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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डॉ कफील खान की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई 27 अगस्त के लिए टाली

LiveLaw News Network
24 Aug 2020 9:24 AM GMT
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डॉ कफील खान की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई 27 अगस्त के लिए टाली
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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने डॉ कफील खान की कथित अवैध हिरासत के खिलाफ दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई 27 अगस्त, 2020 तक के लिए स्थगित कर दी है।

मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह की पीठ ने सुनवाई को यह कहते हुए टाल दिया कि उन्होंने "राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत कार्यवाही के मूल रिकॉर्ड की जांच करना उचित समझा, जिसके परिणामस्वरूप डॉ कफील खान को हिरासत में लिया गया और उसका आगे विस्तार किया गया।"

हालांकि सुनवाई की पिछली तारीख पर, उच्च न्यायालय ने याचिका का निपटारा करने का फैसला किया था लेकिन, अतिरिक्त महाधिवक्ता मनीष गोयल द्वारा किए गए अनुरोध के बाद कि याचिकाकर्ता द्वारा दायर किए गए प्रतिवाद के जवाब में एक और अतिरिक्त हलफनामा दायर करना है, कोर्ट ने मामले को स्थगित कर दिया।

याचिकाकर्ता के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता दिलीप कुमार ने भी राज्य सरकार की ओर से दायर पूरक शपथ पत्र के अध्ययन के लिए समय मांगा था।

वर्तमान में खान राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मथुरा जेल में बंद हैं। उन्हें कथित रूप से CAA के विरोध के बीच 13 दिसंबर, 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एक भड़काऊ भाषण देने के लिए इस साल जनवरी में मुंबई से गिरफ्तार किया गया था।

गौरतलब है कि 29 जनवरी को डाॅ. कफील को यूपी एसटीएफ ने भड़काऊ भाषण के आरोप में मुंबई से गिरफ्तार किया था। 10 फरवरी को अलीगढ़ सीजेएम कोर्ट ने जमानत के आदेश दिए थे लेकिन उनकी रिहाई से पहले NSA लगा दिया गया और वो जेल से रिहा नहीं हो पाए।

उन पर अलीगढ़ में भड़काऊ भाषण और धार्मिक भावनाओं को भड़काने के आरोप लगाए गए है ।

13 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ में उनके खिलाफ धर्म, नस्ल, भाषा के आधार पर नफरत फैलाने के मामले में धारा 153-ए के तहत केस दर्ज किया गया है । आरोप है कि 12 दिसंबर को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों के सामने दिए गए संबोधन में धार्मिक भावनाओं को भड़काया और दूसरे समुदाय के प्रति शत्रुता बढ़ाने का प्रयास किय ।

इसमें ये भी कहा गया है कि 12 दिसंबर 2019 को शाम 6.30 बजे डॉ. कफील और स्वराज इंडिया के अध्यक्ष व एक्टिविस्ट डॉ. योगेंद्र यादव ने AMU में लगभग 600 छात्रों की भीड़ को CAA के खिलाफ संबोधित किया था जिस दौरान कफील ने ऐसी भाषा का प्रयोग किया ।

वर्तमान बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खान की मां नुजहत परवीन ने दाखिल किया है। उन्होंने इस साल मार्च में पहली बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें उसके बेटे को रिहा करने की मांग की गई थी। हालांकि, सीजेआई एस ए बोबडे, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस बीआर गवई की एक पीठ ने इस दलील पर कहा था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय इस मामले से निपटने के लिए उपयुक्त मंच है

इसके बाद, उच्च न्यायालय ने 1 जून, 2020 को इस मामले को सुना। हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील के अनुरोध पर कई स्थगन देने के बाद, अदालत ने इसे अंतिम निपटान के आदेश के लिए 19 अगस्त, 2020 को सूचीबद्ध किया।

अगस्त 2017 में गोरखपुर के बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ऑक्सीजन आपूर्ति की कमी के कारण लगभग 60 शिशुओं की मौत के मामले के दौरान खान पहली बार खबरों में आए थे।

शुरू में सूचित किया गया था कि उन्होंने अपनी जेब से भुगतान करके आपातकालीन ऑक्सीजन की आपूर्ति की व्यवस्था करने के लिए तुरंत कार्रवाही करके एक उद्धारकर्ता के रूप में काम किया है।

बच्चों के लिए गैस सिलेंडरों की व्यवस्था करने में नायक माने जाने के बावजूद, उन्हें

भारतीय दंड संहिता की धारा धारा 409 (लोक सेवक द्वारा विश्वास का आपराधिक उल्लंघन ), 308 ( गैर इरादतन हत्या का प्रयास) और 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत दर्ज एफआईआर में नामजद किया गया था। यह आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अपने कर्तव्यों में लापरवाही की थी जिसके परिणामस्वरूप ऑक्सीजन की कमी हुई।

उन्हें सितंबर 2017 में गिरफ्तार किया गया था, और अप्रैल 2018 में ही रिहा कर दिया गया था, जब उच्च न्यायालय ने यह देखते हुए कि व्यक्तिगत रूप से डॉ खान के खिलाफ चिकित्सा लापरवाही के आरोपों को स्थापित करने के लिए कोई सामग्री मौजूद नहीं है, उनकी जमानत अर्जी को अनुमति दे दी थी।

उन्हें पद पर लापरवाही बरतने आरोप में सेवा से भी निलंबित कर दिया गया था। विभागीय जांच की एक रिपोर्ट में उन्हें सितंबर 2019 में आरोपों से मुक्त कर दिया गया।

आदेश की प्रति डाउनलोड करें



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