जस्टिस कुरैशी की MP हाई कोर्ट CJ के तौर पर नियुक्ति ना करने पर केंद्र के खिलाफ गुजरात HC एडवोकेट्स एसोसिएशन की SC में याचिका

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5 July 2019 6:26 AM GMT

  • जस्टिस  कुरैशी की MP हाई कोर्ट CJ के तौर पर नियुक्ति ना करने पर केंद्र के खिलाफ गुजरात HC एडवोकेट्स एसोसिएशन की SC में याचिका

    गुजरात हाई कोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन ने न्यायमूर्ति अकिल कुरैशी की मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति करने में देरी का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की है। जस्टिस कुरैशी के नाम की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 10 मई को की थी।

    ये सिफारिश भी कॉलेजियम द्वारा उसी दिन की गई जिसके द्वारा न्यायमूर्ति डी. एन. पटेल की दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति को केंद्र द्वारा अधिसूचित किया गया है।

    केंद्र ने लंबित रखी है जस्टिस कुरैशी की नियुक्ति की फाइल
    याचिका में यह कहा गया है कि न्यायमूर्ति पटेल के प्रस्ताव पर केंद्र ने 2 सप्ताह के भीतर कार्रवाई की और उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय के CJ के रूप में कार्यभार संभाल लिया जबकि न्यायमूर्ति कुरैशी की फाइल को लंबित रखा गया है। इस बीच केंद्र ने 7 जून को न्यायमूर्ति रवि शंकर झा को MP हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कर दिया।

    याचिका में कहा गया है,

    "वर्तमान रिट याचिका दायर करने की तिथि तक, मंत्रिपरिषद ने राष्ट्रपति को 10.05.2019 को कॉलेजियम की सिफारिशों के संदर्भ में सलाह दी है, जिसमें मध्य प्रदेश राज्य के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए न्यायमूर्ति अकिल कुरैशी की सिफारिश को छोड़ दिया गया है। सरकार ने दिनांक 10.05.2019 को उच्च न्यायालय के लिए कॉलेजियम की सिफारिश के संदर्भ में अधिसूचना जारी करने के बजाए 07.06.2019 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवि शंकर झा को मध्य प्रदेश का कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर दिया।"

    केंद्र सरकार को जस्टिस कुरैशी की नियुक्ति के आदेश देने की मांग

    याचिका में केंद्र सरकार को जस्टिस कुरैशी की नियुक्ति के निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। न्यायमूर्ति कुरैशी की फाइल की उपेक्षा को इस याचिका में उजागर करते हुए कहा गया है कि केंद्र द्वारा 10 मई के बाद न्यायिक नियुक्तियों की 18 फाइलों को मंजूरी दी गई है।

    जस्टिस कुरैशी के स्थानांतरण का हो चुका है विरोध

    बार के विरोध के बीच गुजरात उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुरैशी को पिछले साल अक्टूबर में बॉम्बे उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया था। गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन ने एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें न्यायमूर्ति कुरैशी के स्थानांतरण का विरोध किया गया था। इसके बाद जीएचसीएए के अध्यक्ष वरिष्ठ वकील यतिन ओझा ने न्यायमूर्ति कुरैशी के स्थानांतरण पर अनिश्चितकालीन हड़ताल का सहारा लेने के बार के फैसले की घोषणा की थी।

    कानून मंत्री ने प्रतिनिधि मंडल से मिलने से किया था इनकार
    हालांकि सीजेआई रंजन गोगोई द्वारा एसोसिएशन के प्रतिनिधियों से मुलाकात करने के बाद इसे वापस ले लिया गया था। एसोसिएशन ने न्यायमूर्ति कुरैशी की नियुक्ति की तत्काल अधिसूचना के लिए केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के समक्ष एक प्रतिनिधित्व प्रस्तुत करने की योजना बनाई थी लेकिन कानून मंत्री ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया।

