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शारदा चिट फंड घोटाला : CBI की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने वोडाफोन- एयरटेल को नोटिस जारी कर जवाब मांगा

Live Law Hindi
29 March 2019 12:07 PM GMT
शारदा चिट फंड घोटाला : CBI की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने वोडाफोन- एयरटेल को नोटिस जारी कर जवाब मांगा
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सीबाआई की अर्जी पर वोडाफोन और एयरटेल को नोटिस जारी कर 8 अप्रैल तक उनकी ओर से जवाब मांगा है।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ ने ये नोटिस शारदा चिट फंड घोटाले की जांच में सहयोग ना करने के आरोप पर जारी किया है। पीठ ने कहा कि वो 8 अप्रैल को ही इस मुद्दे पर सुनवाई करेगी।

इस दौरान सीबीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पश्चिम बंगाल राज्य में अराजकता का माहौल है। उन्होंने पीठ को बताया कि पिछले दिनों TMC के सासंद की पत्नी से कोलकाता हवाई अड्डे पर कस्टम अधिकारी पूछताछ करना चाहते थे लेकिन कोलकाता पुलिस उन्हें छुडाकर ले गई। हालांकि पीठ ने कहा कि वो इस पर अलग से याचिका दाखिल कर सकते हैं।

दरअसल सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि वो टेलीकॉम दिग्गज-वोडाफोन और एयरटेल यह आदेश दें कि को शारदा चिट फंड घोटाले के संबंध में 1 अगस्त, 2012 और 16 मार्च, 2013 के बीच के दौरान के विभिन्न व्यक्तियों के कॉल डेटा रिकॉर्ड (सीडीआर) एजेंसी के साथ साझा करें।

सीबीआई ने कहा है कि ये सीडीआर न केवल इस घोटाले का पता लगाने के लिए अत्यंत जरूरी है बल्कि इससे आरोपों की पुष्टि भी होगी कि तत्कालीन पश्चिम बंगाल पुलिस आयुक्त राजीव कुमार अहम सुरागों को दबा रहे थे अथवा नहीं।

सीबीआई के अनुसार हालांकि दोनों टेलीकॉम कंपनियों ने पहले बंगाल पुलिस के साथ पूरे सीडीआर का विवरण साझा किया था लेकिन अब जांच एजेंसी द्वारा ये ब्योरा मांगा गया था लेकिन सेवा प्रदाता ने मजबूती से एजेंसी के साथ सहयोग करने से इनकार कर दिया जबकि उनसे उसी ब्योरे की मांग की जा रहा है।

सीबीआई ने कहा, " यह स्पष्ट है कि आवेदक (सीबीआई) के बार-बार अनुरोध और भारत सरकार के उत्तरदाताओं (वोडाफोन-एयरटेल) को सीडीआर साझा करने के निर्देश देने के बावजूद दोनों आश्चर्यजनक रूप से संबंधित जानकारी को साझा करने में विफल रहे हैं।"

सीबीआई ने कहा है कि उक्त जानकारी केवल शारदा चिट फंड घोटाले जैसे गंभीर अपराध की जांच के लिए ही अत्यंत आवश्यक नहीं है बल्कि वर्तमान अवमानना ​​कार्यवाही (कुमार और अन्य के खिलाफ) के पहलुओं में से एक के लिए भी आवश्यक है यह पता लगाने के लिए कि क्या पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा पूरी अवधि की सीडीआर मांगी गई थी और तदनुसार उत्तरदाताओं / सेवा प्रदाताओं द्वारा वर्ष 2012 से 2013 तक की अवधि की सीडीआर उन्हें दी गई।

इससे सीबीआई को ये स्थापित करना है कि क्या वर्ष 2012 से 2013 तक पूरी अवधि की पूर्ण सीडीआर होने के बावजूद पश्चिम बंगाल पुलिस ने जांच एजेंसी से केवल सीमित सीडीआर विवरण साझा किया? सीबीआई ने कहा है कि जब एजेंसी ने इसके लिए सेवा प्रदाताओं-वोडाफोन और एयरटेल से संपर्क किया तो दोनों कंपनियों ने पहले DoT नियमों के तहत आश्रय लिया और कहा कि यह जानकारी वो तभी साझा कर सकते हैं जब उन्हें DoT से विशिष्ट निर्देश प्राप्त हों।

सीबीआई ने बाद में DoT से संपर्क किया जिसने एजेंसी को गृह मंत्रालय से संपर्क करने का निर्देश दिया जो अनुरोध से निपटने के लिए सक्षम प्राधिकारी है। इसके बाद सीबीआई ने 12 नवंबर, 2018 को MHA से अनुमोदन प्राप्त किया लेकिन इसके बावजूद अभी तक दोनों सेवा प्रदाताओं ने जांच एजेंसी को आपना सहयोग नहीं दिया है।

"लाइसेंस प्राप्त सेवा प्रदाताओं" का गंभीर आपराधिक मामलों की जांच करने वाली एजेंसी के साथ यह गैर-सहयोग अपने आप में आश्चर्य की बात है।

वहीं मंगलवार को सीबीआई बनाम पश्चिम बंगाल सरकार मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता के पूर्व पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से पूछताछ पर सीबीआई द्वारा दाखिल सीलबंद स्टेटस रिपोर्ट को बहुत ही गंभीर बताया था। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने सीबीआई को यह निर्देश दिया कि वो 7 दिनों के भीतर एक अलग से अर्जी दाखिल करे।

पीठ ने कहा कि 7 दिनों में सीबीआई की अर्जी दाखिल होने के 10 दिनों के भीतर राजीव कुमार इस पर अपना जवाब दाखिल करेंगे।

पीठ ने कहा, "हम दोनों पक्षों को सुनने के बाद आरोपों और जवाबी आरोपों का निर्धारण करेंगे।" इस मामले की 2 हफ्ते के बाद सुनवाई की होनी है।

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