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आर्किटेक्चर शिक्षा में डिग्री/ डिप्लोमा को एआईसीटीई नियंत्रित करने का हकदार नहीं : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network
12 Nov 2019 6:30 AM GMT
आर्किटेक्चर शिक्षा में डिग्री/ डिप्लोमा को एआईसीटीई नियंत्रित करने का हकदार नहीं : सुप्रीम कोर्ट
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आर्किटेक्चर (वास्तुकला) में डिग्री और डिप्लोमा के लिए शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थान को वास्तुकला परिषद के द्वारा निर्धारित मानदंड और विनियमों के साथ-साथ वास्तुकला अधिनियम के तहत अन्य निर्दिष्ट प्राधिकारी या ऑथारिटीज़ का पालन करना होगा।

सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि जहां तक वास्तुकला शिक्षा की डिग्री और डिप्लोमा की मान्यता का संबंध है, तो आर्किटेक्ट्स अधिनियम या वास्तुकला अधिनियम 1972, प्रबल होगा रहेगा।

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) वास्तुकला विषय की डिग्री और डिप्लोमा के संबंध में कोई नियामक उपाय लागू करने का हकदार नहीं होगा।

यह स्पष्ट किया गया है कि आर्किटेक्चर में डिग्री और डिप्लोमा के लिए शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थान को वास्तुकला परिषद के द्वारा निर्धारित मानदंड और विनियमों के साथ-साथ वास्तुकला अधिनियम के तहत अन्य निर्दिष्ट प्राधिकारी का पालन करना होगा।

यह था मुद्दा

''ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन बनाम श्री प्रिंस शिवाजी मराठा बोर्डिंग हाउस ऑफ कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर ''में उठाया गया मुद्दा यह था कि आर्किटेक्चर में शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थान को अनुमोदन देने के सवाल और संबंधित मामलों में काउंसिल ऑफ आर्किटेक्चर (सीओए) का और ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) में से किसका शासनादेश कायम रहेगा? यदि इन दोनों निकायों की राय में कोई विरोधाभास है तो ?

अपील में लगाए गए बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए, पीठ ने कहा कि-


"अधिनियम 1987 की धारा 2 (जी) के प्रावधानों के संबंध में,हमारा विचार है कि ,''तकनीकी शिक्षा'' की परिभाषा का इस तरह का सृजन करना होगा कि शब्द ''वास्तुकला''को उन मामलों में अनुचित माना जाए, जहां एआईसीटीई तकनीकी शिक्षा देने वाले संस्थानों के लिए अपने नियामक ढांचे प्रदान करता है। हालांकि कोई प्रतिस्थापन या बदला या उपकल्पन नहीं होगा, क्योंकि संदर्भ इसकी मांग नहीं करेगा।


परिभाषा खंड का यह निर्माण आवश्यक है क्योंकि 1987 के अधिनियम के कार्यान्वयन में एक अस्थिर परिणाम को रोकने के लिए बाहरी संदर्भ की आवश्यकता है। जहां तक आर्किटेक्चर शिक्षा से संबंधित प्रावधानों की बात है तो अधिनियम 1987 के लागू होने के आधार पर निहित निरसन का सिद्धांत इन पर लागू नहीं हो सकता है।


1972 अधिनियम के प्रमुख उद्देश्यों में से एक वास्तुकला की योग्यता या शिक्षा की मान्यता देना है। एक वास्तुकार का पंजीकरण ऐसी मान्यता प्राप्त योग्यता के अधिग्रहण या अर्जन करने पर निर्भर करता है। उक्त अधिनियम को तकनीकी शिक्षा की परिभाषा में ''वास्तुकला'' शब्द के शामिल होने के एकमात्र कारण के लिए निहितार्थ द्वारा निरस्त नहीं किया जा सकता है। एआईसीटीई यह साबित करने के लिए अपने मामले का निर्वहन करने में विफल रहा है कि अधिनियम 1972 के उक्त प्रावधान निहितार्थ या तात्पर्य द्वारा निरस्त कर दिए गए है।"

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