    न्यायमूर्ति कुरैशी द्वारा सुनाए गए हैं विवादास्पद निर्णय

    बार के कई सदस्यों ने इस विश्वास को साझा किया कि न्यायमूर्ति कुरैशी को शासन के खिलाफ दिए गए प्रतिकूल आदेश के कारण दरकिनार किया जा रहा है। वर्ष 2010 में न्यायमूर्ति कुरैशी ने मजिस्ट्रेट द्वारा पारित उस आदेश को रद्द करते हुए सोहराबुद्दीन मामले में अमित शाह की सीबीआई को पुलिस रिमांड दी थी जिसमें रिमांड के लिए सीबीआई की याचिका खारिज कर दी गई थी। उन्होंने सीबीआई हिरासत के दौरान शाह की पूछताछ की वीडियोग्राफी करने की याचिका को भी खारिज कर दिया था।

    गुजरात लोकायुक्त की नियुक्ति का मामला

    गुजरात लोकायुक्त के रूप में न्यायमूर्ति आर. ए. मेहता की नियुक्ति के मामले में उनके वर्ष 2012 के आदेश ने गुजरात सरकार को भारी शर्मिंदगी दी थी। सरकार ने राज्यपाल कमला बेनीवाल द्वारा की गई लोकायुक्त नियुक्ति का इस आधार पर विरोध किया कि इसे सरकार की सहमति के बिना किया गया था।

    न्यायमूर्ति कुरैशी ने कहा कि राज्यपाल लोकायुक्त अधिनियम के तहत एक स्वतंत्र वैधानिक प्राधिकरण के रूप में कार्य कर रहे थे और इसलिए सरकार की सहमति की आवश्यकता नहीं है। पीठ में उनकी सहयोगी न्यायमूर्ति सोनिया गोकानी ने इस फैसले से असहमति जताई थी।

    इस विभाजन के फैसले के कारण इस मामले को तीसरे न्यायाधीश- न्यायमूर्ति वी. एम. सहाय को भेजा गया जिन्होंने न्यायमूर्ति कुरैशी द्वारा व्यक्त किए गए दृष्टिकोण के साथ सहमति व्यक्त की थी। मामले को प्रतिष्ठा के मुद्दे के रूप में लेते हुए गुजरात सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपील की लेकिन कोई सफलता नहीं मिली क्योंकि शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के बहुमत के फैसले को बरकरार रखा था।

    सुनवाई से अलग होने की मांग का मामला
    वर्ष 2016 में नरोदा पाटिया नरसंहार मामले में माया कोडनानी (जो गुजरात में मोदी सरकार में मंत्री थी) और कुछ अन्य लोगों की सजा के खिलाफ अपील पर सुनवाई के दौरान भी वो नाराज हुए जब न्यायमूर्ति कुरैशी से संबंधित एक वरिष्ठ वकील ने अंतिम क्षणों में एक पक्ष के लिए उपस्थिति दर्ज की और उनको सुनवाई से अलग करने की मांग की।

    न्यायमूर्ति कुरैशी ने कहा था, "जब एक वरिष्ठ वकील द्वारा मंच पर देर से उपस्थिति दर्ज कराई जाती है तो हमें आश्चर्य होता है कि यह बेहतर नहीं होता यदि वकील अदालत से ऐसा करने का अनुरोध करने के बजाय खुद को सुनवाई से अलग करते।"

    उन्होंने इस प्रकरण पर अपनी नाराज़गी जताते हुए कहा, "यह बहुत दर्दनाक है। हम कुछ नहीं कहेंगे, लेकिन इससे लोगों का संस्थान पर भरोसा कम होता है और छवि धूमिल होती है ... ऐसा नहीं होना चाहिए था।"

    गोधरा के बाद हुए दंगों के 19 अभियुक्तों की सजा का मामला
    अभी हाल ही में मई 2018 में उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने ओड में गोधरा के बाद के दंगों के 19 अभियुक्तों की सजा को बरकरार रखा, जहां मार्च 2002 में एक भीड़ द्वारा महिलाओं और बच्चों सहित 23 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। इन घटनाओं का वर्णन करते हुए न्यायमूर्ति कुरैशी ने अपने फैसले में यह कहा कि सांप्रदायिक उन्माद से पूरी तरह से सामान्य मनुष्य भी घातक राक्षसों में बदल जाता है जो पीड़ितों और उनके अपने परिवार के लिए मौत और विनाश के अलावा कुछ भी नहीं है।

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