सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना मामले में वकील नेदूम्परा को तीन महीने की सजा सुनाई, अंडरटेकिंग पर सजा निलंबित, एक साल के लिए SC में प्रैक्टिस पर रोक

Live Law Hindi

27 March 2019 9:48 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना मामले में वकील नेदूम्परा को तीन महीने की सजा सुनाई, अंडरटेकिंग पर सजा निलंबित, एक साल के लिए SC में प्रैक्टिस पर रोक

    जस्टिस आर. एफ़. नरीमन और जस्टिस विनीत सरन की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने बुधवार को वकील मैथ्यूज नेदुम्परा को 3 महीने के कारावास की सजा सुनाई जो तब तक निलंबित रहेगी जब तक कि वह अपने द्वारा किये गए वादे का पालन करते रहेंगे कि वे हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी भी जज पर टिप्पणी करने का प्रयास नहीं करेंगे।

    उन्हें 1 साल की अवधि के लिए सुप्रीम कोर्ट में पेश होने से भी रोक दिया गया है।

    पीठ ने मैथ्यू नेदुम्परा के साथ बॉम्बे बार एसोसिएशन द्वारा लिखे गए पत्र के आधार पर अदालत के सामने एक नई अवमानना का नोटिस भी लिया है, जिसमें कथित रूप से जस्टिस नरीमन को निशाना बनाने वाली सामग्री थी। पीठ ने चीफ जस्टिस से इस मुद्दे से निपटने के लिए नई पीठ गठित करने का अनुरोध किया है।

    बुधवार को नेदुम्परा के वकील ने पीठ को बदलने की मांग की और कहा कि आरोप तय किए बिना सजा की सुनवाई नहीं की जा सकती लेकिन पीठ इन दलीलों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हुई।

    नेदुम्परा ने की बिना शर्त माफी की पेशकश
    पीठ ने कहा कि इसने उसे पहले ही अवमानना के लिए दोषी ठहराया है और दूसरी पीठ उसे सजा नहीं सुना सकती। हालांकि नेदुम्परा ने अंतिम उपाय के रूप में बिना शर्त माफी की पेशकश की लेकिन वे पीठ को राजी नहीं कर सके। अदालत ने कहा, "हमारा विचार है कि वरिष्ठ वकील का नाम लेने का एकमात्र कारण अदालत को धोखा देना और हम में से एक को शर्मिंदा करना है जबकी वर्तमान मामले में उनके नाम की कोई प्रासंगिकता नहीं है।"

    "यह पहली बार नहीं है कि इस विशेष वकील ने इस अदालत के न्यायाधीशों का अपमान करने का प्रयास किया है," पीठ ने वकील मैथ्यूज नेदुम्परा को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराते हुए यह टिप्पणी की।

    नेदुम्परा ने साधा था वरिष्ठ वकील फली एस. नरीमन पर निशाना
    सुप्रीम कोर्ट ने 12 मार्च को वकील मैथ्यूज नेदुम्परा को वरिष्ठ वकील के तौर पर नामित करने की प्रणाली को खत्म करने के मामले में बहस करते हुए वरिष्ठ वकील फली एस. नरीमन का नाम लेने पर अदालत की अवमानना करने का दोषी ठहराया था और उन्हें सजा के सवाल पर जवाब देने के लिए 2 सप्ताह का समय दिया गया था।

    पीठ ने याचिकाकर्ता संगठन नेशनल कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल ट्रांसपेरंसी एंड रिफॉर्म्स की इस प्रथा को समाप्त करने याचिका को भी खारिज कर दिया था।

    न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई के दौरान नेदुम्परा के इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई थी जिसमें वरिष्ठ वकील फली एस. नरीमन का हवाला देते हुए आरोप लगाया गया था कि सिर्फ जजों के बेटे और बेटियों को वरिष्ठ वकील के तौर पर नामित किया गया।

    NLC के अनुसार वरिष्ठ और गैर-वरिष्ठ के रूप में वकीलों का वर्गीकरण भेदभावपूर्ण है। याचिकाकर्ता ने कहा कि कुलीन वर्ग के वकीलों, सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के पूर्व न्यायाधीशों के परिजनों, भतीजों और जूनियर को वरिष्ठ वकील बनाने के अलावा प्रतिष्ठित वकीलों, मुख्यमंत्री, राज्यपाल के परिचितों
    और राजनीतिक रूप से जुड़े या बड़े औद्योगिक घरानों के करीब रहने वाले पहली पीढ़ी के वकीलों को ही वरिष्ठ वकील के तौर पर नामित किये जाने का चलन रहा है।

    याचिका में आगे यह भी मांग की गई थी कि जब तक उक्त प्रणाली को समाप्त नहीं किया जाता तब तक जो वकील 62 वर्ष की आयु पार कर चुके हैं या जो 35 वर्ष से प्रैक्टिस कर रहे हैं, उन्हें वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किया जाना चाहिए। जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के मामले में किया था।

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