AG और केंद्र की अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने वकील प्रशांत भूषण को नोटिस जारी कर जवाब मांगा

LiveLaw News Network

7 Feb 2019 11:13 AM GMT

  • AG और केंद्र की अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने वकील प्रशांत भूषण को नोटिस जारी कर जवाब मांगा

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ दायर याचिकाओं पर उन्हें नोटिस जारी किया है। यह याचिकाएं, प्रशांत भूषण द्वारा किये गए उन ट्वीट्स से संबंधित हैं जिनमें उन्होंने कहा था कि अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट को यह कहकर गुमराह किया है कि अंतरिम सीबीआई निदेशक एम. नागेश्वर राव की नियुक्ति को हाई पॉवर कमेटी ने मंजूरी दी थी। ये अवमानना याचिका अटार्नी जनरल और केंद्र सरकार ने दाखिल की हैं।

    नोटिस जारी करते हुएन्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने इस बड़े मुद्दे पर विचार करने के लिए सहमति जताई कि जब मामला अदालत में लंबित हो तो वकील उस मामले पर कैसे टिप्पणी कर सकते हैं। अदालत में मौजूद प्रशांत भूषण ने जारी नोटिस को स्वीकार किया और अदालत को यह आश्वासन दिया कि वह 3 हफ्ते में अपना जवाब दाखिल करेंगे। पीठ ने इस मामले को 7 मार्च के लिए सूचीबद्ध किया है।

    हालांकि इस सुनवाई में केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल और AG की दलीलों में अंतर देखा गया। एक तरफ जहां AG ने कहा कि वो अवमानना के तहत सजा नहीं चाहते तो दूसरी ओर SG ने कहा कि भूषण को अवमानना के लिए दंडित किया जाना चाहिए।

    हालांकि AG वेणुगोपाल ने जोर देकर कहा कि वह किसी सजा को लागू करने के लिए अदालत पर दबाव नहीं डाल रहे। अदालत को यह तय करना चाहिए कि एक वकील, अदालत में लंबित किसी मामले में किस हद तक सार्वजनिक बयान दे सकता है।

    पीठ ने तब इस मुद्दे पर AG से पूछा, "इस मुद्दे पर कानून क्या है? हमें उप-न्यायिक मामले में वकीलों से क्या उम्मीद करनी चाहिए और क्या उप-न्यायिक मामले में टीवी बहस जैसी सार्वजनिक चर्चा हो सकती है?" पीठ ने कहा, "हम अदालती कार्यवाही पर मीडिया रिपोर्टिंग के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन एक मामले में शामिल वकीलों को अदालत में लंबित मामले में सार्वजनिक बयान देने से बचना चाहिए।"

    न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, "हम बड़े मुद्दे पर हैं। इस मुद्दे को सुलझाने का समय आ गया है। यह देखा गया है कि कभी-कभी वकील मीडिया के पास जाने के प्रलोभन को नियंत्रित नहीं कर पाते। पहले बार एसोसिएशन संस्थान की रक्षा कर रहा था लेकिन अब यह अलग है।"

    दरअसल AG ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की है जिसमें कहा गया कि भूषण ने जानबूझकर सुनवाई के दौरान हाई पावर कमेटी की बैठक के ब्यौरे को गलत बताया जिससे उनकी ईमानदारी और निष्ठा पर सवाल उठे। इसके बाद केंद्र सरकार ने अपनी ओर से अवमानना याचिका दाखिल कर कहा कि सार्वजनिक मंच पर झूठे और गैर-जिम्मेदाराना आरोप लगाने वाले वकील पर दंडनीय कार्रवाई होनी चाहिए।

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