अगर प्रथम दृष्टया मामला बनने का आधार है तो सीआरपीसी 228 के तहत विस्तृत आदेश की ज़रूरत नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
20 Nov 2019 6:58 AM GMT
दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना है कि आरोप पर ट्रायल कोर्ट के आदेश को लंबा या विस्तृत होना जरूरी नहीं है। इस तरह के आदेश से संकेत मिलना चाहिए कि ट्रायल कोर्ट की राय में एक प्रथम दृष्टया मामला बनता है।
अदालत ने धारा 397, सीआरपीसी की धारा 401 के साथ पढ़ा जाए, के तहत दायर एक पुनरीक्षण याचिका को निपटाने के दौरान यह अवलोकन किया, जिसमें याचिकाकर्ता ने अपने खिलाफ आरोप तय करने पर अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ता की दलील
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया था कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश नॉन स्पीकिंग (अस्पष्ट) है। यह तर्क दिया गया था कि इसमें कोई कारण नहीं बताया गया है कि ट्रायल कोर्ट किस आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ एक प्रथम दृष्टया मामला बनाया गया है।
याचिकाकर्ता के दावे को खारिज करते हुए जस्टिस मनोज कुमार ओहरी की सिंगल बेंच ने कहा कि अगर ट्रायल कोर्ट की राय में आरोपी के खिलाफ कार्रवाई में प्रथम दृष्टया मामला बनने का आधार है तो सीआरपीसी की धारा 228 की विस्तृत व्याख्या और लंबा आदेश दर्ज करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
अदालत ने यह भी कहा कि भले ही आदेश में कोई कारण बताने की आवश्यकता नहीं है, फिर भी ट्रायल कोर्ट के आदेश पर तर्क के कुछ संकेत अवश्य होने चाहिए।
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