सभी अधिवक्ताओं से अपने कर्तव्यों के निर्वहन और न्यायालय के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने की अपील की गई है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश का संदर्भ भी दिया गया है। इस प्रकाश में, मुख्य न्यायाधीश ने अधिवक्ताओं से सार्वजनिक और संस्थागत हितों में फिर से काम शुरू करने का आग्रह किया गया।

HCBA की एक सामान्य बैठक मंगलवार दोपहर बार एसोसिएशन लाइब्रेरी में आयोजित होने वाली है।



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