2007 समझौता एक्सप्रेस धमाका : NIA अदालत 14 मार्च को सुनाएगी फैसला, चार आरोपियों पर आएगा फैसला

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11 March 2019 1:17 PM GMT

  • 2007  समझौता एक्सप्रेस धमाका : NIA अदालत 14 मार्च को सुनाएगी फैसला, चार आरोपियों पर आएगा फैसला

    12 वर्ष पहले पानीपत के पास समझौता एक्सप्रेस ट्रेन में हुए धमाके के मामले में पंचकूला की स्पेशल NIA कोर्ट ने 4 आरोपियों स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजेंद्र चौधरी को लेकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। NIA जज जगदीप सिंह ने कहा कि वो 14 मार्च को अपना फैसला सुनाएंगे।

    मामले में 8 आरोपियों में से 1 की हत्या हो गई थी और 3 आरोपियों को भगौड़ा घोषित कर दिया गया था। 18 फरवरी 2007 को हुई इस घटना में 68 ट्रेन यात्री मारे गए थे और काफी संख्‍या में लोग घायल भी हो गए थे। मारे गए लोगों में अधिकतर पाकिस्‍तान के रहने वाले थे।

    26 जुलाई 2010 को मामला NIA को सौंपा गया था। 26 जून 2011 को आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी।NIA ने इस मामले में कुल 224 गवाहों को पेश किया जबकि बचाव पक्ष ने कोई भी गवाह नहीं पेश किया। उन्होंने केवल अपने दस्तावेज और कई जजमेंट की कॉपी ही कोर्ट में पेश की। इस मामले में कोर्ट की ओर से पाकिस्तानी गवाहों को पेश होने के लिए कई बार मौका दिया गया लेकिन वे एक बार भी कोर्ट में नहीं आए। मामले में अब तक सिर्फ आरोपी असीमानंद को ही ज़मानत मिली है, बाकि तीनों आरोपी अभी जेल में हैं।

    समझौता मामले की जांच में हरियाणा पुलिस और महाराष्ट्र के एटीएस को 'अभिनव भारत' के शामिल होने के संकेत मिले थे। इसके बाद स्वामी असीमानंद को मामले में आरोपी बनाया गया। NIA ने 26 जून 2011 को 5 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। पहली चार्जशीट में नाबा कुमार उर्फ स्वामी असीमानंद, सुनील जोशी, रामचंद्र कलसंगरा, संदीप डांगे और लोकेश शर्मा का नाम था। सुनील जोशी की पहले ही हत्या हो चुकी है जबकि 3 अन्य आरोपी, रामचंद्र कलसंगरा, संदीप डांगे और अमित फरार चल रहे हैं।

    जांच एजेंसी का कहना था कि ये सभी अक्षरधाम (गुजरात), रघुनाथ मंदिर (जम्मू), संकट मोचन (वाराणसी) मंदिरों में हुए आतंकवादी हमलों से दुखी थे और उक्त जगहों पर हुए बम विस्फोट का बदला बम से लेना चाहते थे।

    जुलाई 2018 में स्वामी असीमानंद समेत 5 लोगों को हैदराबाद स्थित मक्का मस्जिद में धमाका करने की साज़िश रचने के आरोप से बरी कर दिया गया था। इससे पूर्व मार्च 2017 में NIA की अदालत ने वर्ष 2007 के अजमेर विस्फोट में सबूतों के अभाव में असीमानंद को बरी कर दिया था।

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