असम में NRC : सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा, जिनके नाम NRC में ना हों और मतदाता सूची में रहें तो क्या होगी

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13 March 2019 9:43 AM GMT

  • असम में NRC : सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा, जिनके नाम NRC में ना हों और मतदाता सूची में रहें तो क्या होगी

    सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने भारतीय चुनाव आयोग से इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है जहां किसी व्यक्ति का असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (NRC) के 31 जुलाई को आने वाले अंतिम मसौदे में नाम ना हो लेकिन मतदाता सूची में नाम हो तो ऐसे में क्या कार्रवाई हो सकती है।

    पीठ ने अदालत में पेश चुनाव आयोग के सचिव मलय मलिक को ये भी बताने को कहा है कि 1 जनवरी 2017 से 1 जनवरी 2019 के बीच राज्य में कितने नए लोगों को मतदाता सूची में जोड़ा गया और कितने लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाए गए। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को 28 मार्च के लिए सूचीबद्ध किया है।

    दरअसल असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (NRC) से जुड़ा एक और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। NRC में नाम ना होने की वजह से मतदाता सूची से नाम हटने को लेकर 2 लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में उचित आदेश हेतु गुहार लगाई है।

    2 फरवरी को इस मामले में पीठ ने इस याचिका पर केंद्र, असम सरकार, चुनाव आयोग और NRC कोऑर्डिनेटर को नोटिस जारी कर उनकी ओर से जवाब मांगा था।

    ये याचिका पश्चिम बंगाल निवासी गोपाल सेठ और असम निवासी सुशांत सेन ने दाखिल की है। सेन इस मामले में प्रभावित हैं और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा है कि पहले वोटर लिस्ट में उनका नाम था। 30 जुलाई 2018 के NRC ड्राफ्ट में उनका नाम नहीं आया इसलिए मतदाता सूची से भी उनका नाम हटा दिया गया। उन्होंने कहा है कि वो NRC में नाम हटाने पर अपना दावा-आपत्ति दर्ज करा चुके हैं। इस तरह हजारों लोग मतदान के अधिकार से वंचित हो गए हैं।

    याचिका में कहा गया है कि वो और उनकी पत्नी वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में मतदाता सूची में रह चुके हैं जबकि सेठ ने इस संबंध में जनहित में याचिका दाखिल की है।

    याचिका में कहा गया है कि उनका मतदाता अधिकार छीन लिया गया है जो उनके संवैधानिक अधिकार के खिलाफ है। नागरिक को मतदान का अधिकार एक वैधानिक अधिकार है और ये भारत के संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत भी एक अधिकार के रूप में सरंक्षित है।

    मतदाता की भागीदारी लोकतंत्र की ताकत बताती है और गैर भागीदारी निराशा और उदासीनता का कारण बनती है जो भारत के बढ़ते लोकतंत्र के लिए स्वस्थ संकेत नहीं हैं।

    याचिका में ये भी कहा गया है कि मतदान का अधिकार संविधान से उत्पन्न होता है और ये संविधान के अनुच्छेद 326 में निहित संवैधानिक जनादेश के तहत है।

    याचिका में वर्ष 2003 के पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम भारत संघ मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का भी हवाला दिया है जिसमें यह माना गया कि वोट देने का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है।

    दरअसल 24 जनवरी को ही सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी किया कि असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (NRC) के अंतिम ड्राफ्ट को 31 जुलाई तक प्रकाशित किया जाना चाहिए।

    मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन की पीठ ने कहा कि आगामी लोकसभा चुनाव और NRC प्रक्रिया को कर्मचारियों की कमी के कारण एक दूसरे को प्रभावित किए बिना एक साथ चलना चाहिए। पीठ ने यह निर्देश दिया है कि असम के मुख्य सचिव, NRC कोऑर्डिनेटर और चुनाव आयोग के सचिव एक साथ बैठेंगे और कर्मचारियों के मुद्दे को सुलझाएंगे।

    सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा था कि चुनाव और NRC दोनों महत्वपूर्ण हैं और वो एक दूसरे के लिए बाधा नहीं बन सकते। पीठ ने असम सरकार से कर्मचारियों के मुद्दे पर EC के साथ बैठक के बाद 1 सप्ताह के भीतर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा था।

    वहीं मामले में समन्वयक नियुक्त किये गए प्रतीक हजेला ने पीठ को बताया था कि अंतिम सूची के प्रकाशन को अगस्त या सितंबर तक बढ़ाया जा सकता है क्योंकि NRC के कर्मचारियों को लोकसभा चुनाव के लिए कार्य में लिया जा सकता है। कुल 36.2 लाख लोगों ने NRC में शामिल होने के दावे प्रस्तुत किए हैं। यह उन 40 लाख लोगों में से है जिन्हें NRC के मसौदे में छोड़ दिया गया था।

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