सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया, किसी याचिका को J&K से अन्य राज्य में स्थानांतरित करने या इसके विपरीत करने में अधिकार हीन नहीं [आर्डर पढ़े]

Live Law Hindi

30 July 2019 5:52 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया, किसी याचिका को J&K से अन्य राज्य में स्थानांतरित करने या इसके विपरीत करने में अधिकार हीन नहीं [आर्डर पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने यह दोहराया है कि वो भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 और/या अनुच्छेद 136 और 142 के तहत किसी याचिका को जम्मू और कश्मीर राज्य से किसी अन्य राज्य में स्थानांतरित कर सकता है और इसके विपरीत भी कर सकता है।

    क्या था यह मौजूदा मामला?

    दरअसल न्यायमूर्ति एन. वी. रमना और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 258 के तहत दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी जिसमें श्रीनगर की एक जिला अदालत में लंबित तलाक की याचिका को पंजाब के अमृतसर की सक्षम न्यायालय में स्थानांतरित करने की मांग की गई थी।

    पीठ ने अपने आदेश में अनीता कुशवाहा बनाम पुष्प सूदन के मामले में संविधान पीठ के फैसले का उल्लेख किया जिसने जम्मू और कश्मीर राज्य से याचिकाओं को ट्रांसफर और अन्य राज्यों से जम्मू और कश्मीर राज्य में याचिकाओं के ट्रांसफर के मुद्दे को सुलझाया था।

    स्थानांतरण के अनुरोध को मानते हुए पीठ ने कहा :

    इस प्रकार, न्याय के हित में और मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, हम इस हस्तांतरण याचिका को भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका के रूप में मानते हैं। हालांकि यह स्पष्ट किया जाता है कि इसे आगे के मामलों के लिए मिसाल नहीं माना जाएगा।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष स्थानांतरण याचिकाएं

    सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 25 किसी भी स्तर पर सुप्रीम कोर्ट को इस बात को लेकर सक्षम बनाती है, कि यदि वह संतुष्ट हो जाए कि इस धारा के तहत एक आदेश न्याय के सिरे को पूरा करने के लिए जरूरी है तो वो कोई भी मुकदमा, अपील या अन्य कार्यवाही उच्च न्यायालय या सिविल कोर्ट से किसी अन्य राज्य में स्थानांतरित कर सकता है अथवा किसी अन्य राज्य से जम्मू और कश्मीर राज्य में मामले को ट्रांसफर कर सकता है।

    इसी तरह आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 406 भी आपराधिक मामलों को एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरित करने का अधिकार देती है। हालांकि सिविल प्रक्रिया संहिता और आपराधिक प्रक्रिया संहिता जम्मू और कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होती हैं।

    अनीता कुशवाहा मामले में फैसला

    अनीता कुशवाहा मामले में यह तर्क दिया गया था कि जम्मू और कश्मीर सिविल संहिता, 1977 और जम्मू-कश्मीर दंड प्रक्रिया संहिता 1989 के बाद से सुप्रीम कोर्ट को किसी भी मामले को राज्य से किसी अदालत में स्थानांतरित करने का अधिकार देने वाला कोई प्रावधान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के पास राज्य से मामलों को स्थानांतरित करने की कोई शक्ति नहीं है।

    उक्त विवाद को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने यह माना कि संविधान के अनुच्छेद 32, 136 और 142 को लागू करके सुप्रीम कोर्ट को जम्मू-कश्मीर राज्य के एक कोर्ट से बाहर के कोर्ट में केस ट्रांसफर करने या विपरीत करने का अधिकार है।

    5 जजों की पीठ में शामिल भारत के मुख्य न्यायाधीश टी. एस. ठाकुर, जस्टिस फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला, जस्टिस ए. के. सीकरी, जस्टिस एस. ए. बोबडे और जस्टिस आर. बानुमति ने कहा :

    "जम्मू-कश्मीर राज्य के एक न्यायालय से राज्य के बाहर के न्यायालय में या इसके विपरीत मामलों के सीधे हस्तांतरण के लिए अनुच्छेद 142 के तहत शक्ति के उपयोग के खिलाफ कोई निषेध नहीं है। यह कहा जा सकता है कि जिन कारणों के बारे में हमने पहले संकेत किया है, उनके कारण कोई सक्षम प्रावधान नहीं है।"

    अदालत ने जारी रखते हुए आगे कहा, "हालांकि, एक सक्षम प्रावधान की अनुपस्थिति को जम्मू और कश्मीर राज्य से या उसके पास मामलों के हस्तांतरण के खिलाफ निषेध के रूप में नहीं माना जा सकता। यह देखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि क्या सार्वजनिक नीति का कोई बुनियादी सिद्धांत इस तरह के किसी भी निषेध को अंतर्निहित करता है। इस तरह के निषेध या किसी भी सार्वजनिक नीति को किसी भी मूलभूत सिद्धांत के आधार पर सार्वजनिक नीति से करके नहीं देखा जा सकता। संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत इस न्यायालय को असाधारण शक्ति उपलब्ध है इसलिए ऐसी स्थिति में इसे उपयोगी रूप से लागू किया जा सकता है, जहां न्यायालय इस बात को लेकर संतुष्ट हो कि जम्मू और कश्मीर राज्य में न्यायालय से या वहां से केस के स्थानांतरण के आदेश से नागरिकों को न्याय की पहुंच का अधिकार मिलेगा। इसलिए अनुच्छेद 32, 136 और 142 के प्रावधान इस मामले में उचित परिस्थितियों में ऐसे हस्तांतरण को निर्देशित करने के लिए इस न्यायालय को सशक्त बनाने के लिए पर्याप्त है, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि केंद्रीय सिविल और आपराधिक प्रक्रिया राज्य में विस्तार नहीं करती और न ही राज्य सिविल संहिता और आपराधिक प्रक्रिया में कोई भी प्रावधान है जो इस अदालत को मामलों को स्थानांतरित करने का अधिकार देता है।"


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