25 वर्षीय अविवाहित महिला ने 24 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देने से इनकार करने के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया

Brij Nandan

19 July 2022 5:42 AM GMT

  • 25 वर्षीय अविवाहित महिला ने 24 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देने से इनकार करने के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया

    25 वर्षीय अविवाहित महिला ने 24 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देने से इनकार करने के दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का रुख किया है।

    भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हेमा कोहली की पीठ के समक्ष एसएलपी का उल्लेख किया गया था।

    याचिका को आज सूचीबद्ध करने के लिए पीठ से आग्रह करते हुए वकील ने कहा,

    "यह एक 25 वर्षीय महिला से संबंधित है जो 24 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करना चाहती है। उसके लिए हर दिन कठिन है। इसकी मानसिक क्रूरता और यह उसके लिए हर रोज चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। इस मामले को आज के लिए सूचीबद्ध करने का विनम्र अनुरोध है।"

    भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि कोर्ट तत्काल लिस्टिंग के लिए उनकी याचिका पर विचार करेगा।

    आपको बता दें, 16 जुलाई को दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला को 23 सप्ताह और 5 दिनों की गर्भ को समाप्त करने की मांग करने वाली अंतरिम राहत से इनकार कर दिया था।

    कोर्ट ने कहा था कि सहमति से गर्भवती होने वाली अविवाहित महिला स्पष्ट रूप से मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 के तहत इस तरह की श्रेणी में नहीं आती है। इसके फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।

    याचिकाकर्ता की गर्भ इस महीने की 18 तारीख को 24 सप्ताह पूरे चुके हैं।

    चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने इस प्रकार कहा था,

    "आज तक मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 का नियम 3B मौजूद है और यह न्यायालय भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए क़ानून से आगे नहीं जा सकता। ऐसे रिट याचिका को अनुमति देकर कोई अंतरिम राहत नहीं दी जा सकती।"

    मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, जैसा कि 2021 में संशोधित किया गया है, उन महिलाओं की श्रेणियों को प्रदान करता है जिनकी गर्भावस्था 20 सप्ताह से अधिक उम्र के कानूनी रूप से समाप्त की जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि सहमति से गर्भवती होने वाली अविवाहित महिला उन श्रेणियों में निर्दिष्ट नहीं है।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 का नियम 3बी भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, क्योंकि इसमें अविवाहित महिला को शामिल नहीं किया गया है।

    इस पर कोर्ट ने इस प्रकार कहा:

    "ऐसा नियम वैध है या नहीं, यह तभी तय किया जा सकता है जब उक्त नियम को अल्ट्रा वायर्स माना जाता है, जिसके लिए रिट याचिका में नोटिस जारी किया जाना है। इस न्यायालय द्वारा ऐसा किया गया है।"

    कोर्ट ने नोट किया कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा 3 (2) (ए) में प्रावधान है कि मेडिकल प्रैक्टिशनर गर्भावस्था को समाप्त कर सकता है, बशर्ते कि गर्भावस्था 20 सप्ताह से अधिक न हो।

    अदालत ने आगे कहा,

    "अधिनियम की धारा 3 (2) (बी) उन परिस्थितियों में समाप्ति का प्रावधान करती है जहां गर्भावस्था 20 सप्ताह से अधिक लेकिन 24 सप्ताह से अधिक नहीं होती है।"

    कोर्ट ने यह भी नोट किया कि अधिनियम की धारा 3 (2) (बी) में प्रावधान है कि उक्त उप-धारा केवल उन महिलाओं पर लागू होती है, जो मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 के अंतर्गत आती हैं।



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