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भूमि अधिग्रहण पर न्यायिक मतभेद मामला: CJI संविधान पीठ के गठन पर विचार करने को सहमत

Rashid MA
30 Jan 2019 12:57 PM GMT
भूमि अधिग्रहण पर न्यायिक मतभेद मामला: CJI संविधान पीठ के गठन पर विचार करने को सहमत
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भूमि अधिग्रहण मामले में उचित मुआवजा और पारदर्शिता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग बेंचों में न्यायिक मतभेद के बीच चीफ जस्टिस रंजन गोगोई 5 जजों की संविधान पीठ के गठन पर विचार करने को लेकर सहमत हो गए हैं।

बुधवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले में संविधान पीठ का गठन कर जल्द सुनवाई का अनुरोध किया। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि वो इस पर विचार करेंगे।

6 मार्च 2018 को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगवाई वाली संविधान पीठ ने इस मुद्दे पर कोई आदेश जारी करने से इंकार किया था। लेकिन कहा, "हमें ये उम्मीद है कि उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट की पीठ इस मुद्दे पर कोई फैसला नहीं देंगी जब तक संविधान पीठ इस पर अपना फैसला ना सुनाए।"

संविधान पीठ ने कहा था कि वो तय करेंगे कि मुआवजे को लेकर वर्ष 2014 का फैसला सही है या वर्ष 2018 का। मुआवजे को लेकर क्या प्रक्रिया होनी चाहिए?

वहीं याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा था कि 8 फरवरी 2018 को इंदौर नगर निगम मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर रोक लगाई जानी चाहिए क्योंकि इसके बाद उच्च न्यायालयों में इस फैसले के आधार पर करीब 150 मामलों का निपटारा हो चुका है। लेकिन पीठ ने कोई आदेश जारी करने से इनकार कर दिया था।

दरअसल 22 फरवरी 2018 को एक नए कदम के तहत न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा जो 3 न्यायाधीश की बेंच के अध्यक्ष थे, जिन्होंने 'पुणे नगर निगम मामले' में फैसला दिया था और न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली दूसरी पीठ ने उस आदेश का संज्ञान लिया था, ने इस मुद्दे को तय करने के लिए एक बड़ी पीठ का गठन करने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश को भेजा था कि वह न्यायिक अनुशासनहीनता है या नहीं, इसका फैसला किसी बड़ी बेंच द्वारा हो।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने CJI को अनुरोध करते हुए एक और बेंच का गठन करने के लिए कहा था कि भूमि अधिग्रहण मामले पर फैसले को लागू किया जाना चाहिए या नहीं।

इंदौर विकास प्राधिकरण के फैसले में शामिल न्यायमूर्ति ए. के. गोयल की अध्यक्षता वाली एक अन्य पीठ ने भी CJI को यह कहा था कि 'मुद्दों को जल्द से जल्द बडी पीठ द्वारा हल करने की जरूरत है।'

इससे पहले एक आश्चर्यजनक आदेश में न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की 3 न्यायाधीशों की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट की अन्य बेंच और उच्च न्यायालयों से अनुरोध किया कि वे भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वसन अधिनियम, 2013 की धारा 24 से जुडे उचित मुआवजा और पारदर्शिता और संबंधित मामलों में कोई सुनवाई या फैसला ना दें।

इस आदेश से 3 न्यायाधीशों की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता भी शामिल थे, ने न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली एक अन्य 3 न्यायाधीशों की पीठ द्वारा इंदौर विकास प्राधिकरण बनाम शैलेंद्र (मृत) व अन्य मामले में 2: 1 बहुमत से सुनाए गए फैसले पर रोक लगा दी थी।

पीठ ने यह निर्णय दिया था कि पुणे नगर निगम और अन्य बनाम हरकचंद मिश्रिमल सोलंकी मामले में 3 न्यायाधीशों की पीठ का फैसला सही नहीं था। इसमें गया है कि पुराने और नए भूमि अधिग्रहण अधिनियमों के प्रावधानों के तहत राशि जमा न कराना अधिग्रहण की कोई चूक नहीं है।

न्यायमूर्ति लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ हरियाणा राज्य द्वारा दायर 29 जून 2016 के फैसले और आदेश को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई कर रही थी, जो पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा मैसर्स जी.डी. गोयंका पर्यटन निगम लिमिटेड और अन्य बनाम हरियाणा राज्य और अन्य मामले में पारित किया गया था।

राज्य के वकील ने अदालत के सामने बहस करते हुए इंदौर विकास प्राधिकरण के मामले पर भरोसा किया और न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि इसमें शामिल मुद्दा उस फैसले द्वारा कवर किया गया है। लेकिन उसी समय मुकुल रोहतगी सहित कुछ वरिष्ठ वकील ने कहा कि इंदौर विकास प्राधिकरण में फैसले से लंबे वक्त तक कानून के बडे सवाल खडे हो गए हैं और भूमि अधिग्रहण के मामलों पर इसका बहुत गंभीर परिणाम होगा।

उन्होंने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि जब 3 न्यायाधीशों की एक पीठ, 3 न्यायाधीशों की ही एक अन्य पीठ द्वारा दिए गए फैसले से सहमत नहीं है, तो उचित कार्रवाई के लिए इस मामले को एक बड़ी पीठ को भेजा जाना चाहिए। कुछ फैसलों का जिक्र करते हुए उन्होंने पीठ से कहा कि 3 न्यायाधीशों की पीठ ऐसी ही पीठ के फैसले के खिलाफ आदेश नहीं दे सकती।

उन्होंने यह भी कहा कि कुछ मामलों का निर्णय पहले ही इंदौर विकास प्राधिकरण के मामले में दिए गए फैसले के आधार पर किया गया है, वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा दी गई दलीलों को ध्यान में रखते हुए पीठ ने कहा, "यह अंतरिम में उचित होगा और एक बड़ी बेंच के बनाये जाने तक यह फैसला लंबित रहेगा, तो उच्च न्यायालयों से अनुरोध किया जाएगा कि भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वसन अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार 24 की व्याख्या या इससे संबंधित किसी भी मामले में अंतिम फैसला ना दे। सेकेट्री जनरल तत्काल इस आदेश को रजिस्ट्रार जनरल तक पहुंचाएंगे।"

मामले को 7 मार्च तक टालते हुए बेंच ने संबंधित पीठ से भी सुनवाई को स्थगित करने का अनुरोध किया था ताकि इस मामले में उठे मुद्दों का निपटारा हो सके।

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