यौन उत्पीड़न के आरोपों से CJI को क्लीन चिट देने पर सुप्रीम कोर्ट के बाहर प्रदर्शन, कई हिरासत में

Live Law Hindi

7 May 2019 2:51 PM GMT

  • यौन उत्पीड़न के आरोपों से CJI को क्लीन चिट देने पर सुप्रीम कोर्ट के बाहर प्रदर्शन, कई हिरासत में

    यौन उत्पीड़न के आरोपों के मामले में इन-हाउस जांच पैनल द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को दी गई क्लीन चिट के विरोध में तमाम वकीलों और एक्टिविस्ट ग्रुप ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के बाहर प्रदर्शन किया।

    प्रदर्शनकारियों द्वारा दिखाए गए बैनर
    प्रदर्शनकारियों ने बैनर ले रखे थे जिसमें, 'नहीं मतलब नहीं, 'प्रक्रिया का पालन हो', 'आप कितने भी ऊंचे हों, कानून आपसे ऊपर है', 'सुप्रीम अन्याय' आदि लिखा हुआ था।






    कई प्रदर्शनकारियों को लिया गया हिरासत में

    विरोध प्रदर्शन शुरू होने के तुरंत बाद दिल्ली पुलिस ने आपराधिक प्रक्रिया की धारा 144 के तहत कई प्रदर्शनकारियों को पुलिस वाहनों में जबरन डाला और उन्हें मंदिर मार्ग पुलिस स्टेशन में ले जाकर हिरासत में लिया गया। प्रदर्शनकारियों को दोपहर 3 बजे हिरासत से रिहा कर दिया गया।

    इस विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने वाली आरटीआई एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज ने 'लाइव लॉ' को बताया कि वो 'इन-हाउस प्रक्रिया' के खिलाफ हैं। उन्होंने मांग की कि कम से कम जांच रिपोर्ट की एक प्रति शिकायतकर्ता को सौंपी जानी चाहिए।






    इन-हाउस पैनल की प्रक्रिया पर उठे सवाल

    दरअसल पूर्व जूनियर कोर्ट असिटेंट के आरोपों को खारिज करते हुए जस्टिस बोबड़े, जस्टिस इंदु मल्होत्रा ​और जस्टिस इंदिरा बनर्जी के इन-हाउस पैनल द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया के खिलाफ कानूनी बिरादरी के भीतर ही व्यापक आलोचना हो रही है।

    ऐसा कहा जा रहा है कि महिला इस आधार पर जांच से बाहर हो गई थी कि उसकी कई चिंताओं, जैसे कि वकील द्वारा सहायता से इनकार, प्रक्रिया में स्पष्टता की कमी, कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग की मांग आदि बात को नहीं माना गया।

    हालांकि, इसके बावजूद, पैनल ने जांच को एक पक्षीय तौर पर आगे बढ़ाया और पाया कि CJI के खिलाफ आरोपों को लेकर कोई सबूत नहीं है।

    विरोध जताने वाले लोगों का यह भी कहना है कि पैनल को विशाखा मामले के दिशानिर्देशों और पीओएसएच अधिनियम के अनुसार बाहरी सदस्यों को शामिल करना चाहिए था और शिकायतकर्ता को वकील द्वारा प्रतिनिधित्व करने की अनुमति देनी चाहिए थी। समिति की रिपोर्ट की एक प्रति को शिकायतकर्ता को न सौंपने को भी अपारदर्शिता माना जा रहा है।


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