इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनाधिकृत पाठ्यक्रम में कथित रूप से प्रवेश देने के लिए विश्वविद्यालय के खिलाफ जांच का निर्देश दिया

LiveLaw News Network

14 Nov 2019 2:00 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनाधिकृत पाठ्यक्रम में कथित रूप से प्रवेश देने के लिए विश्वविद्यालय के खिलाफ जांच का निर्देश दिया

    याचिकाकर्ता की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, जिसको कथित रूप से नोएडा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय ने अनाधिकृत पाठ्यक्रम में प्रवेश दिया था, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया को एक निरीक्षण दल का गठन करने और मामले पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

    अदालत ने कहा कि

    ''श्री शिवम शुक्ला, बार काउंसिल ऑफ इंडिया, नई दिल्ली का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील को निर्देश दिया जाता है कि वह इस आदेश की प्रमाणित प्रति और रिट याचिका की पूरी प्रति बार काउंसिल ऑफ इंडिया, नई दिल्ली के अध्यक्ष/उपाध्यक्ष को भेज दें।

    बार काउंसिल के पदाधिकारियों से अनुरोध किया जाता है कि वे उचित कदम उठाएं और यदि संभव हो तो तुरंत जांच करें। बार काउंसिल ऑफ इंडिया, नई दिल्ली द्वारा प्रतिनियुक्त निरीक्षण दल दो सप्ताह के भीतर इस न्यायालय के समक्ष अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करें।''

    सुनवाई बंद कमरे में हुई

    न्यायमूर्ति अशोक कुमार द्वारा अधिवक्ताओं की हड़ताल के दिन यानी 4 नवंबर को मामले की सुनवाई बंद कमरे या चैंबर में की गई थी।

    आरोप है कि याचिकाकर्ता, प्रतीक शुक्ला को बीबीए प्लस एलएलबी (ऑनर्स) पाठ्यक्रम या कोर्स के लिए वर्ष 2013-14 के बैच में स्कूल ऑफ लीगल स्टडीज एंड रिसर्च, नोएडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी द्वारा दाखिला दिया गया था। हालांकि, उक्त पाठ्यक्रम के पूरा होने पर याचिकाकर्ता को बीबीए-एलएलबी की प्रोविजनल डिग्री प्रदान की गई, न कि बीबीए-एलएलबी (ऑनर्स।) की।

    अपनी दलील में शुक्ला ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय द्वारा उसे कॉलेज में चयन का पत्र जारी किया गया था, जिस पर निदेशक (प्रवेश) नोएडा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय द्वारा विधिवत मुहर लगाई गई थी और हस्ताक्षर किए गए थे। इसके अलावा, विश्वविद्यालय ने यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) द्वारा मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय होने का दावा किया था, जिसे उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भी विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया है।

    हालांकि, बार काउंसिल ऑफ इंडिया सहित विभिन्न स्रोतों से पूछताछ पर उसने पाया कि उक्त विश्वविद्यालय शिक्षण और ऑनर्स की डिग्री जारी करने के लिए अधिकृत नहीं था। इसलिए यह आरोप लगाया गया था कि प्रतिवादी विश्वविद्यालय ने धोखाधड़ी की थी। उसे धोखा दिया गया था और उसकी की तरह या उसी के समान अन्य छात्रों को भी धोखा दिया गया है।

    इन परिस्थितियों में उपरोक्त जांच का आदेश देते हुए अदालत ने उक्त विश्वविद्यालय के कुलपति और कुलसचिव को भी अभियोजित करने के लिए निर्देश जारी किए हैं।

    अब इस मामले पर 28 नवंबर को उपयुक्त पीठ द्वारा सुनवाई की जाएगी। याचिकाकर्ता मामले में व्यक्तिगत तौर पर पेश हुआ और राज्य का प्रतिनिधित्व सी.एस.सी. रिजवान अली अख्तर और रोहन गुप्ता ने किया।

    Next Story