मुस्लिम लड़की की याचिका पर जवाब दाखिल न करने पर सुप्रीम कोर्ट ने UP के गृह सचिव को तलब किया
LiveLaw News Network
19 Sept 2019 12:28 PM IST
नारी निकेतन में "कैद" एक मुस्लिम लड़की की याचिका पर नोटिस के बावजूद जवाब दाखिल ना करने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए उत्तर प्रदेश के गृहसचिव को कोर्ट में तलब किया है।
23 सितंबर को गृह-सचिव को अदालत में पेश होने के निर्देश
जस्टिस एन. वी. रमना की पीठ ने गुरुवार को सुनवाई में हलफनामा दाखिल ना करने पर राज्य सरकार को फटकार लगाई और कहा कि एक लड़की नारी निकेतन में बंद है और राज्य सरकार जवाब दाखिल करने की जहमत भी नहीं उठा रही है। इसके बाद पीठ ने 23 सितंबर को गृह सचिव को पेश होने के निर्देश दिए।
नाबालिग लड़की की सुप्रीम कोर्ट में याचिका
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने एक "नाबालिग" मुस्लिम लड़की की याचिका का परीक्षण करने के लिए सहमति व्यक्त की है, जिसे उत्तर प्रदेश में महिलाओं के आश्रय गृह में रहने का आदेश दिया गया क्योंकि उसकी शादी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा शून्य ठहराया गया था।
निचली अदालत ने दिया था बच्ची को आश्रय गृह भेजे जाने का आदेश
शीर्ष अदालत, बच्ची (जो मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार 16 साल की है) द्वारा दायर उस अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमे उसके द्वारा बीते जुलाई के हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमे ट्रायल कोर्ट के उसे अयोध्या में स्थित आश्रय गृह में भेजने के आदेश को बरकरार रखा गया था।
उच्च न्यायालय ने आश्रय गृह भेजे जाने के आदेश को ठहराया था उचित
दरअसल उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ उसकी याचिका को खारिज कर दिया था, और यह कहा कि चूंकि वह "नाबालिग" थी, इसलिए उसके मामले को किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के अनुसार निपटाया जाएगा और चूंकि वह अपने माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहती इसलिए उसे आश्रय गृह भेजने का आदेश सही था।
शीर्ष अदालत में अपनी दलील में लड़की ने कहा है कि मुस्लिम कानून के अनुसार, एक बार जब लड़की यौवन की आयु प्राप्त कर लेती है, अर्थात 15 साल की हो जाती है तो वह अपने जीवन के फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है और वह अपनी पसंद से किसी से भी शादी करने के लिए सक्षम है।
उत्तर प्रदेश सरकार को 2 दिन में देना था अपना जवाब
जस्टिस एन. वी. रमना, जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने उसकी याचिका की जांच करने पर सहमति जताई थी और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर 2 सप्ताह में उनकी ओर से जवाब मांगा था।
लड़की की दलील
लड़की ने अपने वकील दुष्यंत पाराशर के माध्यम से यह कहा है कि उच्च न्यायालय इस तथ्य की सराहना करने में विफल रहा है कि उसका 'निकाह' मुस्लिम कानून के अनुसार हुआ है। उसने यह दलील दी है कि वो उस शख्स से प्यार करती है और उन्होंने इस साल जून में मुस्लिम धर्म के अनुसार 'निकाह' किया है। इसलिए उसके जीने और स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए।
पिता ने दर्ज कराई थी पुलिस में शिकायत
दरअसल उसके पिता ने पुलिस में एक शिकायत दर्ज कराई थी जिसमें यह आरोप लगाया गया कि उसकी बेटी को उस व्यक्ति और उसके साथियों ने अगवा कर लिया है। इसके बाद लड़की ने एक मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज किया जिसमें उसने यह कहा कि उसने अपनी मर्जी से उस व्यक्ति से शादी की थी और वो उसके साथ ही रहना चाहती है। ट्रायल कोर्ट ने यह निर्देश दिया था कि उसे 18 साल की उम्र होने तक उसकी सुरक्षा और सरंक्षण के लिए बाल कल्याण समिति में भेजा जाए।
शीर्ष अदालत के पहले के एक फैसले का हवाला देते हुए दलील में यह कहा गया है कि लड़की को अपने पति के साथ वैवाहिक जीवन जीने की अनुमति दी जानी चाहिए।
"अपनी मर्जी से किया निकाह"
याचिका में कहा गया है कि "उच्च न्यायालय को CrPC की धारा 164 के तहत दिए गए लड़की के उन बयानों की सराहना करनी चाहिए, जिसमें लड़की ने अपने पति के साथ रहने की इच्छा जाहिर की है और आगे यह स्पष्ट रूप से कहा है कि उसने अपनी मर्जी से निकाह किया है और उसके पति के परिवार के किसी सदस्य ने उसे लुभाया नहीं है।"
इसमें यह भी कहा गया है कि शीर्ष अदालत के समक्ष अपील की लंबितता के दौरान लड़की को आश्रय गृह से मुक्त किया जाना चाहिए।