प्राकृतिक वातावरण को राजनीतिक बैनरों , नेताओं की तस्वीरों के साथ खराब करने की इजाजत नहीं दे सकते : SC ने तमिलनाडु सरकार से कहा

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8 March 2019 5:29 PM GMT

  • प्राकृतिक वातावरण को राजनीतिक बैनरों , नेताओं की तस्वीरों के साथ खराब करने की इजाजत नहीं दे सकते : SC ने तमिलनाडु सरकार से कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा है कि पहाडों और चट्टानों के प्राकृतिक वातावरण को राजनीतिक पार्टियों द्वारा बहुरंगी बैनर और नेताओं की तस्वीरों के जरिए खराब करने जैसी घटनाओं पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए।

    चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वकील योगेश कन्ना को कहा, "आप (तमिलनाडु सरकार) पूरे माहौल को राजनीतिक बैनरों, नेताओं की तस्वीरों के साथ खराब करने की इजाजत नहीं दे सकते। अब इसे रोकना होगा।"

    पीठ जिसमें जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर और जस्टिस संजीव खन्ना भी शामिल हैं, ने राज्य सरकार को यह निर्देश दिया कि वह राजनीतिक दल के झंडों, विज्ञापनों, होर्डिंग से प्राकृतिक परिदृश्य के नुकसान को रोकने के लिए क्या कार्रवाई कर रही है, इसकी रिपोर्ट 2 सप्ताह के भीतर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करे।

    यह आदेश पर्यावरण और पशुओं के बचाव में एक ग्रुप द्वारा दाखिल याचिका के आधार पर आया है। वकील ऐलीफेंट जी. राजेंद्रन द्वारा इसका प्रतिनिधित्व किया गया। इसमें उन चुनावी उम्मीदवारों को अयोग्य ठहराने के लिए न्यायिक आदेश की मांग की है जो पहाडों आदि से अपने राजनीतिक विज्ञापन, झंडे, बैनर आदि को तत्काल प्रभाव से नहीं हटाते।

    याचिका में तमिलनाडु राज्य के साथ-साथ भारत संघ, मुख्य चुनाव आयुक्त, AIADMK और DMK के महासचिव, बसपा, भाजपा, CPI, CPI (M), DMDK, INC, NCP जैसे राजनीतिक दलों को भी शामिल किया गया है।

    ये याचिका मद्रास उच्च न्यायालय के 3 मार्च, 2017 के फैसले को चुनौती देते हुए दायर की गई है जो हालांकि याचिकाकर्ता के इस कारण से सहमत था कि "कर्मचारियों और मशीनरी" की शिथिलता के कारण इसका समाधान रातोंरात नहीं हो सकता। याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने कहा है कि राज्य के लिए इस संबंध में तुरंत कदम उठाना संभव नहीं होगा। इसकी सफाई में कुछ उचित समय लगेगा।

    याचिका में कहा गया है कि गोदावरमन थिरुमुलपाद मामले में वर्ष 2002 के शीर्ष अदालत के उस विशेष निर्देश के बावजूद बैनर और तस्वीरें लगाई गई जिसमें कहा गया था कि प्राकृतिक संसाधनों को विज्ञापनों, बैनर और तस्वीरों से बचाया जाना चाहिए।

    राजेंद्रन ने कहा कि ये किसी विशेष स्थान पर नहीं बल्कि पुलों, सड़कों, राजमार्गों, पहाड़ियों, चट्टानों आदि के मध्य देखा जा सकता है।

    "90 प्रतिशत ऐसे विज्ञापन राजनीतिक दलों द्वारा लगाए जाते हैं। प्राधिकरण ने कोई कार्रवाई नहीं की है और इसे रोकने के लिए आगे नहीं आया है, "याचिका में कहा गया है। वकील ने उल्लेख किया कि किस तरह उन्होंने एक बार मदुरै से चेन्नई तक त्रिची और चेंगलपेट की यात्रा की और विज्ञापनों, भित्तिचित्रों, धार्मिक बैनरों इत्यादि के साथ प्राकृतिक परिदृश्य को खराब होते देखा।

    उन्होंने कहा कि अधिकारियों को उनके द्वारा बताई गई जगहों की यात्रा करनी चाहिए और स्वयं देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि न तो राजनीतिक दलों ने उच्च न्यायालय में कोई उपस्थिति दर्ज कराई और न ही उन्होंने हलफनामा दायर करने की जहमत उठाई। उच्च न्यायालय कम से कम संबंधित जिला कलेक्टरों को निर्देश जारी कर सकता था कि वे प्राकृतिक परिदृश्य के विघटन को तत्काल प्रभाव से रोकें।

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