1984 सिख विरोधी हिंसा : सुप्रीम कोर्ट ने त्रिलोकपुरी मामले में 33 दोषियों को जमानत दी
Live Law Hindi
23 July 2019 9:28 PM IST
दिल्ली के त्रिलोकपुरी में वर्ष 1984 की सिख विरोधी हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा सजायाफ्ता 33 लोगों को जमानत दे दी है। निचली अदालत और हाई कोर्ट ने उन्हें 5 साल की सजा सुनाई थी। एक दोषी की मौत हो चुकी है।
मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई करते हुए ये कदम उठाया। हालांकि इस दौरान दिल्ली पुलिस की ओर से पेश SG तुषार मेहता ने कहा कि पहले इस केस में 7 दोषियों को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया था। सरकार ने इस पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। ऐसे में पीठ को पहले पुनर्विचार याचिका पर फैसला देना चाहिए। इसके बाद पीठ ने इन्हें जमानत देते हुए कहा कि सभी की हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली अर्जी पर इसके बाद सुनवाई करेंगे।
इससे पहले मई में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के त्रिलोकपुरी में वर्ष 1984 के सिख विरोधी हिंसा के मामले में उन 7 लोगों को बरी कर दिया था, जिन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले साल नवंबर में दोषी ठहराया था।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने गणेश और 6 अन्य समेत 88 लोगों को भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 188 और 436 के तहत दोषी ठहराया था और 5 साल की सजा सुनाई थी। उच्च न्यायालय ने रिज्जू सिंह (PW-2), पतराम (PW-5), शूरवीर सिंह त्यागी (PW-7) और मनफूल सिंह (PW-8) के आरोपियों के खिलाफ दिए गए सबूतों पर पूरी तरह भरोसा किया था।
उनके बयान का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने यह कहा था कि उनमें से किसी ने भी यह नहीं बताया है कि ये आरोपी गैरकानूनी जमावड़े का हिस्सा थे या किसी भी अपराध में शामिल थे।
अदालत ने कहा कि, "हम अनजानेपन में यह भरोसा कर लेते हैं कि अभियुक्तों-अपीलकर्ताओं के खिलाफ अभियोजन पक्ष द्वारा जो कहा गया है वो सही है और अच्छा है कि उन्हें गिरफ्तार किया गया, लेकिन यह भी सही है कि अभियुक्त-अपीलार्थी उस कथित अपराध को साबित करने के लिए खुद उत्तरदायी नहीं होंगे। वर्तमान में वास्तव में कोई सबूत नहीं है और इसलिए हमारे पास उच्च न्यायालय के आदेश को बनाए रखने के लिए कोई अच्छा आधार नहीं है और इसे रद्द किया जा रहा है।"
अदालत ने यह कहा था कि सामान्य गवाह के रूप में निष्क्रिय गवाहों और मनोरंजन के लिए खड़े लोगों को सामान्य उद्देश्य के लिए गवाह नहीं बनाया जा सकता है। पीठ ने कहा कि यदि किसी मामले में 3 विश्वसनीय गवाह नहीं हैं तो अदालतें आमतौर पर कम से कम 2 गवाहों पर जोर देने का विचार करती हैं जो यह साबित करते हैं कि आरोपी जमावड़े के सदस्य थे जो दंगा, आगजनी, लूटपाट आदि में लिप्त थे। उनकी सजा को रद्द करते हुए पीठ ने अपील को अनुमति दी थी।