कर्मचारियों की पेंशन उनके वेतन के अनुपात में होनी चाहिए : SC ने HC के कर्मचारी पेंशन (संशोधन) योजना, 2014 को रद्द करने के फैसले पर मुहर लगाई

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2 April 2019 11:59 AM GMT

  • कर्मचारियों की पेंशन उनके वेतन के अनुपात में होनी चाहिए : SC ने HC के कर्मचारी पेंशन (संशोधन) योजना, 2014 को रद्द करने के फैसले पर मुहर लगाई

    कर्मचारियों को एक बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केरल उच्च न्यायालय द्वारा कर्मचारी पेंशन (संशोधन) योजना, 2014 को रद्द करने के खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है। इस संशोधन में अधिकतम पेंशन योग्य वेतन प्रतिमाह 15,000 रुपये प्रति माह तय की गई थी।

    चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कर्मचारी भविष्य निधि संगठन द्वारा दायर याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इसमें कोई योग्यता नहीं है।

    दरअसल केरल उच्च न्यायालय ने पिछले साल अक्टूबर में कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 के प्रावधानों को लेकर विभिन्न प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों द्वारा दायर रिट याचिकाओं को अनुमति दे दी थी।

    उनकी शिकायत पेंशन (संशोधन) योजना, 2014 में किए गए परिवर्तनों को लेकर थी जो उनको देय पेंशन को काफी कम कर देती है।

    कर्मचारी पेंशन (संशोधन) योजना, 2014 संशोधन में पेंशन योजना में इन बदलावों को लाया गया। इसके तहत पेंशन योग्य वेतन को 15,000 रुपये प्रति माह तक सीमित किया गया।

    हालांकि, संशोधन से पहले अधिकतम पेंशन योग्य वेतन केवल 6,500 रुपये प्रति माह था, लेकिन इसमें एक कर्मचारी को उसके द्वारा प्रदान किये गए वास्तविक वेतन के आधार पर उस पेंशन का भुगतान करने की अनुमति दी गई थी जो उसके द्वारा योगदान दिया गया था। इसके लिए उन्हें व उनके नियोक्ता द्वारा संयुक्त रूप से इस तरह के उद्देश्य के लिए किया गया एक संयुक्त अनुरोध करना होगा।

    उक्त प्रावधान को संशोधन द्वारा हटा दिया गया जिससे अधिकतम पेंशन योग्य वेतन 15,000 रुपये हो गया। बाद की एक अधिसूचना द्वारा इस योजना में और कर्मचारी पेंशन (पांचवां संशोधन) योजना, 2016 में संशोधन किया गया। इसमें यह प्रदान किया गया कि मौजूदा सदस्यों के लिए पेंशन योग्य वेतन जो एक नया विकल्प पसंद करते हैं उच्च वेतन पर आधारित होगा।

    यह संशोधन मौजूदा सदस्यों के लिए 1.9.2014 के विकल्प के रूप में प्रति माह 15,000 रुपये से अधिक वेतन पर योगदान जारी रखने के लिए अपने नियोक्ता के साथ संयुक्त रूप से एक नया विकल्प प्रस्तुत करने का विकल्प देता है।

    इस तरह के विकल्प पर कर्मचारी को 15,000 रुपये प्रतिमाह से अधिक के वेतन पर 1.16% की दर से आगे योगदान करना होगा। इस तरह के एक ताजा विकल्प को 1.9.2014 से 6 महीने की अवधि के भीतर प्रयोग करना होगा। क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त द्वारा 6 महीने की एक और अवधि में नए विकल्प का प्रयोग करने की छूट की अनुमति देने की शक्ति प्रदान की गई।

    यदि ऐसा कोई विकल्प नहीं बनाया जाता है तो पहले से ही वेतन की सीमा से अधिक में किए गए योगदान को ब्याज के साथ भविष्य निधि खाते में भेज दिया जाएगा। यह प्रदान करता है कि मासिक पेंशन की सेवा के लिए प्रो-राटा के आधार पर 1 सितंबर, 2014 तक अधिकतम पेंशन योग्य वेतन 6,500 रुपये और उसके बाद की अवधि के लिए अधिकतम पेंशन योग्य वेतन 15,000 रुपये प्रति माह निर्धारित किया जाएगा।

    यह उन लाभों को वापस लेने का प्रावधान भी करता है जहां किसी सदस्य ने आवश्यकतानुसार योग्य सेवा प्रदान नहीं की है। इन संशोधनों का बचाव करते हुए ईपीएफओ ने उच्च न्यायालय के समक्ष तर्क दिया था कि कर्मचारियों द्वारा उनके वास्तविक वेतन पर दिए गए योगदान के आधार पर गणना की गई पेंशन का भुगतान पेंशन निधि को समाप्त कर देगा और इस योजना को असाध्य बना देगा।

    लेकिन उच्च न्यायालय ने इस दलील को खारिज कर दिया और यह भी पाया कि प्रावधान ने अधिकतम पेंशनभोगी वेतन को 15,000/ - रुपये पर रोक दिया है जिससे वो व्यक्ति असंतुष्ट हो गए हैं जिन्होंने अपने वास्तविक वेतन के आधार पर किसी भी लाभ के लिए योगदान दिया है और जो उनके द्वारा किए गए अतिरिक्त योगदान के आधार पर है।

    न्यायमूर्ति सुरेंद्र मोहन और न्यायमूर्ति ए. एम. बाबू की पीठ ने कहा था: "कर्मचारी, जो पेंशन योजना द्वारा आवश्यक के रूप में अपने नियोक्ताओं के साथ एक संयुक्त विकल्प प्रस्तुत करने के बाद अपने वास्तविक वेतन के आधार पर योगदान दे रहे हैं वो बिना किसी औचित्य के उनके द्वारा किए गए योगदानों के अलावा अन्य लाभों से वंचित हैं। इसके अलावा वेतन को 15,000 रुपये प्रति माह तक पेंशन को निर्धारित करना बिल्कुल अवास्तविक है।15,000 रुपये का मासिक वेतन केवल लगभग 500 रुपये प्रतिदिन तक काम करता है। यह सामान्य ज्ञान है कि यहां तक ​​कि एक दिहाड़ी मजदूर को भी दैनिक मजदूरी के रूप में उक्त राशि से अधिक का भुगतान किया जाता है। इसलिए पेंशन के लिए अधिकतम वेतन 15,000 रुपये तक सीमित करना अधिकांश कर्मचारियों को उनकी वृद्धावस्था में एक सभ्य पेंशन से वंचित करेगा।"

    पीठ ने आगे कहा, "यदि बिलकुल ही ऐसी स्थिति जहाँ कोष आधार समाप्त हो जाता है, उस समय निधि की स्थिरता बनाए रखने का प्रयास स्थिति को विधायी अभ्यास के माध्यम से निधि में योगदान करने वाले व्यक्तियों के योगदान की दरों को बढ़ाकर किया जा सकता है । पीठ ने कहा कि पेंशन को कम करना इस योजना के उद्देश्य को पराजित करेगा।"


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