पुलिस द्वारा गिरफ्तार व्यक्ति मजिस्ट्रेट के सामने बिना पेश हुए ज़मानत के लिए आवेदन करने का हकदार, कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला
LiveLaw News Network
25 Sep 2019 2:56 PM GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने निचली अदालत के मजिस्ट्रेट को यह कहते हुए एक ज़मानत याचिका पर वाद और कानून के अनुसार विचार करने के निर्देश दिए हैं कि " यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है और न्यायिक न्यायालय के समक्ष पेश नहीं किया गया है तो वह दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) 1973 की धारा 437 के तहत याचिका दायर करने का हकदार है।"
साईं रामकृष्ण को केरल पुलिस द्वारा सम्पिगे हल्ली (Sampige Halli) पुलिस के अधिकार क्षेत्र से गिरफ्तार किया था। इस गिरफ्तारी की सूचना VII के अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट, बेंगलुरु को दी गई थी और ट्रांजिट ऑर्डर भी पुलिस ने मांगा था। इस बीच, जब आरोपी बीमार हुआ तो उसे जयदेव अस्पताल में भर्ती कराया गया था और फिलहाल वह आईसीयू में है। इस दौरान आरोपी की ओर से इस संदर्भ में Cr.PC की धारा 437 के तहत एक आवेदन न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने किया गया।
याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को सूचित किया कि मजिस्ट्रेट ने आवेदन के गुण पर कोई आदेश पारित नहीं किया है, लेकिन, बस उन्होंने उक्त आवेदन का निस्तारण करते हुए कहा है कि Cr.PC की धारा 437 के तहत कोई भी आदेश पारित करने का उनका अधिकार क्षेत्र नहीं है। मजिस्ट्रेट ने अभियुक्त द्वारा दायर आवेदन को इस आधार पर सुनने से इनकार कर दिया कि आरोपी वास्तव में उनके सामने पेश नहीं किया गया ।
अदालत के समक्ष यह मुद्दा था कि क्या इस मामले में याचिका के गुण के आधार पर Cr.PC की धारा 437 के तहत मजिस्ट्रेट द्वारा आदेश पारित करना उनके अधिकार क्षेत्र में है या नहीं?
न्यायमूर्ति के एन फनिंद्र ने इसी तरह के तथ्यों के साथ एक अन्य मामले में पारित आदेश पर भरोसा करते हुए कहा, "विद्वान मजिस्ट्रेट को Cr.PC की धारा 437 के तहत आवेदन पर सुनवाई करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है।"
आगे यह कहा गया कि "Cr.PC की धारा 437 के तहत जमानत की मांग करने वाले न्यायिक न्यायालय के समक्ष अभियुक्त के वास्तविक रूप से पेश करने की कोई आवश्यकता नहीं है, इसलिए उपरोक्त परिस्थितियों में मजिस्ट्रेट द्वारा Cr.PC की धारा 437 के तहत दायर आवेदन के गुणों पर आदेश पारित न करना गलत है।"