COVID-19: बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से जेलों में भीड़भाड़ कम करने वाले आदेश में संशोधन की गुहार लगाई
LiveLaw News Network
8 April 2020 5:45 PM IST

COVID-19 के प्रकोप के कारण देशभर की जेलों में भीड़भाड़ कम करने के लिए जारी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर बिहार सरकार ने हलफनामा दाखिल कर कहा है कि कैदियों / दोषियों को अंतरिम जमानत / पैरोल पर रिहा करना जोखिम भरा और अव्यवहारिक है। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट ने अपने 23 मार्च के आदेश में संशोधन करने का अनुरोध किया है।
बिहार के वकील केशव मोहन के माध्यम से बिहार सरकार ने कहा है कि पूर्ण लॉकडाउन को सख्ती से लागू करने के कारण जेल से रिहा कैदियों को उनके घरों तक ले जाने के लिए कोई सार्वजनिक परिवहन उपलब्ध नहीं है।
इसके अलावा, राज्य के कई हिस्सों में यह देखा गया है कि महामारी के प्रकोप के बाद भारत के विभिन्न हिस्सों से आने वाले व्यक्ति, अपने गांव में भी प्रवेश नहीं कर पा रहे हैं और वो सामाजिक बहिष्कार का सामना कर रहे हैं क्योंकि ग्रामीणों को डर है कि आने वाले व्यक्ति वायरस फैला सकते हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि बिहार में 59 जेल हैं, जिनमें 44,920 कैदियों को रखने की क्षमता है, लेकिन कैदियों की वर्तमान संख्या 39,016 है, और वहां कोई भीड़भाड़ नहीं है।
सरकार ने कहा है कि वह भीड़भाड़ को कम करने के लिए कुछ कैदियों को भीड़भाड़ वाली जेलों से नजदीकी जेलों में भेज रही है।
कहा गया है कि अगर कैदियों को अंतरिम जमानत या पैरोल पर 15 दिनों की सीमित अवधि के लिए रिहा किया जाता है, तो उनके लिए सार्वजनिक परिवहन के अभाव में अपने घरों तक पहुंचना मुश्किल होगा। यहां तक कि अगर वे अपने गांवों / कस्बों तक पहुंचते हैं, तो उन्हें COVID -19 के प्रसार से बचने के लिए ग्रामीणों द्वारा अपने घरों में जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
राज्य में कहा है, " देश के विभिन्न हिस्सों से बिहार लौटने वाले लोगों की बड़ी संख्या में सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है और यहां तक कि उनके परिवार भी उन्हें स्वीकार नहीं कर रहे हैं।"
नीतीश सरकार ने कहा है कि अंतरिम जमानत या पैरोल पर कैदियों को रिहा करने के लिए जमानत बांड पर हस्ताक्षर करने के लिए ट्रायल कोर्ट के समक्ष उन्हें प्रस्तुत करने
की आवश्यकता होगी। औपचारिकताओं को पूरा करना मुश्किल होगा क्योंकि अदालतें बेहद सीमित तरीके से काम कर रही हैं और वकील कार्यवाही में भाग लेने से हिचक रहे हैं।
हलफनामे में कहा गया है,
"कोई भी कैदी आज COVID -19 से प्रभावित नहीं है। यदि वे बाहर जाते हैं, तो वायरस से संक्रमित हो सकते हैं और अंतरिम जमानत / पैरोल अवधि के अंत में जेल आने पर वो बाकी कैदियों और जेल कर्मचारियों के लिए गंभीर खतरा पैदा करेंगे।"
दरअसल 16 मार्च को, सर्वोच्च न्यायालय ने जेलों में भीड़भाड़ के मुद्दे पर संज्ञान लिया था और कहा था कि COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिए कैदियों के लिए सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना मुश्किल है। 23 मार्च को शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को 7 साल की कैद की सजा के अपराध वाले विचाराधीन और सजायाफ्ता कैदियों को पैरोल / अंतरिम जमानत पर विचार करने के लिए उच्चाधिकार प्राप्त समितियों का गठन करने का निर्देश दिया था। यह मामला अब 13 अप्रैल, 2020 कोसूचीबद्ध किया गया है।